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कमला कमलेश री रचनायां


उतरतो आसोज अल लागतै काती की छट्ट छी। दूध-दही की नांईं चांदणी रात छटक री। कूकड़ो बोलबा की बगत, बायरां हातां में लोठ्या, कांखां में लत्ता अर राधा-दामोदर जी की पूजा को सरंजाम ले'र नन्दी पै काती न्हाबा जारी छी।

म्हूँ आंगणा मं तारा-दातण कर'री छी बायरां का भजनां की भणकार सुणातांई, म्हंनै राधा कै तांई हांको पाड्यो हांको सुण तांईं, व्हाबी आंख्या मसलती मसलती म्हारी लेरां बायरां मं भेली होगी। म्हांकै बी काती न्हाबो को छोग घणा दना सूं लाग र्यो छो।

राधा अर म्हूं दांई-दड़ की भायल्यां छां। म्हांकै आमै-सामै हेत घणओ ई छै। एक दूजी सूं हंगणी-मूतणी बात कर्यां बना, कल पड़ै ई कोई न्है। घर बी म्हां का जोड़ै-जोड़ै ई छा।

काती न्हाबा बाली बायरां, न्हा-धो'र राम भणती भणती बावड़ री छी। धन्ना जी की बू नै बायरां की डोर खांच राखी। सगली बायरां कै आगै होबा सूं सबसूं फैली मूमद्या की माई दाई-माई को बोलारो उनै ई सुण्यौं। धन्ना जी बू नै, राधा का चांदा के य्हा ऊबी हो'र मूंडा पै आंगली लगाती नै बायरां के तांई छानी रैहबा को असारो कर्यो। फेर बोली-'छानी रह्‌ो छानी' य्हा दाई-माई को बौलारो छै।

सगली बायरां कान लगा'र मूमद्या की माई की बात सुणबा लाग'गी।

मूमद्या की माई कहा री छी-"अजी सासूजी कांई होग्यो। छोरी होगी तो, कदी तो ऊजलो फल बी आवैगो। अस्यो कांई कलेस करो छो। कदी तो अल्ला झांगैको ई सणी। या कांी बस की बात छै।"

पण राधा की बातो बरड़ावणी की फली कीनांई बड़बड़ाती जा'री छी-"अरी मन्नै तो घमई खी छी मूमद्या की माई, कै कोटा जा'र डांगदरणी नै बताया अर खचाया पेट को अक्सरो। छोरी रांड होवै तो फरी खडाया ज्यै बाल ज्यै ांडनै। पण म्हारी कुण सुणै छै ? आदोलमी में पावली हालण फरै उतावील ज्यूं छूं, रोटी ऊपरलो स्याग। मत सुणो म्हारी। करती जा डांगर्यां नै भेली। कहां तांी, कमावैगो भापड़ो।"

काती न्हाबा हाली बायरां मं सूं कान्हा जी की बू बोली-"अब कै बी छोरी रांड ई होती दीखै छै जी भाई बाईजी ? छीतर जी की बू कै।"

बाण्यां का भंवरां बाई हूंकारो भरता बोल्या-"हां री भाभी, छोरी ई होई छै काणा कांईं। बालक को रोवण वां-वां आ'र्यो छै।"

कान्हा जी की बू बोली-"न्हा धो'र खड़ी होई जी भापड़ी, लुगाई को तो ऊंदो भाडंो होवै छै। छोरो'र छोरी कहां सूँ आवै छै। छोरा कांई होता ईं ढुंगा कै नोली बांध'र लावै छै कै ?"

धन्नाजी की की बू बेगी-सी बोली-"लावै छै न्है तो, चरा होवै छै, चरा बेटा तो। ठोसा तो छोरा-ई द्यै छै।"

पंडां कै मंदन की मां बोली-"हां रे, या बोली रै भाई बेटा की माई, ईं कै छोरी की डकार कोई न्है आई नै भाई।"

मोत्यां बुआजी तो घमी बुलाक छी, अब तांईं तो सुणती जा रही छी, व्हांनै बी मूंडो खोल्यो'र बोल्यो-"छोर्यां न्है होवै तो संसार ई न्है बसै बणा।"

धन्ना जी की बू कस्यां पाछी देती, हातां का ढावला रती बोली-"पण ठोसा तो छोरा ई दे छै नै ? वां कै बना तो तरै ई कोई न्हैं। सास्तरां में कांई न्है मडरी कै ? अर आपण ग्यारस मंे कांई न्है गांवै कै, कै गऊ बना दान, बहू बना आदर, पुत्तर बना गया-पंड कुण करै जी। छोर्यां तो परायो धन छै परायो। वां नै तो पाल-पोस'र बड़ी करो। पेट कै आंटी दे'र डायजो भेलो करो। डायजा में कसर रै जावै तो सासरा हाला माई-बाप नै खूण्यां में बठाण्यां रखाणै। अर व्हांकी भरती परी न्है होवै तो घणा दुख्यारा तो तेल पटक'र बा'ल बी देवै छै भापड्‌यां नै।"

पंडा का मदन की मां हां भरती बोली-"हां री' बणा डायजा को सांप तो घणो' ईं बरो बले छै। डायजा का दुख की मारी तो फैल्यां एक दो सूं बदती छोर्यां हो जाती, तो राजपूतां में तो होता ईं मार न्हाकै छा।"

बामणा की शकुन्तला घमओ कलेस करती बोली-"कांई कह'री छै बा तू ? छोर्यां नै होता ई मार न्हांकै छा ?"

पंडा कै बा बोली- "हां न्हैं तो होता ई कंठ मसल दे छा।"

शकुन्तला लाम्बो सीसाड़ो करती बोली-"हरे राम! कस्यां मारता होवैगा, री भापड्‌या नै ? जच्चा को कांई जीव कहतो होवैग सगला राजपूतां की छोर्यां भरती होवैगी री, भाई बा ?"

बा बोली "सगला ई थोड़ा मारै छा री बावली। कोई-कोई गरीब-गरबा ई मारै छा, कै धन डायजो कठी सूँ देंगा। अतनी छोर्यां नै क्सायं परणावैंगां। डायजा का दुख की मारी नरा ठकाणा की छोर्यां की तो फीर में ई धोली मींड्या हो जावै छी। नठा जा'र परणै छी भापड्यां।"

भंवरा बाई बोली-"थां तो राजपूतां की बात करो छो। वे तो गी-गुजर फैल्यां की बातां होगी। वे तो छोर्यां नै होबा कै पाछै ई मारै छा, पण अबाणू तो पेट मं पड़ता ई मार दे छै।"

शकुन्तला करमटा कै हात लगायां कलेस करती बोली-"हरै भगवान छोर्यां को जमारो तो अबरतां ईं छै। ई डायजा का सांप नै मार'र फरो कानै फकावै बालै। ईं दुनियां सूं द्या-धरम ई उठ ग्यो कांई। जदी तो मनख अपणा पाप का फल भोगे छै। भगवान के घर देर छै, अंधेर कोईन ्‌है। मन में'ई राजी होल्यो। तजोर्यां नै अरड़ाट भर ल्यो। पण द्या-धरम ईलेरां जावै छै। सब धर्या का धर्या ई रै जावै छै। फेर बी मनख धन को भूखो खाइमी छै।"

भंवरा बाई बोली-"अरी बणा ? यो लोभ ई तो मनख्यां सूं बरा काम करावै छै।"

कान्हा जी की बू गाबा मं ई बात काटती बोली-"कतनी छोर्या होगी बाईजी, छीतरजी की बू कै ?"

भंवरा बाई बोल्या-"बांच होगी दीखै भाभी। बड़ी ई बड़ी तो राधा, फेर नटी, भूली, अन्तिमा अर एक या और आगी।"

काती न्हाबा हाली बायरां तो ऊबी-ऊबी गर्याला मं बातां ई कर री छी। ऊंठी रादा काणा कदेक व्हांका गाबा मंे नसट'र व्हांकी ज्याग मं उलगी।


चोमेर घटा-टोप बादला हो र्या छा। बीजल्यां रै'र करड़-करड़ दांत चाबती उजाला सूं छ्यांपत्ती खेल री छी। पाणी अस्यो रोस खा-खा'र बरस र्यो छो, कै पाटोड्‌यां मं न्हैं समा र्यो छो।
 जनम आठै कै दूजै दन, सं गोगानवमी की रात तड़कै भाग फाट्यां की टेम, छीतरी की बू सुगना छलल उठी-'अजी म्हारा सासूजी, अजी म्हारा..। छीत भी छाती मं धमोड़ो दे'र डकरायो अरी म्हारी मा मन्नै छोड'र कहां चली गी री।' छोर्यां बी रोवणों सुण'र ओझल'र बैठी होगी। अर बरलाबा लागगी घर मं भांमाहेड़ो माच ग्यो।
 छीतर की माई के ताव तो घणा दनां सूँ आ वै छो। पण जनाड़ै तो सीत मं आ'र बत्तीस्यां मलगी, भापड़ी की। घर का लूण जायपतरी, ओगद-पाणा तो घणा कर्यां, पण नै वैद्या-हकीम बलाबा को मौको ई न्है द्यो। आखर मं डोकरी नै फांखड़़ा फैला'ई द्या।
 ऊंठी तो छीतर की बू नै करलो कर्यो, अठी नायां का दाहजी कान्हा जी नन्दी पै हात-मूंडा धोबा जाबा कै लेखै पोल मं सूं खड्‌या। वां नै तेल्यां का दाहजी अमर लाल जी को साता बंधाता को बोलारो सुण्यों।
 "अरें छानो तो रै'र छानो छीतर? मूंडा सूं तो बोल रै बेटी का बापहाला, कतनी बार सूं समझ्या र्या छां थारे तांईं।"
 दाहजी कान्हा जी नै जाण ली, कै छीतर की माई गुजरगी।
 व्हांनै हात-मूंड धो'र घरां आता ई कही, कै आज तो डोकरी पूग गी रै भाईं। वां की बू नै पछी, "कसी डोकरी?"
 दाहजी कान्हा जी-वा ई थाणा दारजी और कसी डोकरी। दाहजी कान्हा जी कै रात दो फावणा आया छा। फावणा पोला का चूंतरा पै ई सूता छा। बातां-चीतां सुण'र दोन्यूं बैठ्या होग्या। वां मं सूं ेक नै पूछी-"लुगाई मरी कै लोग ?"
 दाहजी बोल्यो-"लुगाई मरी छै मारा।"

 फावणौ बोल्यो-"आपने थाणादार जी कही जी सं पूछी छै मन्नै तो ? कांई लुगाईं थाणादार छी कै ?"
 दाजी बोल्यो-"अजी मारा या ख्याणी तो घमई लांबी छै। लुगाईं तो थाणादार कोईं न्है छी। पम एक बार बायरां का खलाड़ा मं थाणादार बणी छी। जद सूं ईं म्हांका गांव मं ऊं को थाणादार बूक फूट ग्यो।"
 फावणो लांबो हुंकारो भरतो बोल्यो-"हां..या ात छै। अब दाहजी नै पोलका चूंतरा कै नीचे का आल्या के गोडै बैट'र बच्यारां का बीज बीणता ऊंडा हेरा मं डूबता नै ढूंढी कै पाछै कुड़सी तम्बाकु की राती खोतली खाडी। पाछै तम्बाकू को बीड्‌यो भर'र आल्या की आग में सूं अंगीरो चीमटा सूं कुराल'र खाड'र बीड्या पै धर्यो। पाछै घणा जनत सूं बीड्‌या कै लगदरो लपेट'र सप्पाटो खांच'र मूंडा मं सूं अस्यो धूंधाड़ो उड़़ायो जामै सगला बच्यार एक साथ धूंधांड़ा मं मल'र उड़ ग्‌या होवै। पाछै बीड्‌यो फावणा की मनवार मे आगै सरक्यो। मनवार की लारां की लारां ईं दाहजी बोलता बी जा र्या छा।"
"अरै सुलझी रै भापड़ी। घमा दना सूं दुख पा री छी। गीरीब घमी बरी बणाई छै रै। वां की कोई सुणबा हालो कोई न्है। आज खाल तो पीसा हालां का अलाज रै ग्या। गरीब तो मरबा कै लेखै ई छै। बेटा-बू नै सेवा तो घणी करी। गू-मूत चन्दण कर द्यो पण..।"
बीड्ाय की तम्बाकू बल'गी छी। दाहजी नै बीड़़्‌यो ऊंदो कर'र बली तम्बाकू जमी पै पटकी। फेर जतन सूं पाछो बीड्‌यो खोतली में धर ल्यो। खोतली बी ठाम-ठकाणै ढंढी कै पाछै कुड़स ली। फेर व्हांकी बू सूं बोल्यो-"खूंटी पै सूं म्हारी धोवती ला'दै। म्हूं जा र्यो छूं।" दाहजी कान्हा जी नै धोवती कांधा पै धरी अर छीतर होणां की ज्याग को गेलो पकड़ल्यो।


दन उगतां-उगतां सगला गांव में तोल पड़गी कै आज तो धाणादारजी मर ग्या। चालां थाणादारजी की जान मं।
 डोकरी का दाग में घणों मनख भेलो होयो। सगला मनख दाग दें'र न्हा धो'र आपणां-आपणां घरां में आ ग्या।
 डोकरी तो मर'र ऊंका घर नै गी, पण छीतर कै घमी दबद्या करगी। छीतर कै डोकरी मरबा को रोवणओ तो फोरो छो। पण काट्टो करबा को रोवणो सांवटो छो। "काल तो पड़बो अर बाप कोर मरबो" जसी गत होगी। लग-लगाता तीन बरसां सूं काल पड़ र्यो छो।
 एक मन तो छीतर को करतो कै न्है करूं नुकतो-ऊंकतो कांईं करैगा मारो ज्यात का। कांई छोरा-छोर्यां का मूंडा कै छंको लग द्यूं कै। ्‌र घरमें राधा बी तो ब्याव के खावै आ री छै। अर या छोरी नुकतो करबा मं टांग अड़ावैगो ई अड़ावैगो। माई नै भंगराबा मे बी कमसर न्हैं रखाणैगी। या थोड़ी फड कांई गी आछ्या-आछ्या का कान काटै छै।
 पम तुरत ईं भेजा मं दूजो बच्यार भड़ीकतो कै छीतर ? थन्नै डोकरी को नुकतो न्हैं कर्यो तो ज्यात का पंच-पटेल थन्ने जीबा थोड़ा 'ई देगा। भरोस्या का बाप का नुकता की गत भूल ग्यो कै। ईं फूंद्या पटेल नै कसी' क बगाड़ी छी भापड़ा की। आंगणां में बारह लोठ्या ई गुड़क्या-गुड़़क्या फर्या छा, कै नुकतो न्है करै तो बारह बामण कस्यां खा सकै छै। भरोस्या नै नुकतो तो करणओ ईं पड्‌यो, पांचा मं नाक कटी ज्ये न्याली। ई लेखै जीवड़ा नुकतो करणओ ईं पड़ैगो।
 आज डोकरी ने तीन दन हो ग्या छोट्या फाटबा को दन आ ग्यो। डोकरी का आंगा ले'र हरद्वार बी जाणो छै। न्है तो ढाला में कोकावैगी। ई लेखै पीसा कोडी को अन्तज्याम तो पेगो ईं होणो छावै छै।
 छीतर रात दन राम नै सवरैं-"तूं ई जाणै म्हारा द्वाराका का नाथ नाव नै पार लगदा दे म्हारा स्वामी।" मन्नै तो ईं गरीबी की मारी अकबल ई न्है आवै।आखर में भगवान नै पार लगाबा को गेलो बदा त्यो। बजरंगो बोहरो आंख्यां कै आगै आ ग्यो। हात जो'र अरज करुंगो, न्हैं मनैगो तो पांच बीघा टूकडी अडाण धर द्यूंगो। ई तरयां पांच हजार रोकड़ा अर दस मण गऊं बाडी सूं ले ल्यूंगो। गुड़-घी अर हर्दवार को अन्तज्याम तो होग्यो। करबो-खाबो ज्यात ब्वार कै अधर तूमड़ो सोतण जी का बाड़ा मं सूं आ जावैगो। आमल्यां का बाग मं सूं आमल्यां तोड़ लावैगा।
 छीतर कै नुकता का अन्तज्याम सूं घमी साता आईं। सुगना म्हरला घर में बैछी छी, हांको पाड़'र अगडाल्यां मं बलाईं। नुकता का अन्तज्याम की पोथी घणी साता सूं सुणाई।
 राधा तो माईं की लारां ल्वारी की नांई रै वै छी, वा बी बेगी-सी दौड़'र माईं कै गोडै आगी छी। उस्यां बी ऊ नै घर'र बारै की रबी-रीबी की तोल रै छै। कै कठी कांई हो र्यो छै। वा सबा घरां की पाकी दादी छै। छीदतर को तो सुगना सूं बतलाबो सरू होयो कै राधा बेगी-सी बोली-"भाीजी ये नुकता-बाड़ी पंडा-पुजार्यां का ढोंग-धूतरा छै। थां नुकता का चक्कर में मत पड़ ज्यो। म्हांकी कत्याबां में मंडरी छै, कै नुकतो तो करणो ईं न्है छाईज्ये। अर बोहरा सूं रुपया तो भूल'र बी मत लीज्यो थां अण पढ छो। बोहरा की पानड़ी द्रोपदी को चीर होवै छै। हजार कै, एक बिन्दी मनटा में लागै छै।"
 सुगन नै बी राधा की हा मं हां धरी "बात तो सांची बोलै छै। अर यो बजरंगो बोहरा तो छै बी घणओ खाबलो, बाटी सेक्यो। माल्यां के छोट्या जी की बू को तो गांव ईं, छुड़ा द्यो भापड़ी को।"
 बात बगड़ती जाण'र छीतर ओहड़ो देतो बोल्यो-"गांव बोरा नै छुड्‌या छै कांईं ?"
 सुगना बोली-"और न्है तो कांई, खा'ल मं ई कालो मूंडो कर ल्यो, बापखाणा नै, मनख जमोर ई बगड़ा द्यो आग मल्या नै भापड़ी को, गांव छोड़'र न्है जाती तो कांई रोती कै गूखाणा नै।" छीतर तो फैली घणी दबद्या मं छो. नठां जा'र तो गेलो मल्यो छो। अब ऊ गला तांई भरग्यो छो. ईं लेखा घमा रोस मं हो'र जोर सूं दूंक'र बोल्यो-"न्है करूं माईं को काट्टो। पड़बा द्यो म्हारी माईं नै नरक मं ? कटाल्यूं नांक पंचा मं ? खांऊं ज्यात का पंचा की गाल्यां कै" पोपटी का नै माई को नुकतो बी न्है कर्यो भर-भर लोठ्या खाबा तो आ ज्या छै। थारी अक्कल नै थारै गोडै ई रखाण-"मत करो नुकतो, मत करो नुकतो, रट लगा मैली छै।" सुगना आप को सो मूंडो ले'र रैगी। आगै कहती बी कांई। रोस खा'र अगडाल्या मं सूं उठ'र घर में चली गी। म्यांजी की दौड़ मजीद तांईं।

घड़ी-सात पाछै छीतर होणा कै यहां पंडा कै गोवन्दाजी, धाकड़ा कै धन्ना जी, नांया के कान्हाजी दुख-सुख बांटबा आया। बीड़ी-तम्बाकू का दौर की लरां लारां डोकरी की बातां चाली। कदेयक डोकरी मरी, कर्लो कर्यो। वां का फावणां नै बा का थाणादारजी का बूंक की बातां करी । सगली बातां की दाहजी कान्हाजी नै ख्याणी सरू कर दी।
बातां तो वां की चाल री छी, पण छीतर को को चत बजरंगा बोरा मं जा र्यो छो।
छीतर, धन्नाजी सूं बोल्यो ई सणी-"दो धन्ना म्हारो एक काम तो थन्न करमो ईं पड़ैगो रे भाई। थारी बात मं बजन छै।"
धन्नाजी बोल्यो-"खुलासा तो'कर कांई काम छै ?" छीतर बोल्यो-"बजरंग बोहरा सूं पांच हजार रोकड़ा अर दस मण गऊं को अन्तज्याम करणो छै।"
धन्नाजी सोसल हो'र बोल्यो-"बोहरो घमओ कांगो छै भाया। पांच हजार रोकड़ा जबान पै न्है देगो।"
छीतर बोल्यो-"दादा तू बात तो कर'र देख।"
धन्ना जी बोल्यो-"हा ंबात तो म्हू कर ल्यूंगो। ऊंचो-नीचो बी पटकूंगो। पण बोहरो तो..।"
धन्नाजी संज्या की बोहरा कै गोडै ग्या। छीतर की बात पूगती करी। आपणी आडी सूं बजन बी धर्यो। पण बोहरो तो चीकणो घड़ छो, नै हूंक्यो नै पाव स्यो। ऊ तो बहरा मनख की नाई बैठ्यो-बैठ्यो जाल में फस्या पखेर नै आछ्यां उलझाबा का कुलाबा लड़ातो र्यो। घणी बार पाछै मून तोड़ तो कलेस को नाटक करतो बोल्यो-"हारै धन्ना ! डोकरी तो नुकतो तो करमओ ई छै रै। छीतर की माईं ज्ये ई आपणी माई छी। पण देख'र भाईं, पांज हजार रोकड़ा तो घणा सांबटा होवै छै। ई लेखै खेत-वेत अडाण मं रखाणो ई पड़गो।"
धन्नाजी बोल्यो-"तो म्हूं पूछ आऊं छीतर सूं।" बोहरो बोल्यो-"न्हैं रै तू कांई पूछ आवै छै। म्हूं ई चाल्यो चालूंगो। जुरुरत होईं तो खाता पै अंगूठो बी करवा लेंगा।"

अब बोहरो डील का मरोड़ा लेता उठ्यो। खूंटी पै टंक्यो गुलाबी रंग को जोधपरी तरज को कोट उतार'र पहर्यो। माथा पै कसीदा डाली भूरी टोपी लगाई। कांख मं खाता-बही को पुलन्दो दाब्यो। कान पै पेली चमकणी कलम टांकी। पाव भरी पीतल की बेल-बूंटादार द्वात धन्ना का हात मं पकड़ाई। पगां मं चमकणी मोचड्यां पहरी। अब झांबरी मूछ्यां नै संवारतो फांसला सूं च्यार आंगल ऊंचो खड्‌यो पेट सूं डकार लेतो, हात मं बेंत पकड़'र धन्नाजी की लारां, छीतर का घर को गेले पकड़ल्यो।
बोहरो पोल का चूंतरा पै बैठतांई छीतर का कांधा पै हात धरतो बोल्यो-"अस्यो कांी कलेस करै छै रै छीतर। हालतो आपण बैठ्या छां रै भायला।"
छीतर बोल्यो-"थां लोगां को ई बसवास छै मारा।"
बोहरो बोल्यो-"अन्तज्याम तो हो जावैगो। पण रोकड़ा सांवटा छै, ई लेखै अडाण मं खेत मांड लेंगा रै।"
खेत को नांव लेता ई छीतर की सांस ऊपर की ऊपर अर नीच की नीचे ईं रैगी। पण मरतो कांई नै करै। मून तोड़'र कहणी ई पड़ी-"मांड ल्यो मारा।"
बोहरा नै कान पै टकी कलम उतारी। खाता-बही को बस्तो खोल्यो अर तुत बही मं काला कागद करटर छीतर का बावला हात तो अंगूठो स्याही मं भांड'र बही पै चपका द्यो।
राधा'र सुगना उसारा मं बैठी-बैठी मांडा-चूंडी नै देखती जा री छी। व्हांकी आंख्या बर्याबार पोल का चूंतरा पै ईं टकी री।
अंगूठो होता ई राधा माईं की आड़ी असारो करती बोली-"भाईंजी नै बा कै तांईन रक मं सूं खाड़'र सगर मं पूगाबा को अन्तज्याम कर ल्यो जीजी। जदी भाईंजी काका मोहनजी सूं गुरड़ पराण की बातां कर र्या छा, कै सासतरां मं पंडता नै झूंठी बातां थोड़ी ईं मांडी चै। बेटा को घमो करतब होवै छै माई-बाप कै लेखे।"
सुगना राधा की बातां सुणती जा री छी। अर काण्या घूंघटा मं कलेस करती खाता-पानड़ा का मांडा-चूंडी अर उलट-फेर बी देखती जा री छी।

सुगना बोली-"देख री छूं बेटी, म्हारै तो अब एक की ठारां दो कढायां चढ़गी।"
राधा बोली-"कंस्या चढ़गी दो कढ़ायां।"
सुगना बोली-"कस्यां कांईं छै बेटी एक तो चढी-चढाईं छै, गरीबी। टूकडी और गैणे मल'गी। कस्यां छूटगी नाहर का पंजा मं सूं ? दूजी डाकण को वार चांचवा मं ईं लागै छै बणां। थारा बाप नै सल कै तलै, आंगली दे ली। म्हारा घर मं मोट्यार बेटी छै, अर यो बोहरणो घणो खाबलो बलै छै।"
राधा बोली-"बोहरो कांई करैगो आपणो ?" सुगना नै नसास पटक्यो अर बोली-"अरी बेटी, कांई नै करै, यो दुख्यारो घमओ खोड़लो बलै छै। क्हाल ई नन्दी पै नायां की चतरी की सावली खांचली ऊंठ्यावड़ा नै। वा तो छोरी चोखी छीज्या उगाड़ा-फुगाड़ गांव मं भाग्याई न्है तो..।"
सुणतांई राधा का भंवरा तण ग्या। अर हात सूं भाटो फांकै जस्यां असारो करीत बोली-"अरी वा तो चतरी सूदी, मलगी, ज्यैै भाग्याई। म्हारै जसी कै पानै नै पड्‌यो नै तो सूदो ई करमटा पै भाटा की दे'र भोभरो बखेर देती, ढांढी खाणा को। व्हांई भसेड़ी खा'र सूदो हो जातो। मलाईं खाणो। भूल जातों ऊंठ्यावड़ो दूसरा की बैण-बेटी नै खोटी नजर्यां सूं देखबो।
 सुगना का कालज्यां मं बेटी की बातंा सूं घणी थरदा आईं। बेटो नै तो कांई होयो, राधा ई बेटो छै म्हारै तो। बाप सूं होईं बूलां सुधरैगी क्हाल आबा हालो दना मं बैटी की बलायां लेगा। बोरा जस्या रावणा को काल बणैगा।


कसनपुरा मं एक रावलो छो। रावला को आहोर बीधा-डोडजा बीघा को घमओ जबरो। रावल कै दो जंगी बारणा। एक गंगाऊ, एक लंकाऊ। लंकाऊ बारणो तो अतनो जंगी, कै हाथ ीमहावत समेत खड ज्या फेर बी घमओ ऊंचो रै। दपड्‌या क्वाड़ा कै पीतल की फूलड्‌या हाला बडा-बडा कीला कलात्मक ढंग सू जज्चया होया, क्वाड़ा की सुन्दरता मं च्यार चांद लगावै।
रावाल के भीतर जनानी मरदानी र्वास्यां पाकी बणी थकी। बांद्यां-गोल्यां की खोलूडी काची लदाऊ की भीत्यां हाली।
रावला का रीत-रवजा, रहण-सहण, बोलबो-बतलाबो, अड़दा-पड़दा, अदब-कायदा सगला राजावां जस्या छा। जस्या-हुजूर हुकम अन्नदाता, घमी खम्मा आद-आद।
राजा जी की बंसावली मं होबा सूं कसन परो राजाजी नै जागीरी मं ई द्यो छो। राजा जी का जलसां मं कनपरा का ठाकरां को बी ओहदो छौ।
आजादी के पाछै नुईं सरकार नै राजा का राज'र जागीर दारां की जागीरदारां को कोसली, पण फेरबी ठाकरां की ठुकाराईं मं फरक नै आयो। व्हांकी मूंछयां कै चावंल तो लागै ईं लागै। छावै घर मं ऊदरो ऊंचा हो-हो'र झांकै।


कनसपरा का ठाकर रामसींगजी को गांव मं घणओ रोब-दाब। छोटा-बड़ा मनख वां की मारी घणा डरपै।
रामसींगजी लांबा-पूरा छै फुट कै आवै-डावै। वां का कांधा पै हमेस जोड़लो लटक्यो रै। आंख्या का लाल-लाल डोरा पल पलाता, भंवरा तण्या-तण्या, केसर्यां स्यापो लांबो लटकतो छमगादार, अस्या लागै जाणै फौज का सरदार ये ईं छै। ज्यानै देखता ई डर लागै।
पण चाल-चलण का घणा ऊजला। रामसींगजी तीन परण्यां छा। एक मरबा पाछै दूजी। दूजी कै पाछै तीजी ठुकराणीनै रावलां मं ऊजालो कर्यो।
राजपूती रकान सारू-रावला मं तीन बांद्यां बी भेली होगी। पण पाछली ठुकराणी की लेरां आईं फूंदी बांदी को रुतबो घमओ जबरो। दूजी बांद्यां ऊं सूं दबी दबी ई रै। फूंदी नरी बार व्हांकी ऊंदी-सूंदी बातां ठुकराणी सूं भढ़ाती बी रै छी। आजादी कै पाछै दो पराणई बांद्यां तो रात्यूं रात ई पाटी देगी, ज्यांको पतो ईं न्है लाग्यौ घमी हेरी पण वे तो जाणै ऊंदरां की पोल मं ईं घुसगी होवै।

अब तो फूंदी बांती ई रैगी फैली बी रजा ऊं को ई चालै छो। पण अब तो सर्व-सर्वो होगी। अठी-ऊंठी की बातां मलाबो, रावला मं कांईं-कांई कहां हो र्यो छै। ठाकरां की बातां बताबो बना साहब की बातां बता बो रबी-रबी का समचार रावला का'ई कांई गांव का बी ऊं का मूंडा पै ई धर्या रै छा।
सोहन सींग पै तो ऊं की खास नजर रै छी।
बजार मं सोदा-सूत लेबा फूंदी ई जावै छी। पूंदी की बी मूल्या नाईं सूं घमआ दना सूं सेण-पाट लाग'री छी। एक दन वा बी नन्दी पै लत्ता धोबी गी छी, व्हांसू ई नायांका मूल्या की लेरां भागगी ऊं दन सूं ई मूल्या को बी पतो कोईं न्है।
राम सींग जी कै तीन बेटा। बडो ई बेटो सोनह सींग, छोटो मोहन सींग, अर सबसू छोटो मदन सींग।
सोहन सींग घमओ बगड़ैल। जनता राम सींग जी ऊजला उतनो ई सोहन सींग नाकारो। आये दन बडाा डांकतो फरै। कदी चमारां की ग्वाड़ी मं तो कदी भंग्यां कै पाड़ै, तो कदी खेत-खलाण मं। पण लोग-दणी राम सींग जी की धसक की मारी छाना-मूना होजाता।न ाहर की पोल मं हात कुण घालै। कुण की नै माईं को दूध प्यो छै ज्यो व्हांकी साकंल पै पग धरै।
ठुकराणी तो अब पाल्या पंछी कीनांई पींजड़ा मं बंद होगी। फूंदी कै भागबा पाछै ठुकराणी कै गोडै घर अर बाहर की रकान की लछमण रेखा वे कस्यां उलांग सकै छी। घर को काम तो रावला का ोदन्यू आडी का क्वाडंड लगा'र भीतर की भीतर ई करती रै च्यां तांी गोबर-छाणा बी छानै-छानै हातां सूं ईं थापती। पम पाणी तो मरद ईं रात नै लाता। जदी तस बजती। ठुकराणअया पड़दा का रवाज की लछमण रेखा नै कस्यां उलांग सकै छी।

आसोज को म्हीनो, भरां भरा मूंछया मांजरा आई परस-परस तांईं की मक्का सूं खेत लहर्यां ले र्या छा। राधा की जीजी कै केस्यो चढ़ र्यो छो। जी सूं वा तो गोदड़ा ओड'र म्हरला मं सूती-सूती कराह री छी।
राधा की जीजी धूजती-कांपती नै राधा कै तांई हेलो पाड्‌यो अर बोली-"बेटी आज तो तो खेत मं हर्या उडाबा तू ईं जा, म्हारी तो सरदा कोईं न्है। टन-टोटक्या करबा कै पाछै बी यो बैरी त फेर चढ़ आयो।"
राधा बोली-"जीजी म्हारै तो मन्दरसा को टेम हो र्यो छै। भाी जी नै खना दै।"
सुगना बोली-"अरी थारा भाईजी तो आज खाम कास सूं क्वास परे जा र्या छै। अर हर्या घमा पड़ै छै। मक्का को सूंतडो कर देगा। ई पै ई तो साग लगा'र बैठ्या छा।"
राधा बस्ता नै डांड पै धरती बोली-"जारी छूं अबाणू। सुगना नै याद द्वाई कै आती बगत ल्वारा-ल्वारायं कै लेखै चारो बी काट लाज्ये।"

रोटी की बार तांई तो राधा नै डैगंड़ा पै बैठी-बैटी नै हर्या उडाया। अर पाछै चारो काट'र भारो बांध्यो राधा भारो उच'र गांव की आडी बावड़बा ईं लागी। छी, कै मेर पै आतां-आतां सोहनसींग नै पाछै सूं आ'र राधा को भचूक' पूंचो पकड़ल्यो। सोहन सींग को तो पूंच पकड़बो छो, कै राधा को हक्की-बक्की हो'र धूजबा लागगी। पण एक समचे गाढी हीम्मत कर'र बोली-"म्हारी पूंचो खाईंमी पकड्‌यो।"
सोहन सींग बोल्यो-"अरी म्हारी फूलचड़ी घमा दना मं पानै पड़ी छै आज।" राधा के सुणातंई जामऐ बीर चढ ग्या। घणा रोस मं हो'र बोली-"ले रै भाई गूखाणा घमा दना मं पानै पड़ी थानै फूलचड़ी।"
राधा नै तो दूसरा हात सूं भारा मं कुड़सी हांथली खाडी अर सोहन सींग का हात मं ऊंदी हांथली की झबोड़ दी। राधा को पूंचो अब ढीलो हो ग्यो छो। ऊं नै अब जोर सूं झंझोड़ो दे'र पूंचो सोहन सींग का पंजा मं सूं छुड़ा ल्यो।
सोहन सींग दारू मं आछ्यो धुत्त होईं र्यो छो राधा का झंझोड़ा सूं हात भर दूरो होग्यो अर धरती पै गरतो-गरतो बच्यो। पण संभल'र घमा जोस मं भर'र बोल्यो-"अतनी हीम्मत ! म्हारै ई झंझोड़ो।" अब ऊ राधा की सावली को पल्लो पकड़ खांचबां लाग ग्यो।
राधा का डील मं तो फेली ई बीर चढ र्या छा, वा गाल्यां खाडती बोल्यो-"देख ऊंठ्यावड़ा, मम्सू दोरी ई रीज्यौ, न्है तो म्हंसूं बरो कोईं न्है होवेगो।"
सोहन सींग बोल्यो-"तू तु कांई कर लेगी म्हारौ।"
राधा दांथली बताती बोली-"न्है दीखै कै थन्नै या थारी माईं गाजर, मूला की नांई थारी नाड़की काट घालूंगी।"
सोहन सींग बोल्यो-"म्हारी।"
राधा बोली-"थारी न्है तो म्हारी।"

सोहनसींग कै बी जामऐ तन-बदलन मं आग लागगी ऊनै बाथम-भूथ होतां राधा की ढूंढी पकड़ ली। सावती तो फैली ई खाचंली छी। राधा नै हांथली तो मजबूती सूं पकड़'र भारो तो नीच पटक द्यो अर मूंडा सूं बर्याबर गाल्यां की गोल्यां छोड़बा लाग गी। ढांढी खाणा, गूखाणा, कुत्ता का मूत, गोला आद-आद। अर ज्यूं ईं सोनह सींग नै ऊंकी ढूंढी पकड़ी, राधा नै ऊंका मोरां मं ऊंदी दांधली की धर दी अर बोली-"देख फेर क्हू छूं बादां का मूत री जी नै ई रखाण, न्है तो थारी घणौ बरी गत हो ज्यागी। थारी नाड़की ढेकलां मं गुड़की-गहुड़ की फरैगी ऊंठ्यावड़ा।"
वां दोन्यां का हांका हेला पंडा कै परभू नै तलाई पै सुण्यां। परभू तलाई पै न्हाबा आयो छो। खेत मं हांका हेला सुणताईं ऊं भांप ग्यो, कै कान-कांई बजोग छै। ऊं तो उबदडा डांक तो राधा होणा का खेत मं जा पल्यो अर दूरा सूं हांका करतो बोल्यो-"अरै कुण छै रै खेत मं। वां जा'र देख्यो तो सोनह सींग राधा सूं झामक-झूम हो र्यो छो ऊनै दौड़'र सोनह सींग को घेटी असी कसी, कै आंख्यां ऊपर की ऊपर अर नीचै की नीचै चढी रै गी।"

सोहन सींग संभल्यो, फेर ऊबो हो'र परभू सूं बोल्यो-"या कांई लागै छै थारी ?"
परभू घणआ रोस मैं हो'र बोल्यो-"ईं सं् थारै कांई मतलब छै। या तो म्हारी धरम की बैण छै अर या ईं कांई गाव की सगली बैण-बेटयां ईं धरम की बैण्यां होवै छै। पण थारो तोम ्‌हूं बाप चूं। अब लगा ई कै हात।"
सोहन सींग बोल्यो-"ज्ये तूं कांई करैगो। परभू बोल्यो थारा करमां को फल चखाऊंगो।" परभू दीखताईं राधा कै घमी हीम्मत आगी छी। पण आंख्यां मं गलेडू बी आग्या। गलेड को ऊन्नै पलकां बैरै नै खडबा द्या, पण ऊंकी चांच हाल बी छानी नै होईं छी। वा तो गाल्या खाड्यां ई जारी छी।
राधा अब एक आडी ऊबी होगी। परभू अर सोहन सींग मं मल्ल-जुद्ध बोबा लाग र्यो। राधा गाबा-गाबा मं सोहन सींग कै धक्का लगा आवै छी।
दारू मं धुत्त सोनह सींग मकुबाल करबा मं घमओ पाछै होत जा र्यो छो। ई लेखै लतात नै झाड़तो-झाड़तो भाग छूट्यो, अर जाता-जाता परभू नै ज्यान सूं मारबा की धमकी देग्यो।
परभू राधा नै भारो ऊंचा'र गेलै-गेलै सर्राटे सूं चली ग्यो। राधा बी भारो ले'र बेगी-बेगी गांव मं आगी छी।
घरनै आता ई भारो जमी पै पटक'र राधा की आंख्यां में सूं आंसवा ं का धारवा चाल खड्या बसकाड़ा सूं हचक्यां बंधी जा री छी।
राधा की जीजी गोदडा फांकर उठी अर राधा नै बसवासती बोली-"कांई होग्‌ोय मूंडा सूं तो बोल।"
घणी बार पाछै राधा का मूंडा मं सूं बोल फूट्या, अर आप बीती सुणाई। सुगना तो सुणताई सन्नाटा मं आगी। सारे दन घमी दमनी-दमनी'री।
दनाथ्यां की छीतर आयो अर ऊंकी साता पूछबा लाग्यो। सुनगा नैं तो जाणा सुणी ई कोई न्है ज्वाब न्हैं द्यो।
छीतर फेर बोल्यो-"कांई जीव सोरा कोईं न्है कै।"
सुगना बोली-"सोरो कांई छै म्हारै तो एक भूत पाछै और पड़़ग्यो।"
छीतर बोल्यो-"अब कस्यो भूत पाछै पड़ग्यो आछी तरब बतावै न्है।"
सुगाना बोली-"बताऊं कांई म्हारो तो जीबो ई मुस्कल होग्यो।"
छीतर बोल्यो-"कुलासा तो कर बात कांई छै।"
सुगना बोली-"यो सोनह सींग आज छोकरी की आबरू ले लेतो, मनख जमारो ई बगाड़ देतो। आग मल्यो। धोला मं धूल पड़ जाती ज्ये पंडा को परभू न्हा दौड़तो। भगवान ऊं की हजारी ऊमर करै, दन दूणो रात चौगुणो ओहदो बधे ऊंको। ऊंको अहसान जनम भर न्हैं भूलु म्हूं तो।"
छीतर कै बीसगली बात सुणताई सन्नाटो छा ग्यो। घमी देर तांई बैलां की बछड़ी जोड़ी का डूंड्या बैल नै ठाण मं चारी चरता नै न्हांलतो र्यो। घमी बगत पाछै सुनगा सन्‌ाटो तोड़ती बोली-"अब तो छोरो बेगा ईं हेरो छोरी का पेला हात कर द्यां। गांव घमा बगड़बा लाग ग्यो।"
छीतर सुनगा पै झूंझल खा'र बोल्यो-"छोरो कांई म्हारा खल्या मं धर्यो छै, ज्ये एक दन मं ब्याव कर द्युंगो। पीसा-कोडी को सतूनो बी जमाऊंगो। एक बैल फैली मर ग्यो। असाडी माथै आर्गी, ईं का बी बंधाण बांधणा छै। न्ता मं एक चन्ता तू लगा दै।" राधा नै पाणी को लोठ्यो ले'र मूंडो धोल्यो छो। अब बस्तो खोल मास्टर जी नै द्यो घर पै पढबा को काम पूरा करबा लाग गी।


कोर गोटा को धोली मुगजी दबे राता रंग को लूगड़ो। हात मं पेला गोटा अर काचा लच्छा सूं लपटी पेली कांचली। तड़कै-तड़कै काची रोटी की बगत, नायां कै छोट्या की बू रामी बा नै गरयाला कै गाबै गाब आती मत्नी।
नेगण को रातो-पेलो माथो देख'र बा रामी नै पूछी-"आज नेगण जी तड़कै-तड़कै ई रातो-पेलो माथो कहां से कर'र आया।"
नेगणी जी बोली-"पगां लागू छूं सासूजी। अजी ससरा हरक चन्द जी कै नरमलजी को ब्याव आग्यो। उकीरो झेलबा को बलाओ देबा आईं छूं।"
बा रामी बोली-"कमाईं आगी री भाईं थारै तो घमआ दना सूं गांव मं बी सूनाईं माच री छी। चजाल चोखी होईं छाहलो होयो।"
नेगण जी बोली-"म्हां कै तो थां लोगां सूं ईं कमाईं छै जी भाई सासूजी। बा रामी थां कै तो कमाईं छै ईं सणी पण म्हांकै बी थां कै बना काम न्हैं चालै बणा।"
नेगम नै बा रामी सूं बातां करतां-करतां मंगला जी कै बारमऐ हेलो पाड्यो। ये कुण छै, कोको छै ससरा हरकचन्द जी कै य्हां को मरद-बायरां को, लगन झेलै जी को, बन्दयाक बैठे जीं को।
ब्याव का बलावा की आहट सुणतांईं पाड़ा में बायरां कै हरक को हबोलो आग्यो। ज्सांय होील को डांडो रपतांईं छोरां कै छोक चढ़ जावै छै। अर रात पड़ तांईं धामत ताल्यां देबा लाग जावै छै। कदी कोईं का डांडा-बलीडां खांचै, छनवाड्यो का छाणां चोरै, हल-कूल्यां ने उठा लावै और बारै चूतरयां पै बछी खाटां-गोदड़ा नै बी ला-लवार होली को पेट भर दे। कदी मसत्यां मं बोकड़ा बोलबा लाग जावै, कदी मनख्यां की नकल्यां बणा-बणा'र हांस्या मं लोट-पोट होता रै।
उस्यां ब्याव-सावा मं लुगायां कै छोक चढ़ ज्या छै। हाड़ौती मं तो कहणावत छै कै होली का बराड्‌या लोग अर ब्याव की बगड़ी लुगायां नै सुधरै।

लुगाया बी कांई कसर न्है रखाणै। ब्याव-सावा मं पहर रात तांईं गाबो-बजाबो नाचबो-कूदबो। ब्याईं सगां की ससकर्यां करबो, बोकड़ा बोलबो, बातां का पचेटा मारबो, सगली कसर काढ ल्ये छै। छावै घर मं छोरा-छोरी रोवै, खसम लड़ै, सासू लड़ै पण चन्ता कम ईं रखाणै छै। ब्याव की आड मं वे बच बी खडै छै। घर को धन्धो, छाती-कूटो तो सदां ई रै छै। और तो और पैले पाड़ै बी ब्याव मंडे ते ओला पाड़ा की बायरां बी घट्टी मं गालो पटक तांईं लाडा-लाडी गाबो सरू कर दे छै.
म्हांका पाडा मं बा जोसण तो गावै ई गावै। एक दन मन्नै पूछी-"बा ाज कुण का बना गा'री छी। आपणा पाड़ा मं तो ब्याव ई कोईं न्है।"
बा बोली-"मोहन्यां का गा री छी।"
म्हूं बोली-"मोहन्यां कांईं आपणा पाड़ा मं रै छै।"

बा बोली-"पैला पाड़ा को छै तो कांईं हो ग्यो, दीना को बेटो, म्हारो बेटो कोईं न्है कांईं।"
बा का बच्यार जाण'र म्हारो मूंडो सट्ट हो ग्यो। गांव मं ब्याव मंडतांई जोसण जी ईं कांईं बायरां कै नुवो हट पटो लाग जावै छै पाणी-पणघट, नन्दी बीवरी ब्याव की ईं बातां।
ब्याव आग्यो भाया, चून पीसणो छै, माथा-चोटी करणा छै, घर-आंगणा अस्या हो र्या छै कै मन्नै देख, म्हारा घर आंगणा नै मत देख। फूअड़ लुगाईं की नांई। वे बी सुधारमा छै।
नरमल चन्द को ब्याव मंडतांई बायरां म ये बातां हो बो साधारण ईं छी।
वहाल तो ब्याव को सूं दन ईं आग्यो। अब तो बायरां ई कांईं, मरदा मं बी जान में जाबा को छोग उछाव भर ग्यो। छोरा-छापरां पै ईं कांईं बूढ़ा-बूढ़ा पै बी जवानी को सो रंग चढ ग्यो। व्हांकी पागड्‌या अर स्यापा का सल मटबा लाग ग्या। नरा नै तो नूईं स्याप्पा कांधा पै लटका ली। पराणी बदा कर दी। कमजीां अर धोवत्यां साबण सूं धपगी। छोरा-छापरां नै पेन्टा-बुशरटां पै परेसां कर ली।
मंडो जीम्यो नकासी कढी। लाड़ा का बाप की जान मं ले जाबा हालां की मनवार मं नाड़ की झुकबा लागगी। चूंदड़ी का स्यापा पै काचा लछ्या से बंध्यो नागर बेल को पान, स्यापी का पल्ला कै बांध्या हलदी रंग्या पेला चावल लाडा को बाप घर-घर जावै पेला चावल देतो-"ल्यो काकाजी नूतो, जान मं पधारो बूढा होवै तो ल्यो दाहजी नूतोजान मं पधारो।"

रांड़ सूं पंडा का गोपलजी रूस र्या छा लाडा का बाप नै मनाया।
लाडा का बाप बोल्यो-"थारी गाल्यां सूं पेट भर र्यो छै भाया।"
लाडा को बाप बोल्यो-"काकाजी बासण सूं बासण तो खड़क तांईं रै छै। म्हूं आप सूं माफी मांगू छूं। बेटो म्हारो कोईं न्है थाको ईं छै। बैटा नै परणा'र लाओ।"
गोपाल जी ने बी बैर की गांठ्या खोल फांकी, नुवो अंगोछो अर नूवी धोवती जान मे ं जाबा कै लेखै कांधा पै लटका ली।
जाना जाबा की त्यारी होगी। बैलगाड्यां मैं डोरड्यां बछगी। बैलां का गलां मं घूघर माला बंधगी। अर भाग फाटततां-फाटतां जान की गाड्यां जपगी।
नरमल म्हारा मामा को बेटो छो। ईं लेखै महूं बी जान मं गी छी।
छोरी राधी की बुआ का सासरा मं लागै छै। ईं लेखै बुआजी राधा नै फैली ई फावणी ले ग्या छा।
बायरां नै, गाड्यां हकलतांई नना-नना घुघरिया भरू पांव पनसेर्या उगेरद्या। मरदां नै गणेश जी की जयकार लगाईं। गाड्यां गुलाबपरा की आडी मुड़गी।
काली सीध पै कलेवा का अन्तज्याम कै लेखै सबसूं आगै पंडता की गाड़ी हकली। पाछै नगाड़ा अर बाजा हाला नै डोर पकड़ी। फेर तो रेलगाडी का डब्बा ज्यों सगली गाड्यां हकलगी।
बलद्यां का पगां न सूं उड़ती धूल नै गुलाबपरा का कांकड़ सूं ईं जान आबा को समचो दे द्यो। र्यो-सेयो बाजा'र नगाड़ा की गरणाट नै खुलासा कर द्यो। तीजा पहर आतां-आतां जान गुलाबपुरा मै आगी। लाडा का बाप नै बर-बंधावा मं लाडी के य्हां स्वास्यणाजी खनाया।
स्वासणा जी नै बना पराणी पछाण कै बी लाडी को बाप पछाण ल्यो। पैली सूगली फाग पै काचा लच्छा सूं बंध्यो नागर बेल को पान कमीज को उधड़यो खल्यो। ब्यावां फाय्य पगां मं फर्यां सरपटा। स्वासणा जी नै व्हां सूं ईं जा'र हात जोड़ राम-स्यामी करी। लाड़ी काबाप नै गलै मल'र पड़उत्तर द्यो, अर लाडी की माईं सूं बोल्यो-"जान आगी। बर बधावै आग्या। कारण बेगा करो। फेरा गुडल का ई छै।"
बायरां नै स्वासणाजी मण्‌ा तंलै पाटा पै बठाण्यां सरोपवा द्यो. अर हलदी-मेहंदी सूं भंड्या हातां का गाला अर मोरां मं थापपा लगा'र व्हांको लाड कर्यो।

अब तोरण की त्यारी होगी। लाडो घमी धूम-धाम सूं तोरण पै आयो. सूंड्यो भंगी पगां मं घूघरा बांध'र धपड़ा पै धोड़ी कै आगै घणो नाच्यो।
मंडा तलै पंडत फैैली सूं ईं त्यारी में बैठ्यो छो। बेगा-बेगी कर'र ऊनै लाड़ा-लाड्यां का फेरा को पतड़ो बांच्यो। अर कोल-बचन करा'र दोन्यूं को गरजोड़ो बांध्यो।
फेरां की रात नमटी। दूजे दन गोरण की त्यारी होईं। आज तो तड़का सूं ईं लाडी की माईं घमी उतावली में छै। वा बोली-"लाडा नै कंवर कलेवा पै बेगा ईं बलाओ। आरण-कारणा मं टेम घणो लागैछै। स्यालू-ब्यालू दन है। लाडी कै तांईं गणगोर पुजाणी, पालक्या चार करणो, काकड़-डोरड़ा पलटणा, जुआ ख्लाणो, मन्दर-देवरा, खेमजी, खेतरपाल ढुकाणां। एक ई सास मं बोलती जा री छी।"
जनवासा मं लाडा नै बलाबा कै लेखै बलावा पै बलाबा आग्या। पण लाडो अर जनेती तो घोड़ी बाजा सूं नन्दी पै हात-मूंडा धोबा ग्या छा।
नन्दी सूं बावड़ तांई लाडो कंवर कलेवा पै फरबारो ई आग्यो। मेंडा तलै कंवर-कलेवा कै लेखै रंग-भात का थाल सज ग्या। पण नेग लेबा सारू लाडा नै माथै हलायो। लाडी का बाप नै नोली खोल'र कोटा सूं फटफट्यो मंगायो।
लाडो मान्यो जनेती रंग-भात जीम्बा मं छा। बायरां गाल्यां मं गुलाबी हो री छी। छोर्या-छापर्यां एक-दूजी सूं मसकर्यां मं दीवानी छी।

राधा अर म्हूं बीं ऊं की बुआजी की लारां गाल्यां में बैठ्या छा। लाडा का भायलां मं मोहन अर खेमराज बी रंग बात जीमर्या छा। वै लाडा का खासम भायला बी छा। मसत्यां र मसकर्या की दीवानी बायरां ई न्है छी। जनेत्यां पै बी मसकर्यां को घणो ईं रंग चढ र्यो छो।
भाता जीमता-जीमता एक समचै मोहन की नजर्यां राधा पै टकगी। मोहन कै राधा कालज्यां मं कसगी। ऊ तो मसत्यां-मसकर्यां सभी भूल ग्यो। ऊंकी आंख्या तो राधा पै टकी की टकी रैगी।
राधा की नजर्यां बी मोहन की नजर्यां सूं मलगी। अर पुष्प वाटकिा मं राम-सीता की नांईं एक दूजा काम मन की बात-मन सूं क्हैगी।
मोहन का मनड़ा मं संकलप की नन्दी बैहगी कै परणूगो तो ईं छोरी नै ईं परणूंगो न्है तो..।
राधा नै बी गोरी मां मन मं याद करली। अर मन की मनौती मन मं ईं बांध ली। कै हे मां ! योईं तो छै म्हारा सपना को बींद। ईं कै कारणै ईं तो म्हनै सोहला दन गणगोर पूजी छी। बा पाणी की तीजां का बरत कर्या छा। सावण का सुख्या सोमवार करती बगत म्हनै श्योजी सूं यो ईं तो बर मांग्यो छो। हे म्हारी तुलसां माता ! म्हनै अमकारया को बरत, सामी रोटी, तुलसी बेवड़ो, गऊ को खूंओ छींछबो, थारा बड़ला नै लग-लगतै बारहा म्हीना सात्या म्हारा ईं मन का राजा कै लेखै ईं तो मांड्या छा। हे म्हारी अम्बा मां ! म्हनै छोटी मून बड़ी मून ईं बर के ले खैईं नेम सूं करी छी म्हारी महाराणी।
हे म्हारी गौरी मां! म्हारा मन की मनसा पूरम कर म्हारी दुरगा ! म्हारा मनड़ा नै थारो ई ं बरोसो छै, म्हारी राज राणी।
पण राधा का मनड़ा नै दूजा बच्यारां नै झंझोड़ो द्यो। कै "बाप तो गरीब छै। रेवड्यां को रैबो अर महलां कासपना क्यूं ले'री छै राधा।" पण "गाड का लाड छै" मन मं बसवास छै। अणहोणी बी होणी हो जावै छै। है म्हारी मां ! म्हारा मन की पूरी करबो तारै हात छै।

बायरां गाल्यां मं सूं उठ-उठ' जाबा लागगी छी। मन्नै अर बुआजी नै राधा झंझोड़ी कै चालां नै सगली बायरां घरनै जाबा लाग गी।
म्हां तीनों ई बुआजी का घरनै आया। घरनै राधा ने देख'र म्हनै राधा सूं पूछी-तू बोले नै बकरे हांसै नै टसै कांई बात छै। कस्यां सुन्न हो री छै। अब राधा नै ऊं का बच्यारां की पोथी खोली। उड़ती-उड़ती बाता बुआजी कै बी पल्लै पड़गी।
मोहन रंग-भात जीमतो-जीमतो चोरंग्यो सो होग्यो छो। खेमराज नै हंदेड्‌यो चत कहां छै म्हां तो आधा खाबा मं आया, तूं कस्यां बैठ्यो छै। कांईं कोईं छोरी चत मं आगी कै, बोल तो सणी। थारो बी गत गेलो करां भाया।
मोहन लांबी सांस खांच'र बोल्यो-"बात तो या ईं छै, पण काम घणो जबरो छै।"
खेमराज बोल्यो-"बता तो सणी। कसी छोरी आसै आगी। कांईं काम मुस्कल छै। आछी तणा फल्यां तो खोल।"
मोहन राधा की आड़ी असारो करतो बोल्यो-"परणूंगो तो ऊं छोरी नै ईं परणूंगो ्‌नहै तो..। खेमरजा भाया जबरो काम तो अस्यां छै कै छोरी हालां कै य्हां बात कस्यां पूगै। अर छोरी हाल त्यार बी होज्या, तो म्हारा भाइजी-जीजी नै मनाबो हथैली पै सरस्यूं उगाबा जस्यो छै।"
खेमराज घणी बार तांईं सोसल हो'र सुणतो र्यो, फेर बोल्यो-"घबरावै काई मी छै भायला। सगली तान-तोजी लगावैगा। थन्नै मरबा कस्यां देगा।"
मोहन बोल्यो-"कस्यां लगावैगो।"
खेमराज बोल्यो-"तू लाडा की लेरां जनावासे चाल। म्हूं मूल्या नै लेर छोरी की बुआ कै घरनै जाऊं छू। बुआ बात को सरलावो आगै चलावैगी।"
बुआ का घरनै बारै चूंतर्यां पै घणा फावणा बैठ्या बातां का पचेटा लगा र्या छा। खेमराज बी फैली तो वा मं भेलो हो'र बातां का गप्पा मारबा लाग ग्यो। पाछै भीतर जा'र पौल का गोखड़ा पै बैठ ग्यो अर बुआ कै तांई हांको पाड्‌यो।

ब्याणजी देखां जल-जल लाओ नै। बुआजी जल को लोठ्यो भर'र लाईं। दोन्यूं नै जलल प्यो अर लोठ्यो पाछी झालताी बगत खेमराजा नै मोहन की सगाईं को सरलावो चलायो ई सणी।
खेमराजा बोल्यो-"ब्याणजी थां की भतीजी की सगाई-फताई होगी कै।"
बुआजी बोली-"हाल तो नन्दी नै सूंसाड़ो भाया, छोरो ईं न्है मल र्यो।"
खेमराजा बोल्यो-"म्हा बतावां छोरो म्हांका गांव मं ई परणा द्यो नै।"
बुआजी बोली-"छोरो मल जावै तो थांका गांव मं ईं परणा देंगा।"
खेमराज बोल्यो-"छोरो तो राजा का कंवर जस्यो छै। पढ्यो-गुण्यो चौदहा जमात, रूप को डलो, बाप च्यार बैलां की जमी को जागीदार।"
बुआजी तो सुणतांई ऊंची सांस खांच'र बोली-"म्हार भाईं की असी गोदड़ी कोईं न्हैं मारा, ज्ये बडा आसाम्यां की धड़ झेल लै। हां छोरो तो पांच जमात तांईं पढ री छै अर रूपकी डलो छै।"
खेमरजा बोल्यो-"धड़ झेलबा की बात तो छोड़ो। बधाता का लेख होवै तो टाल्या न्हैं टलै। थां तो थांका भाई कै बात तो पूगावो।"
बुआजी बोली-"बात तो म्हूं पूगा द्यूंगी। वां कै तो वां कै ईं घणी चापर छै। पण यो सगपण तो..।"
राधा'र म्हूं सामला घर की तबारी मं ईं बैठी छी। वां की बातां सूदी काना मं पड़ री छी। राधा तो आंख्या मीच्यां घमा ऊंडा बच्यारां मं उलझ री छी।
खेमरजा अर मूल्यो जनवासा मं बावड्या तो खेमराज मोहन की आड़ी मुलक्यो। मोहन का मनड़ा मं थरदा को दोरो बह चाल्यो।
जान'की गाड्यां पाछी कसनपरा की आडी गुड़कबा लागी री छी। छोरा-छापरा आखै गेलै ब्याब की बातां करतो चूरो-बूरो खाता मसत्या-मसक्यां करता र्या। पण खेमराज अर मोहन तो ऊं की सगाईं की बातां में अस्या रम्या के कसनपरा कै गोयरै आतां-आतां बायरां का गीत को भणकार सुण्यो। टोडरमल जी त्यो छै। जद जाण ीकै गांव आग्य।

ऊंकार जी सूं कद अर कस्यां मलबा का कुलाबा लड़ोता-लड़ता खेमराज नै तो गाड़ी सूं उतर'र ऊं का घर की आडी मूंडो कर्यो। मोहन आपणी दुनिया मं फरतो-फरतो नाक की सूद मं घरनै जा पूग्यो।
दूजे दन नायां का दाहजी कान्हा जो धोला स्यापा पै नूईं पागड़ी लपेट्यां हात मं नारेल की डोडी ल्या्‌ं छोहका को चूर्या को नतूो देबा आया। खेमराज नै साता की सांस खांची कै बेगोईं मौको आछ्यो हात लाग्यो।
बाग मं खेमराज नै मोहन का भाईंजी-जीजी बी मल्या। मोहन की जीजी ने ब्याव की बातां चलाईं। खेमराज नै बातां ईं बातां मं मोहन की मन की बात अर लारां की लारं ई राधा की बढ़ाईं को बी घमओ पुल बांध्यो।
ऊंकार जी तो सुणतांई काला-पेला होग्या। व्हां को तो जीम्बा मं चतईं न्है लाग्यो। क्यूं खाईं अर क्यूं खाईं, दोन्यू जणा घरनै आग्या। घरनै आता ईं व्हांकी बू सूं दूंक'र लाल-पेला होता बोल्यो-"और खंदा बेटा नै कोटे पढबा। कटादी म्हारी नाग सगला चोखला मं। उन्नै ईं परणगो भापड़ो। हूर की परी नै। न्है तो मर जावैगो। म्हारी तो जड़ सूं ईं काटबा की ठाण ली पोपटी का नै। म्हूं च्यार बैलां की धरती को धणी। छीतर जस्‌ाय म्हारे च्यार हाली लागै छै। सगला चोखला मं म्हारो नांव की तूती बोलै छै। म्हारै यो सकपण कस्यां हो सकै छै।"
पण सपतार बेटो पैद कर्यो छै नै। मोहन की माईं कै बी सुणतांई त्वांलो आग्यो। वा दोन्यूं हातां सूं आंख्या मीच्यां म्हरला घर का टूट्या बलींडा कै लागी थूंणी को सायरो ले'र नमून खांच्यां बैठगी। ऊंकार जी अब छाना हो ग्या छा।


आज पूरो म्हीनो होग्यो। ससनपरा को अण्डो बच्यो ईं न्है मल्यो। दादा-भाभी कै राधा की सगाई का समाचार करती। चन्ता मं सूख र्या छै भापड़ा। राधा की बुआ मणी का मन मे ं घमी दबद्या सी लागरी छी। मन ई मन बच्यारां का धूंधाड़ा मं मणी बड़-बड़ाती जा री छी। म्हूं पढी-गुणी बी तो कोई न्है, न्है तो कागद पानड़ो मांड'र ई दादा कै समचो करती।
आजखाल तो ब्याव-सावा बी न्है चेत'र्या, सकर्यांत बी खडगी, कसनपरा सूं मनखां को आव-जाव को मौको ईं न्है दीख र्यो, बच्यार करतां-करतां सोरती की याद आई कै मेलो नीड़े ईं छै। छोरा नै बी बाबा कै ढुका आऊंगी, झूंपड्‌यां की स्याला की मूण्या बी ठंडा पाणी सारू ले आऊंगी, अर दादा कै राधा की सगाई को समचो बी कर आऊंगी। मेला मं तो कसनपरा का मनख मलैगा ईं सणी। एक बूणै दो काम होवैगा। मणी नै घमी साता की सांस ली।
आखर सोरती को दन आई ग्यो। मणी तड़काऊं मं कूकड़ा को कुरलाटो सुणताईं घड़ी की घंटी बाजे ज्यूं उठ-बैठी होई। झाड़ा-बुआरी, गोबर-पाणी, न्हाबा-धोबा सूं बेगी नमट'र उगता-उगता तो लाडू-बाटी की लोड्या बाजगी। काची रोटी की बगत छोरा नै नमटा'र धर झोली मं मठड़ी पाडा-ग्वाड़ा की राता-पेला हरया, गुलाबी ओड्यां लूगड़ान् मं तीतल्यां जसी बायरां कै गाबै मल'र वा बी एक तीतली भेली होगी।

मेला-खेला मं मनख्यां को न्यालो-न्यालो उछब-उछाव बी देखबा जोग ई होवै छै. गडार मं आता-जाती गाड्यां की मीठी रा मं रागी मलाती बायरां नन्यां नन्यां भरू जी नै लडाती मलैगी पूंग्या-पूपाड्यां बजाता छोरा-छोर्या को नजारो बी देखबा जोग होवै ई छै। बोकड़ा बोलता जोध-जवानी मं सरणाता छोरा, पोता-पोत्यां नै कांधा पै बठाणयां उचकाता, लाड करता डोकरा-डोकरी सगला रंग का मनख्यां को समदर होबा करै छै मेला-खेला।
मणी बी फीरा हलां का मलबा का उछाव मं सरणाट चली जा री छी। घूंघटा मं एक दो ठौर तो मनख्यां सू भड़भटा खाती-खाती बची छी।
फैली परतो मणी नै बाबै कै छोरो ढुकायो। पाछै महादेव कै परकम्मा कर'र नमट तांई ऊं की आंख्यां कसनपरा का मनख्यां नै न्हालबा में गडगी। पण कोई नजर न्है आयो।
हार-थाक'र भरावा की दूकान पै चूड़ा पै पतरी द्वाबा बैठगी। जदी राधा नै पाछै सूं आ'र दोन्यूं हातां सूं बुआ की भचक'र आंख्यां मीचली। मणी नै राधा का हातां की चूड्यां टटोल'र अन्दवाजा सूं राधा पुकारी राधा नै जोर सूं हांस'र मणी की आंख्यां छोड़ दी।

मणी नै राधा सूं घर का समाचार पूछ्या। राधा बोली-"भाईजी तम्बाकू की जूड़ी लेबा ग्या छै। जीजी'र म्हारी भाईली तलाव का बड़ कै तलै बैठी छै।"
मणी चूड़ा का पतरी अर पगां की फोलर्यां ले'र राधा की लारां तलाव का बड़ कै तलै आगी।
राधा की जीज, मणी कै पगां लागी, अर पूछी-"बाईजी थां कुण की लारां आया ?"
मणी बोली-"भाभी म्हूं तो अकेली पाड़ा की स्याथण्यां की लारां आई छू, ज्येबी खाम काम सूं। न्हैं तो म्हूं घर सूं बारै कदी अकेली न्है खडी। घमा दना सूं हुड़ीक'री छी कै कसनपरा को कोई दीखै-कोई दीखै। पम पखेरू बी न्है दीख्यो।"
सुगना बोली-"अस्या कस्या समचार छा बाईजी।"
कस्या समचार छै भाभी,ये ई सगाई-पताई का।
कुण की सगाई का ?
और कुण सगाई का। राधा की सगाई का। सुगना घमी उछावसूं मणी कोहात पकड़'र बोली-"राधा की सगाई का कांई समचार छै बाईजी बताओ नै?"
"बताऊंगी दादा नै बी आजाबा दे।"
दोन्यूं नणद-भाभी की बातां मं राधानै बाधा पटकी। बोली-"बुआजी म्हानै डोलर ममं हींदा हन्दा लाओ नै। जीजी नै तो डोलर मं भुवाली आवै छै।"
राधा की हां मं हां मलाती म्हनै बी बुआजी को हात पकड़ ल्यो'र बोली-"बुआजी थांकी लारां हींदबा मं घणओ मजो आवैगो।"
बुआजी म्हां दोन्यूं का हता पकड्‌या उठ बैछ्या होया। फेर म्हां डोलर हाला बजार की आडी तीनों ई चाल पड्या। डोलर का हींदा खा'र एक बावन्यां जोकर को तमासा देखता ऊं का छींगण्यां करता-करता बड़ कै तलै बावड़ आया छा।
राधा का भाईजी बी खोड्या केसर्या बाण्यां की दूकान को कला कन्द अर सेवड्या लेर आ ग्या छा।
राधा का भाीजी नै मणी बुआ कै माथै हात फेर्यो। बुआजी की आंख्यां मं सूं दो एक आंसू टपक'र गालां पै आग्या। सुगना पै बुआजी को हात पकड़'र गोडै बठाण्यां। राधा का भाईजी कलाकन्द अर सेवड्‌या को दूनो देता बोल्यो-"ल्यो सीरावण कर ल्यो।"
बरत हाला नै कलाकन्द अर बना बरत हालां नै सेवड्‌या को बी बड़ कै तलै मल-बैठ'र सीरावण कर्यो। सीरावण करतां-करतां ई बुआजी नै राधा की सगाी की फड़ बांचबो सरू कर द्यो।
मणी भाभी की आंख्या मं आंक्या मला'र कहती जा री छी, कै भाभी छोरो तो घणओ आछ्यो छै। रूपको डलो। जाणे राजा को कंवर छै।
पढ्यो-गुण्यो बी चौदह जमात तांई। बाप च्यार बेलां की जमी को जागीरदार छै। आस-पास का चौखला मं आछ्यो नामून छै। लेण-देण करै चै। घर मं गायां-भैस्यां दूध-दही का द'दाल छै। छोरी सुख पावैगी ओछ्ो ठाठ-बाट छै।
मणी तो ेक ई सांस मं सगली फोती बांचगी। सुगना नणद का मूंडा की आडी न्हालती सगला समचार चत लगा'र सुणती जा रही छी।
सुगना लांबी सांस खांच'र मणी सूं बोली-"बाईजी यो सगपण हो जावै, तो घणी आछ्यो। थांका मूंडा मं घी सक्कर भरूं। म्हनै तो चन्ता की मारी नींद ई न्है आवै। छोरी का हबात पैला होवै, जद गंगा न्हाऊं। पाका खेत की सी रूखाली चै, म्हारा बाईजी। गांव घमओ बगड़ ग्यो। अगणगट-पणगट पै लुगायां देखै तो जक न्है ल्ये। आंगल्यां सूं बतावै चै। कै छोरी मोट्यार होगी, म्हारी तो नींद ईं उड़गी। म्हनै अब कल ई न्है पड़ै। कांई करूं कांई न्है करूं।"
मणी बोली-"हां री भाभी म्हूं जाणं छूं थांकी दबद्या। जदी तो भाग'र समचारा देबा आई छूं. कै बधाता का संजोग हो जावै तो।"

छीतर, नणद-भोजाई की बातां छान-मून हो'र सुणतो जा र्यो छो। पण उन्‌ै तम्बाकू को कस लेपा मं ज्यादा मजो आ र्यौ छौ। मणी की बातां सूं जाणै ऊनै कांई लेणओ-देणो ई कोई न्है छौ।
छीतर नै सुन्न-मुन्न जाण'र सुगना बोली-"बाईजी की बातां नै सुण र्यो छो नै। छोरो घणो आछ्यो बतायो।"
छीतर पै तो सगुना की बात को फरक ई नै पड्‌यो। ऊं तो हुंक्यो न पावस्यो। बैठ्यौ-बैठ्यो बीड्‌या की बली बानी नै बारै खाड़बा कै लेखै बीड्या नै जमी पै ठपकार तो र्यो।
सन्नाटा नै तोड़'र बात नै आगै सरकाबा कै लेखै मणी बोली-"हां रे भाई दादा, ईं छोरा नै तो मत चूको।"
छीतर तम्बाकू की खोतली मं बीड्यो घमआ चतन सूं धरो बोल्यो-"मणी तूं बी काई बावली बाता ंकरै छै बणा ? कहां राजा भोज कंठी गंगू तेली। ऊंकार जी च्यार हलां को तमालक। म्हारै जस्यां ऊं कै हाली लागै चै। वै म्हांको सगपण कस्या मान लेगा ?"
सुगना बोली-"फेर बी एक बार था जाओ तो सणी। आपण बेटी हाला छां। सतरा बार नाक रगड़ी पड़ै छै।"
छीतर झूंझल खा'र बोल्यो-"वां खंदा'र कांई म्हारी पत खोवेगी कै ? सपड़-सपड़ मूंडा नै लेर पाछो बावडूंगो।"
अब सुगना नै बी रोस आग्यो। वा बी रोस खा'र बोली-"मत बगाड़ो थां ती पत। बठाण द्यो बेटी नै मनद्र पै मीरां बणा'र। अर सोजाओ नौ हात की मूसोड़ मं खूंटी ताण।"
छीतर ने बात बगड़ती सी जाण'र एक गोटी चाली ऊ बोल्यो-"प्हैली थारी बेटी सूं तो पूछ लै। और नै तो वा ई बात बड़ा घरां बेटी दीनी मलबा का संसा।"
सुगना बोली-"बेटी सूं कांई पूछुं बैल'र बैटी नै तो द्ये ज्याईंं जाणओ पड़ै छै।"
छीतर नै ऐक चाल फेर चाली बोल्यो-"तूं बावली की नांई बातां करै छै। अब जमानो घमो पलट ग्य। गी-गुजरी ये पराणी बातां।"
भाई-भाभी की नोक-छोंक कै गाबै पड़'र मणी बोली-"भाभी राधा कै तो सोला आना आसै छै। म्हनै गुलाबपरा ई पूछ ली ची। वा छतीर सूं बोली-"दादा राधा तो त्यार छै।"
अब छीतर का सगला बहाना समट ग्या। लांबी नसास खांचतो बोल्यो-"जाऊंगो बणआ, पण ऊंकार जी..।"


सयां-सट्ट काली रात राणी की गोदी मं सगली बस्ती नन्दरा मं डूब री छी। काली अंधेरी रात का डर की मारी जीव-जनावार तो कांई जामै रूंखा का पानड़ा बी छापल र्या छा। हरमी माथै आगी छी, पण छीतर की आंख्यां पै चामड़ी न्है फरी। कदी खाठ पै उठे कदी बैठे। कदी घर का डांडा-बलींडा गमै अर ब्यारां का भरमणा मैं पड्‌यो-पड्‌यो मदनपरै जाबा को तकमीनो बणावै।
ऊनै घमओ ऊंडो बच्यार आ र्यो छै कै ऊंकार जी नट जावैग तो कस्यां आपमो सो मूंडो लेर पाछो आऊंगी ? न्है बोलेग तो कस्यां मनाऊंगो ? कदी बच्यार करतो कै छोरी नट जाती तो सगलो लफड़ ई न्है होतो। ऊंकार जी बड़ो आसामी छै म्हूं ठहर्यो गरीब आसामी। छीतर का मन मं या खणावत बार-बार धसेड़ा लगाती जा री छी। कैं करजो बलो न्है बाप को बेटी भली न एक, जींकी राम रखाणै टेक। पण म्हारै तो पांच छ। बे भगवान तू ई जाणै कस्यां नय्या पार लगावैगो ?
कदी छीतर हीम्मत बी बांधतो कै ऊंकारजी सगाई की हामल भर लेगा, तो आछी हूंस खाड़ूगो। रूपया माथै हो जावैगो तो चुकाऊंगो। मरदां का द्वाला मसाणा मं ई चुकै छै। पण छोरी कै लेखै पाछी न्हैं काटूंगो।
छतर का भेजा मं ऊंचा-नीचा बच्यार, रात्यूं आता-जाता र्या। बच्यार करता-करता आंख्या लागी ई छी, कै कूकड़ो बोल ग्यो। कूकड़ो बोलारो सुणतांई छीतर नै तुरत बछावमो छोड़ द्य। अर उठ'र आंख्या मसलतो-मसलतो नन्दी पै हात-पाणी लेबा ग्यो। नन्दी सूं आती ईं, थीर नै राधी की माई जगाई, कै सीरापम बांध द्यो। म्हूं जा र्यो छूं. पोल का क्वाड़ मार लीज्ये।
छीतर ने राधा का हात सूं कसीदा खड्यो थैला मं धुपी धोवीत, बंडीअर सीरावण की छाकधरी, अर कांधा पै थेलो टांक'र पोल की ठोकर पै पगधर्यो ई छो, कै स्वाल्या बोल्या। सुणताई छीतर का म्हरला मं आछ्या सूण का घमा सेला छांटा लाग्या।

बच्यार आयो-"छीतर सूंण तो घमआ आछ्या छै। काम सरैगो, ्‌सोय लाग र्यो छै। पण बच्यार ई तो छै समदंर की लहरां की नांई एक कै पाछै एक आता ई रै छैय ये कांई एक ठाम टकै छै ? ये तो दौड़ लगाबा मं लक्ष्मीजी नै बी पाछै रखामै छै।"
छीतर को तो भूल्या बाण्यां को ऊं ईं ढूमला मं हात जसी गत हो री छी। ऊंकारजी को भूत फेर सामै फर ग्यो. ऊंकार जी रामा-स्यामी को पड़ऊत्तर न्है देगो तो मन नै गाढो कस्यां करूंगो। आवबास नै देगा तोम्हनै कांई कर्णो छै।
छीतर मदनपरा को कांकड़ आता ईं सावचते होग्यो। छीतर नै मदनपरा का कांकड़ की तलाई मं आछ्या हात-मूड़ो रगड़-रगड़'र धोयो, धोवती को धूलो झटकार्यो, कांधा पै लटकी राती स्यापी सूं मूंडो पूंछ्यो, पाछै छाक मं बंध्यो सीरवाण थैला मं सूं खाड़'र पाल पै बड़ कै तलै बैठ'र सीरावण कर चलू कर्यो, फेर आगै सरक्यो। छीतर को गांव मं उलबो होयो कै एक बायर कुआं पै सूं पाणी को भर्यो बेवड़ो ले'र सामै आती मली।
भर्यो बेवडो देख'र छीतर का मन मंं फेर आछ्या सुण की थरदा आई। ऊंकार जी को घर बी बज्यारा कुआं सूं थोड़ी छैपी पै ई छो। व्हां की पोल का बड़ा बड़ा दपड्‌या क्वाड़ कुआं कै गोडै सूं दीखबा लाग जावै छै।
हीम्मत कर अब छीतर ऊंकार जी की ठोकर पै पूग ग्यो छ। ऊन्नै पोल की सांकल बजाई। बच्यारां का एक पै एक रूलका तो ऊंका भेजा मं चाल ई र्या छा। अब नमून खांच'र क्वांड़ खुलबा की बाट देख र्यो छो। थोड़ ी टेम पाछै एक बायर नै पोल की भज्याकल खोल'र बारै देख्यो, उन्ने थीर कै तांई देख तांई लांबो घूंघटो खांच्यो अर पाछी भतर उलगी। पाछै तोल पड़ी कै भज्याकल खोलबा हाली बायर। ऊंकार जी की बैहण मोत्यां बाई छी। वा ऊंकी छोरी का ब्याव कै लेखै भा नूतबा आई छी। दो-च्या बायरां और बी नुवा-नुवा राता-पीला लूगड़ा मं आंगणा मं बैठी-बैठी बीरा गा री छी।
मोत्यां ै ऊंकार जी तांई छीतर कैआबा को समचो घर मं जा द्यो छो। पण ऊंकार जी तो घमी बार तांई ाया ई कोई न्है। ज्याग मं सूं कोई आतो न जाण'र छीतर पोल का चूंतरा पै बना मनवार कै आपूं ई बैठ ग्यो छो।
ऊंकारो जी तो छीतर का ाबा का समचार मलता ई लुगाई सूं घुसर-पुसर करत कहतै जा र्या छा कै बोल-अब कांई क्हू म्हारा बाप सूं। आण बैठ्यो जम को दूत ? लुगाई कांई न्है बोली, सोसल हो'र सुणती री।
ऊंकार जी तमक'र फेर बोल्यो-भाटो कस्यां होरी छै, बोल तो सणी। देख थारैा बेटा का माजणां। म्हारो मोहन-म्हारो मोहन करै छै। अब कर ऊंकी मन चीती।
ऊंकार जी बू फेर न्है बोली। अब कै ओर जोर सूं तमक'र ऊंकार जी बोल्या-"कांई सांप ईं सूं ग्यो कै।"
ऊंकार जी की बू कै मन मं तोदम-दम न्है मा'री छी पम बस कुण पै चालै। मंदरी सी बाणी मं बोलनो ई पड्यो-"भरल्यां हांरी न्है तो..।" ऊंकार जी नै कस तो घणा आ र्या छा पणबेटा की मन की चीती कै आगै हार ग्या छा।
अब ऊंकार जी रोस भर्या पीता नै पीता-पीता पोल मं आग्या छा। ऊंकार जी देखता ईं छीतरा चूतरा पै ऊबो होग्यो। राम-स्यामी मं छीतर का दोन्यूं हात जुड़ ग्या। ऊंकरा जी नै बी रामा-स्यामी को धीरां से'क पड़उत्तर द्यो। घमी बार तांई दोन्यूं चूंतरा पै छाना-मूना बैठ्या र्या।
मोत्यां बाई अब जल को लोठ्यो भर'र ले आई छी। छीतर नै जल पी'र लोठ्यो पोल का गोखड़ा पै धर द्यो।
जल बींपा कै पाछै, दोन्यूं की मून तोड़तो छीतर बोल्यो-"म्हूं बच्ची की सगाई कै लेखा आयो छूं मारा। गोत-नाता तो आपमऐ मलै ई कोई न्है। म्हंसू बणै जस्यो जल को लोठ्यो हाजर करूंगो। बच्ची घर का काम मं हुस्यार छै। पांच जमात तांई पढ़ी-गुणी बी छै।"
ऊंकार जी नै छीतर पै घमआ कस आ र्या छा। कै थारी या बिसात, म्हारै'र थारै क्सया खूण्या मं बर्याबरी छै। थारै जस्या म्हारै च्यार हालै लागै छै। पण करे कांई बेटा की चीतो नै मूंडा पै ढाटो लगा मैल्यो छो। आखर घमई बार पाछै ऊंकरा जी धीरां से'क बोल्या ई सणी-"खनाद्यो पेली पानड़ी।"


राधा को मन अबाणू-अबाणू तो उमंगा का मेला मं रमबा खड्यो ईं छो। नुवा-नुवा सपना को ताणो-बाणओ सरू होयो ईं छो। ऊं का मनड़ा का बाग की कली घूंघटो खोलबा ई लागी छी। कै तुरत-फुरत मं ईं दन आंथ ग्यो। घोर अंधेरी काली रात नै बछावणो बछा द्यो। जठी देख ऊंठी ईं उमंगा का भड़सला फूट्या अंकुर मुरझा ग्या।
दन राधा को ईं आंथ्यो छो औरां सूं तो दूणो मसत्यां-मसकर्यां र्यो छो। मसत्यां करै बी कानै, मसस्त्यां को राज छो। रूत महाराणी नै सूना मं सुहागो और भर द्यो छो।
रूत घमी सुहावणी छी। घणी-घणी मन भावणी। सगला मसत्यां मं भर र्या छा। भांत-भांत का रंगा सूं सज र्या छा। कचनार नै राती स्यालू ओड राखी छी। पलास अर सेमल नै बी बर्याबरी पै कमर कस रखी छी। आंबां नै माथ पै तुर्रा सणगार ल्या छा। जाबा हाला नै महाराणी का डर की मारी लत्ता फांक द्या छा। आबा हाला नै महाराणी की अगवाणी मं घूंघटा खाड ल्या छा। खाडै बी कानै या छी रूतवां की राण्यां मं पटराणी बसन्त महाराणी।
महाराणी नै आती देख'र पसबा मं बी हांसबा की होड लागगी। तीतलयां अर भंवरा बी मसत्यां मं भर ग्या। अर पसबां पानड़ा को घणो-घणो लाड़ करबा खडग्या।
महाराणी नै आती देख'र मरद-बायरां बी रंगीला-छबीला रंगा मं रंगबा लाग ग्या। खेता मं सरणाईं पाकी साख नै देख-देख'र नसा मं गम र्या छा, अर धर्याण्यां लेखे नुवा-नुवा गाबा अर गैणा लाबा मं बक र्या छा।
मोट्यार छोर्यां बी ब्याव का सपना मं गम री छी। आपणां डील को, गुलाब का पसबा सूं मुकाबलो करबा मं रम री छी।
पण, अतना का गाबा मं बी राधा की मस्ती घोर मावस की रात मं पलटगी छी। मसत्यां अर मसकर्यां का सुकाल मं बी ऊं पै घोर काल की छाया पड़गी छी। अर मनड़ा पै घोर नरासा नै राज कर ल्यो छो। मोज-मस्ती समून चूल्यो ठोक'र कपूर को डलो बण'र उडगी छी। हांसबो-मुकलबो तो कोसो दूरै, दूजा कालज्या मं बोल्यो का बेजक्या को जाल बछ ग्यो छो। आंख्यां में बरखा नै राज कर ल्यो छो।
चन्दरमा जस्या मूंडो। सुवा जसी नाक। गुलाब की पांख्डाय ज्सया होठ। हरणी जसी आंख्यां पै समून पालो पड़ ग्यो छो। कनीर की कामड़ी जसी राधा सूख'र कांटो होगी छी। आंख्या ईं आंख्या मं राधा को जीव बच्यो छो। ब्याव कै फैली मीठा-मीठा सनपा का लाडू बांध्या छा। बूर की नांई बखर'र धूला मं मल ग्या।
बखरै की कानै डायजा को पालड़ो घणो फोरो पड़़ ग्यो छो। सासू-ससरा अमग्या का अगम्या ईं रै ग्या। ससरो अर जेठ तो मन की मनसा मन मं ईं दबायां र्या पण सासू कै तोडायजा को घमओ ई धबलको उठे छो। लाईं की लपटां कदी-कदी तो घमी ऊंची उठबा लाग जावै छी। वानै सेली करबा कै लेखै वा बेथाक गाल्यां की गोल्यां दागोब सरू कर दे छी। जठ्याणी बी मूंडो मरोड़ मरोड़, सासू नै भड़काबा मं कसर न्है रखाणा छी। जठ्याणी तो राधा सूं खार खायां बैठी छी। वा तो मोहन नै ऊं का काका की बेटी रूपाली नै परणाबो चावै छी। अब बा राधा नै कस्यां पचा सकै छी। मोहन नै बी उल्टी-उल्टी बातां मला-मला'र भड़काती रै छी।
राधा कै तो सबकी सुण-सुण'र कालज्या मं फाहरां पड़ जावै छै। छानै-छानै मोती सा आंसु टपकाती रैती। मन ई मन बाप की गीरीब नै कोसती रैती। कदी भगवान नै ओलमो देथी हे म्हारा नाथ ! म्हारा बाप कै तांई थनै असी गीरी बखाईंमी दी। गोरी मां सू बी बीनती करती- मां, थनै म्हारा मन की मनसा तो पूरी करी। पण, असोय कांई पाप आड़े आगयो ज्ये अस्यो घोर दुख मल र्यो छै।
राधा की सासू कै अब तो दन पै दन डाकण जस्या बीर बी चढ़बा लाग ग्‌या छा। फैली तो वा गाल्यां ई खाड़ै की। अब तो मारब कै लेखै चीमटो, बुवारो, धोवणओ, ज्ये पानै पड़ै ऊ की धमोड़ बा लाग'गी छी। ऊंको भैजो तो मारबा कै लेखै बायना हेरबा मं ई लाग्यो रै छो. जस्यां स्याग मंं नूण कम कस्या पड्‌यो ? रोटी के झाल कस्यां लागी ? राधा तो ऊंकी सासू का डर की मारी ऊं नै देकता ई धूजबा लाग जावै छी।
कदी-कदी बेराजगार, धणीं बसवास बंधातो। राधा नै घणा परेम सूं समझातो-बड़ा बूढ़ा की बात को बरो मत मान बी कर राधा। म्हारी नौकरी लाग जाबा दै। फेर थारी मन जाणी कर ज्यै। ्‌ब तो बेरोजागर छोरां नै सांगठ बी कर ली। विधानसभा कै बारणै धारणा पै बैठ्या छै। बेगो ईगेलो खडबा हालो छै।
राधा के सुणताईं घणी साता आती। ोस को दुख अर एक को सुख को पालड़ो राधा नै घणो भारी लागतो। गौरी मां नै सवरती-"हे म्हारी मां ! एक का सुख सूं म्हनै न्याली मत कर ज्ये। म्हारा धणी कै ताती बाल बी मत आबा दीज्ये।"
एक दन राधा रोट्या बणा छी। सासू रसोईं मं आईं। राधा का हात सूं सासू की घसकी मारी दूध की कमोली ईं छटकगी। सगली रसोईं मं दूध-अर ठीकरा-ठीकर हो ग्या। दूध तो सारो डूल ग्यो। राधा का तो हात-रांव कांपबा लाग ग्या। सासू नै तो असी करी कै चू्‌ल्हा मं बली लाखड़ी खाड़'र ऊंका पगां मं झमोड़ दी। अर बारै खड़गी। राधा, एक खूण्यां मं बैठ'र रो री छी। जदी बाण्यां कै भंवरा बाई छ्याछ लेबा आया। बोल्यो-भाभी कांई कर री छै। छ्याछ मैल दै।
राधा की साकू राधा पै लाल-पैली होईं री छी। भंवार बाईं सूं बोली-"री री छूं म्हारा कमर नैछ छी ज्ये ईं पानै पड़गी, उतार को ठीकरो। अर हात पकड़'र भंवरा बाई नै रसोईं मं लेगी। फूटी कमोली की ठीकर्यां बताती बोली-कांई करा भंवरा बाई, म्हाकां मोहन को तो करम ईं फूट ग्यो। पढयो-गुण्यो, रुपको डलो, पण करम तो पातलो ई खड्यो।"
देखो, सरमाजी को राम गोपाल तो पांच जमात ईं पढ्यो छै, ऊं कै बी सासरू सूं फटफट्यो आयो छै। नरमलचन्द आठ जमात ईं पढ्यो छै, फेर बी पल्लो पकड़ा ई मं फट्फट्यो सगाईं म पूरा अक्यावन हजार रोकड़ा आया छै। सासू साडो पाका गोटा को भरवां जाल को।म्हारै तो काचा गोटा को अमीटेसण बलै छै। नकदी कै नांव पांच हजारी रूपल्ली। फांक द्यूंगी म्हूं तो भाया सासू-साडो सूगलो। बनागत को। लाड़ा बाईं की आडी। फहर लेगी ऊंकी महतारी कै बहण्यां।
भंवरा बाई बोली-"न्है री भाभी। अस्यां तो मत कर ज्ये। गरीब होवैगा री भापड़ा। घर म होवै तो बेटी नै देबो खुण नै बरो लागै छै।" फेर व्हांकै बेट्यांबी तो पांच बतावै छै। तीन तो ब्याव कै खावै आ'री बताईं व्हांका बी तो पेला हात करणा छै।
सासू नै भंवरा बाई की नरमी की बात कस्यां सुहाती। सुणताईं भभक पड़ी। बोली-"पांच ई बलै छै। स्वा-स्वा बरस मं पांच कांवर जालन्यां भेली कर ली। तीन तो होल्यां हो'री छै होल्या काणां कस्यां नंदरा आवै छै। या एक परणी बली छै। म्हांका फूट्ाय छै करम। म्हांकै कारणै ई घड़'र धर राखी छी महतारी नै? "
भंवरा बाई बोली-"बेटी की उम्मेद मं होगी हावैगी री भाभी।" सासू नै भंवरा भाई की समझदारी की बातां आछी न्है लाग री छी। उठ'र ओवरा मं कमोली मं छ्याछ लेबा चलीगी।
राधा का बसकाड़ा भंवरा बाई का काना मं पड़ र्या छा। पम भाभी नै समझाबो घमी ठेड़ी खीर छी। भंवरा बाई बोल्यो-"आछ्यां भाभी जाऊं छूं। घर नै जीजी बाट न्हाल री होवैगी।"


झूंझक्योपड़बा की बगत छी। सूरज नाराण, आंथो-आंथो मा की झोल्यां जा र्यो छी। आंथणी आडी जाती-जाती सूरज नाराण की करमआं राती-पैली हो'र बादलां सूं बदा ले री छी।
गायां-ढांढां का पगां सूं उड़ती धूल को धूंधाडड़ो उड़तो ज्यों लाग र्यो छो। घरां नै आबा की हर मं ढांढां-ढोर बेगा -बेगा म्हैलता, नाड़क्या हलाता आ र्या छा। व्हांका गला में बंध्या, टोकरा-टोकरी की बाजती सुर की तान मनड़ा नै घणी मोह री छी।
बा धन्नी हात मं लाखड़ी ले'र बारै चूंतरा पै बैठी-बैठी व्हांका ढांढा-भैंस्या नै हूड़ीक छी। अतना मं ई बन्दयूक को ध्माको सुण्यो-ठ्यां। भंवर्या की बू बी व्हाका ग्वाड़ा मं गायां बांधबा कै लेखै आरी छी।
बाधन्नी चन्ता करती नै भंवर्या की बू सूं पूछी-"का'री भवर्या की बू। य्हां बन्दूयूक कठी सूं चाली ? कांई ं गाव में धाड़ा हाला आग्या-बलग्या कै ?"
भंवर्या की बू बोली-"हां जी सासू जी या फेर चाली एक, तो, तीन, च्यार धाम-धड़ा-धड़ ईं लागगी।" भवर्या की बू फेर बोली-"धाड़ा हाला तो कोईं न्है दीखै सासू जी ? व्हांकी तो फैली गांव मं हाम फाट जावै छै। वे तो फैली ई कागद चपका जावै छै, कै फलाणऐ दन फलाणी कै य्हां धाडो पटकबा आवैगा। जी की म्हांकै तांई रोकबा की हीम्मत होवै त्यार हो जाज्यो। अर आपणा गांव मं पीसाहाल छै बी कुण ? कै तो धनपत जी बाण्यो, कै रखबजी। ये बी कोईं खास पीसाहाल कोईं न्है।"
वै तो नाम्यां सेठां कै य्हां आवै छै। बा धन्नी नै हां मं हां मलाईं। बोली-"होवै तो अस्यां ई छै री भाईं बणां। पण म्हनै तो बालपण मं घणा धाड़ाहाला देख्या छा। ईं लेखै स्याम की टेम बन्दय्‌ूक को धमाको सुणताईं म्हारो तो कालज्यो कांप जावै छै। धाड़ा हाला घमआ कसाईं होवै छै, बापखणा।"
म्हारा फीहर में दुलीचन्द सेठ जी कै आयो छो धाड़ो म्हारी बणा। धाड़ाहाल की बन्द्यूक का धमाका सुणताईं सगला घर हाला तो पाचला बारणा सू घर छोड़'र भाग ग्या। सेठ जी की माईं घमी मोटी छी। ऊंकै पंगी मं गठिया बादी बी आ री छी। जी सूं वा भाग नै सकी भापड़ी। सेठाणी नै बड़ी भारी कढ़ा मं घुस'र ऊपर सूं दूसरी कढाई ओड़ ली छी। पण बणा बापखाणा न सेठाणी की चोटी दीख आईं। सेठाणी सूं व्हांनै तजोरी की कूंच्यां मांगी सेठाणी नै कूंच्यां नै दी कै म्हारै गोड़ै कूंच्या कोईं न्है तो म्हारी बणा बापखाणा नै सेठाणी की आंगल्यां पै रूईं लपेट'र तेल पटक'र आग लगाट'र जो ग्या कसाईं।
भापड़ी सेठाणी की आंगल्यां बलगी। म्हां ऊनै डूंडी बा क्है छा।
भंवर्या की बू बोली-"हांसी सासू जी, व्हांकै पेटा मं द्या-भाव थोड़ो ईं होवै छै। पण आपणै य्हां तो अस्यो सेठ कोई न्है।"
जी सासू जी कोई कै बोट होयो होवैगो। बा धन्नी हां भरती बोली-हां री भाई य्हा बी हो सकै छै। आपणा गांव मे कुण-कुण द्वासण्यां।
भंवर्या की बू बोली-"एक तो मोती लाल जी की बू दूजी मोहन जी की बू।" दोन्यू की बातां कै गाबै कान्हा जी की बू बी आ'र भेली होगी छी। कान्हा जी की बू बोली -"मोहन जी की बू नै तो हाल परण्यां ई आठ म्हीना होया छै।" अतना मं ई दाईंमाई रब्बो पुराणा लूगड़ा पै नुवो कोर गोटा को पैलो पोमचो ओड्यां हात मं रातो बटको, आखा सूं गोडा तांई लटकती झोल नै समटेय्‌ा घरी आडी जाती दीखी।
बा धन्नी बोली-"अरी कुणकै जणां आईं ? कुण नै पेलो माथो कर्यो।"
रब्बो बोली-"पगां लागू छू सासू जी।" बा धन्नी बोली-"सेली सपूती होज्यो।" आसीस सूं बना झोली भर दी।
रब्बो बोली-"अजी सासू जी सेठ मोती लाला जी कै भायो होयो छै। हाल तो पैलो ई कर्यो छै रातो और करूगी। नठा बगत होईं छै। घणा देवता ठोक्यो सेठाणी नै। पंडत जोतसी, कंडा-डोरा, नरसा, डांगदरण्यां, सब कर ल्या। पण जस तो म्हारा हात मं मंड र्यो छो। तीन दन तांई नस सूंती छी। नो ईं म्हीना मं ऊल्ला ने बेटो दे द्यो।"
बा धन्नी बोली-"आछी होई भापड़ी को हर्यो मूंडो होग्यो। घणी बांझ ख्वाईं भापड़ी सोभाग जी की बू तो क्वांड़ ई नै खोलै छी। कै तड़कै-तड़डै ईं बांझड़ी को मूंडो दीख जावैगो।"
बा सेठाणी को घमी हरक री होवैगी री भाई, पोता को मूंडो देख'र?
हां घणा राजी हो र्या छै। कह र्या छा कै सूना का कड़ा पैहारऊंगी रब्बो थनै।
बा धन्नी बोली-"फैहराणा बी चाइज्ये, आखर हजार बरस की नींव आईं छै। घर को रूपक। पण, छोरी हो जाती तो डोकरी कै कलेस आ जातो। घमी चीठी छै डोकरी। भंवरय्‌ा की बूर अर कान्हा जी की बू नै बी हां मं हां मलाईं। भंवार्या की बू नै एक तुर्ररो और मल्यो कै डोकरी की चमड़ी जावै पण दमड़ी नै जावै।"
डोकरी की बातां करती-करीत सब की सब बछटगी। भंवर्या की बू गायां-भैस्यां नै ग्वाड़ा मं बांध'र घर नै पूगी, अर स्याग राध'र रोटी को पटीको कर्यो छो कै नायां का माधोजी को छोरी गोरी बा धन्नी सूं कहतो सुण्यो कै मोहन की बू कै बी छोरी होईं छै।
बा थन्नी तो सुणताईं सोसल होगी। भंवर्या की बू नै क्यूं रोी ोईं क्यूं नै पोईं अर वां तो बा धन्नी के गोड़े समचार सुणबा आगी। सासूजी मोहन जी नै तो परण्यां ई हाल आठ महीना पूरा नै होया। या तो अठ्वांसी छोरी छै। पाछै दोन्यू घुसर-पुसर बातां करबा लागी गी।
भंवर्या की बू नै या बात कस्या पचै ? वा तो पाड़ा की नारद छी। तुरत-फुरत पाड़ा मं कसनाजी कै य्हां बाण्यां के दीपचन्द का घर नै तेल्यां कै मथरा जी कै य्हां, सगला पाड़ा मं कोको द्ये जस्यां। मोहन की छोरी होबा को काको दे द्यो।
दूजे दन तो सगलां गांव मं मोनह की अटवांसी छोर की बात आग की नांईं फैलगी। मनख-मनख कै मूंडै कै अठवांसी छोरी अठवांसी छोरी होगी। मोहन की बू कै अठवांसी चोरी कांईं होी जाणै एक अणोहोणी होगी। कोईं तो क्है पूरी छै। कोईं कह्‌ै अठवांसी होती तो बचती ईं कोईं न्है। नाला-नाला मूंड़ा'र नराली-नराली बातां। राधा नै छोरी कांई जणी अनरथ कर द्यो। घर हालां को रर्यो-स्यो सबर बी बाह'ल की नांई उड ग्यो। एक तो डायजो को पालड़ो घमओ फोरो, दूजी छोरी जणी। तीजी छोरी बी आठ म्हीना मं।
सासू-ससरा जेठ के य्हां बात गलै कस्यां अतरै। कै जीवतो मांखी नै कस्यां नंगलै। छोरी ज्यूं-ज्यूं दन खाडै राधा का कलेस का दन पै दन घणा गाजै। कै य्हां छोरी कस्यां बच री छै। घमई गजब की बात होगी। य्हां बू घर मं कसी, उतार को ठीकरो आगी। घर तो कांई ठौर-ठौर छोरी की चरचा होगी। पान की गुन्ट्यां पै, मोहन नै देखात ई बर्याबर का छोरी की खूण्यां भड़बा लागगी। मोहन नै नीचो दखाबा कै लेखै आंख्या का आसरां सूं बातां होबा लागगी।

हमका नै तो चौड़ैे-पाड़ै ईं कह दी कै या तो गांव की नाक कटगी।
मूल्यो मूंछ्या पै बल देतो बोल्यो-"यार म्हारे असी लगाईं होती तो नाक काट'र छोड़ देतो।" परस्यो बोलो-"म्हूं तो मन्दर पै बांध'र छुट्टी पातो। असी लुगाई नै रखाण'र कांईं चूल्हा मं बालती। मोहन्यो कांई मरद छै यार ?"
लोग ईं कांई लुगायां बी अणगट-पमगट न्दी-घाट पै मूंडा जोड़बा लागगी। या तो कमला की बात होगी। अठवांसी कस्यां बचगी ? सतवांस्या बालक तो रूंई का फल मं धर'र भांडा मं मैल द्ये छै। ऊ तो फेर बी बच जावै छै। पण या छोरी तो भांडा म बीन्है मैली। फेर बीकस्यां बचगी। गांव मं या तो अणहोी होगी।

रामूड्या की माईं नै तो गांव का अठवास्यां, मरबा हाला, छोरा-छोर्यां की पोथी ईं खोल दी। कै माल्यां का पांच्या जी को छोरो जाटा का गोपाला की छोरी, खमारां का धन्ना जी की छोरी तेल्या का चम्पा जी को छोरो, बामणा कै नाथू जी को पोतो, उन्नै तो पंचायत मं मण्डया पानाकी जाणै फड़ ईं बांच घाली।
ज्यात नै मोहन को घर ज्यात बारै कर द्यो। मोहन का मन मं फैल्यां ईं बहम को भूत बैठ र्यो छो। अब घर अर गांव की बातां सुण-सुण ओणू दन पै दन सक्कड़ होग्यो। भूत को अलाज अब तो बैद धनवन्तरी कै गोडै बी न्है र्यो। अब तो राधा को र्यो-स्यो सुख बी धामर ताली दे'र भाग ग्यो। चौमेर दुख का धसूल बछ ग्या। एक खूण्यो सुख को बच्यो छो। ऊबी अठवांसी छोरी नै पाट द्यो। सुख को सपनो कपूर कीनां ई उड़ ग्यो. राधा का धमी का हांसबो-टूंसबो को कोसां दूर भाग गयो, अब तो समून अणबोलो ईं होल्यो। झांकबो बी मोसर होग्यो। धणी का मुलकबा कै लेखै बी राधा तरसगी।
भूत नै अस्यो थानक बणायो, के ऊ तो दारू का रंग मं रंग ग्यो। दारू पी'र रात मं मोड़ो-बेगा आवै, अर राधा पै टैंणपा बरसावै।
अब तो राधा का सासू-ससरा, जेठ-जठ्याणी धणी, गांव का लोग दण्यां ने बी राधाक को जीबो हराम कर द्यो।

राधा, धमई दुखी होती। भगवान सूं बीनती करती-हे भगवान तू साकसी छै। म्हूं कुण-कुण नै बसवास बंधाऊं ? कस्यां बसवास बंधाऊ। य्हां ो चोमेर ईं बाह'ल फैलगी। म्हनै माई-बाप का सोगन खाल्या, रो-रो'र छोरी का सोगन खाल्या। पण बसवास की बाह'ल कोईं कै बीन्है चपकी। ऊपर की ऊपर ई खडगी।
फैली तो सासू कै डायजा को झकालां उठै छी. अब चाचवा मं डाकण और बार लाग ग्यो। राधा नैमारबा को अब आछ्यो मोको हात लाग ग्यो। नेकी अर पूछ-पूछ आंख्या पै चामड़ी फरै जतनी देर ईं ऊकी जबान छानी रै ती। जठ्याणी उठता-बैठता मोहन्या का कान भरती। ऊं तो फैली सीं ई काचा-काना को छो।
राधा की दसा को कीड़-खद्या गंडख की नांईं होगी। कस्यां बगत खाडै। कुण कै आगे रोवै। जापा मं राधा कैं तांई एक पाव घी तो कांईं, एक छटांक का बी सोगन मत लाग ज्यो।
पाड़ा-ग्वाड़ा मं कुत्ती ब्याव जावै, जद बी द्या मरता पाड़ा की बायरां मीठो लपटो रांध'र कुत्ती नै ख्वां दै छै। पमराधा कै तो ऊबी मोसर होग्यो।

राधा नै एक दन घमई बसवास की पोटली बांधी, रो-रो'र धणी का पग पकड़ ल्या, आक खाया, छोरी का सोगन खाया, भगवान की साकसी दी। सगला पापड़ बेल ल्या। पम चीकणा घड़ा पै पाणी ठहरै तो धमी पै पाणी ठहरै। पैहरां तांईं ऊबी-ऊबी रोती, री पण धमई कै तले पसेऊ न्है आयो। बहम को भूत नै थानकईं नै छोड़़यो। आखर घोर नरासा का राज मं राधा कै दुनिया में खनाबा हाला कै गोडै जाबा की जचगी। ऊं सूं बूजबा कै लेखै हरदा का पाना मं मांडली-"कै बोल, म्हारो कांई कसूर छो?" बच्याती-बच्यारती, राधा ऊबर हाला कै गोडै जाबा का अनत ज्याम मं जुटगी।
फैली तो बैठ'र बापा की गरीबी नै रोली, पाछै छोरी नै सगला घर हाला की आडी को लाड करबा बैठगी। अब राधा नै छोरी रगड़-रगड़'र न्वाईं। नुवो झबलो, नुवो झालरीदार टोपो फहरायो। आंख्यां मं काजल माथा पै नजर को टीको हातां मं लाडू-पेड़ा, पगां मं मामा की गेल को कालो टोको लगा'र मन ही हूस खाड़ी। पाछै घमआ लाड सूं छोरी का गालां पै चूमा-चाटी द्या। फेर छोरी नै आडी गोद मं ले'र माथा पै हात फेरती नै बोबो चुंखायो। पाठै खाट का बछावण का सल खाड़'र छोरी स्वाण दी।
अब दुनयिा को मैल, दुनिया मं ई छोड़ बा सारू राधा बी रगड़-रगड़'र न्हांई। नुवो, परणेती टापेटा को घाघरो, सूण को मुगजी दब्यो कोर-गोटा को पेलो पोमची गोटा को सात्या लागी कांचली पहरी माथा पै सुहाक को हींगलू लगायो मांग भरी। जाणै राधा कै सरूज पूजबा को आज ईं अण बूज्यो सुमरत खड्यो होवै।
सगलो सणगार कर'र पाछै मुड'र क्वांड़ को चूल्यो पकड़'र गंगा ज्यूं नरमल सूती छोरी का मूंडा नै ऊबी-ऊबी एकटक फैरां नूं तांई न्हालती री। छोरी का मूंडा नै न्हालताऽन्हालता ऊंका म्हरला मं बच्यारां को एक रूलका नै आछी झंझोडड न्हां की। कै राधा ईं अभागण नै दुनिया मं कुणकै आसरै छोड़ जावै छै। छोरी को जमारो तो भगवान नै यूं ईं घमओ बरो बणायो छो। कुण जाणै ईं की थारी जसी गत होवै। अरथारै स्वांईं ईं धरती पै छै बी कुण ईं को धमई छोरी ? लेचाल थारी लेरा। थारी गत ज्येईं ईं की गत छै। मेट दे सबको खटको। सोबा दे नछंग नन्दरा मं सबनै ।

आंख्यां सूं मोती टपकाती राधा ने छोरी बी आछ्यां छाती सूं चपका ली अर मौको देख'र घर सूं चाल पड़ी।
भगवान की लीला अपरम्परा छै, लेबा लागै तो टूंटी कै बूंटी न्है लागै अर बचाबा लागै तो मौत का मुंडा मं सूं बी खाड़ लावै।
राधा छोरी नै छाती सूं चपकायां लांम्बो घूंघटो खाड्यां बच्यारां का बीज बीणती सरणाटे जा रही छी, गेला मं ऊनै परभू मल'ग्यो। परभू नै राधा कै तांईं हांको पाड्‌यो "राधा" राधा ऊं का सासर मं ऊं को नांव सुणताईं ठम खा'र देखबा लाग गी तो देख कांईं।
राधा कै सामै लाम्बो पूरो, धोलो फबूक पजामो-कुरतो पगां मं गांधी छाप चप्ला आंख्यां पै चसमो लगायां पंडा को परभू ऊबो दीख्यो।
परभू बोल्यो-"कठी जा'री छै राधा ?" फैली तो राधा नै टालम-टोल करी पाछै बोली-अठी ईं जा री छूं। परभू राधा नै देख'र सोचा मं पड़तो बोल्यो-राधा तू तो घणी दबूल होगी। कांईं बेमार छी कै ? घणा मोसर सूं परेम का दो बोल सुंणताई राधा को कालज्या की कोडी सूं खड्यो झरणो आंख्यां मं हो'र फूट पड्‌यो। गाढी बांधी पीड़ा की पोटली गेलै-गाबै ईं बखरेगी।
परभू नै राधा बसवासी साता का ठंडा छांटा द्ये'र पूछबा ला'ग्यो-"बोल तो सणी , रोवै क्यूं छै ?" आखर, राधा का भच्यां ूंडा सूं पीड़ा का अटक्या बोल खड़ ई ग्या। परभू मरबा की बात सुणताईं राधा कै तांई हीम्मत बंधातो बोल्यो-"आप हत्या करबो तो घमओ बड़ो पाप छै राधा। अर ईं अण बोल्यो माणक नै थारो कांई

बगाड़़्‌यो ? ईं को पाप बी लारां ले जा'री छै। तू महतारी छै। ममता को ओंतार। देवी को रूप। दुरगा की ताकत। अर ईं अन्याय की मारी भाग री छै। राधा तू साच पै छै, तो मुकाबलो कर। ऊपर हाला पै बसवास रखाण। सांच कै आंच कोईं न्है राधा। एक दन दूख को दूध'र अर पाणी को पाणी हो'र रै छै। या अणहोणी मत कर राधा ? अबाणू तो तू थारा घर नै पाछी जा। म्हूं थारै लेखै नौकरी को टावस करूंगो। कुड़सी की नौकरी तो थनै मलैगी कोई न्है, पण चपड़ासण की नोकरी तो द्वाय द्यूंगो। हमीर परा म चपड़ासण की ठाम बी गमा दना सूं खाली पड़ी छै।" थारो'र छारी छोरी को तो पेट तो भर जावैगो।
राधा बोली-"तू चालती लोडी कमर पै मत ले भाया। म्हारै लेखै सूलां पै मत चाल परभू। थराी गरस्ती मं आग को पलीतो लगाबा हाला घमा हो जावैगा भाया तू हतेली पै ज्यान मत लै परभू। म्हारो कहणो मान। म्हारा करम मं मंडी जी नै म्हारै तांईं भोगबा दै म्हारा भाईं।"
परभू बोल्यो-"राधा, जद तो भाईंया नै होल्यो भर पाणी मं डूब'र मर जाणो चाइज्ये राधा। मन्नै म्हारो काम करबा दै। तू थारां घर नै बावड़जा।"
राधा बोली-"फेर तू मन्ने कठी मलैगो भाया ?" परभू बोल्यो-"म्हारी मास्टर की नोकरी य्हांई लाग'गी। म्हूं थारी नोकरी को कागद ले'र थारा घरनै आजाऊंगो।"
राधा बोली-"न्है भाया घर नै चोड़ै-धाड़ै मत आज्ये। मोको देख'र ईं आज्ये। न्है तो घर हाला थारो बहम करैगा।"
घबरावै मत राधा, अस्यो बावल्यो कोईं न म्हूं।
राधा बोली-"कतना दन लाग जावैगा रै ?"

परभू बोल्यो-"दन पन्दरा तो लगा'र ईं जावैगा।" दस दन पाछै परभू राधा की नौकरी को रूक्को अर ऊं पै लागी कै नौकरी पै चालणो छै। तीतरी मं मंडरी छी। तड़के च्यार बजयां नन्दी की गडार कै भड़ै तीन बूल्यां पै मल जाज्ये। म्हूं थारी बाट व्हांी कै न्हालूंगो। परभू राधा का घर की आडी ग्यो। ऊनौ मोक देख'र रूक्को राध के तांई पकड़ायो'र पाछै पगां बावड़ आयो।
करम की बात, राधा की जठ्याणी नै परभू रूक्को देतो देख ल्यो। वा पाणी को बेवड़ो भर'र आईं छी।
जठ्याणी को तो देखबो छो, कै राधा की तो पगां की धरती धसक'गी। ऊनै बच्यार कर्यो कै राधा आज तो थारी खैर कोईं न्है। थनै तेल पटक'र बाल्यां मानैगा। घर हालान नै तो फैली ई मनसोबो कर मल्यो छो, कै तेल पटक'र बाल द्यो रांड कै तांई, जद या नछंग नन्दरा मं होवै। सराणै चमनी जो'र धर द्यो। न्है रोग बांस न्है बजेगी बांसरी।
अर या ईं होईं। जठ्याणी नै बेवड़ो परांडी पै धरतां तो दे'र लागी पण रूक्का की बात सूसू सूं'र मोहन सूं कहबा मं बार न्है लागी।
सातू तो सुणताईं सरू होगी। राधा सूं बोली-"बता ऊ मास्टर थारो कांई लागै छै ? हाल तोईं बीपरेम पत्तर दे र्यो छै बापखाणो।"
खड़ जा म्हांका घर मं सूं। बैठजा ऊं कै ई। कुखराणा की रांड। म्हांनै क्यों लजावै छै। करजा कांलो मंूडे घर मं सूं।
मोहन तो सुणताईं दारू का ठेका पै जा पूग्यो। राधा कै तांई झूंझलो तो घमी आ री छी, पण भाटो हो'र सुणती जा री छी। अब तो हात मं नोकरी को रुक्को बी छो. अर तड़ कै चालणो ईं छो।
राधा नै जनाड़ै सगली रात जागबा मं ई बताई परभू का बोल राधा का काना कै उमैठा देर्या छा। कै राधा बना मौत मरबो आछ्यो कोईं न्है। अर ईं अबोलक नै थारो कांी बगाड्‌यो, जे तूं ई को बी खातमो कर री छै ? तू महतारी छै। देवी को रूप दुरगा की ताकत।
राधा नै दूजै दन, बेगी-बेगी छोरी की फोरी पातली गोद्यां अरे गबूल्या बांध्‌ा, पाछै छानै-छानै का उजाला मं अण बोल्यो-सूतो धणी को मूंडो देख्यो अर तड़काऊ तीन बज्या छोरी नै छाती सूं चपका'र छानै-छानै नन्दी की गडार कै भड़े का तीन बूल्यां की आडी चाल बा की त्यार कर ली छी।



तड़ाकऊ को तारो उग्यां, पारी की माई नै घट्टी ओरी। घट्टी का घर्राटा मं सब नींद मं सरणा र्या छा। थोड़ी बार पाछै, पारी की माई नै भजन उगरे द्यो.
"श्रीराम चन्द्र म्हाराज चल्या री बन खंड मं,
सीता सतवन्ती नार चल्या री वांकी संग मं।"
राधा की बी जाबा की बगत होगी छी। पारी की मांई को भजन नै सुण'र ऊं को दादरो भर्यो जा र्यो छौ। वा बच्यार करती जा री छी कै एक तो वा सीता छी, ज्ये राम कै बना महलां मं बी अकेली न्है रै बोच चावै छी। अर ेक म्हूं छूं ज्ये म्हारा राम नै छोड़'र अकेली जारी छू।
पण, करम-गत जाण'र गाढी छाती कर'र छोरी नै ले'र छानै-छानै पोल का क्वांड़ खोल'र रोती-रोची चाल खड़ी।
राधा घर सूं तो चाल खड़ी पण ऊंडा हेरा मं फस री छी। बच्यार आ र्यो छो राधा तूं कुआं मं सूं खड़'र खाईं मं न्हा जै पड़ै। डर की मारी कालज्यो, अतंग्या नालो छड़र्यो छो। ढांडा-ोर की पगवाल सुणै, तो अस्यो लागै, कै कोईं ऊं कै पाछै पड़ र्यो छै। कदी बालपणा मं सुणी भुत-चुड़ैल्यां की बातां याद आतां ई हेली हालो भूत नजर्यां आवै। कै आमल्यां पै बैछी चुड़ैल्यां चूड्यां बजावै।
दई-दई कर'र नन्दी की गडार कै भड़ै तीन बूंल्या आया। पण वां परभू न्है दीख्यो। अब तो राधा को जीव ईं खड़ ग्यो।
सोच मं पड़गी। राधा परभू कै भरोसे तो थनै घर छोड़ द्यो। अब ऊबी दगो देघ्यो। अरी राधा दुनिया दोगली छै। गरगट की नांईरंग पलटैै छै। आज का हेताल क्हाल बैरी बी बण जावै छै। राधा, थनै पराया मनख को अतनो बसवास कस्यां कर ल्यो ? थोड़ी बार पाछै परभू खार्या कुआ की गडार मं सूं आतो दीख्यो। राधा का जीव मं जीव आयो।राधा नै एक मन घणी सरस आई। ऊनै बच्यार कर्यो-"राधा। आपणा घर की परवाह न्है कर'र जीव हथेली पै' पै धर'र चालवा हाला देवता जस्या मनख कै लेखै, अस्या सूगला बच्यार रखांणै छै।"
परभू बोल्यो-"कतनी बार होगी राध थनै आयां ?"
राधा बोली-"थोड़ी बार होईं छै।"
परभू बोल्यो-"अरी भाईंजी कै रात ताप चढगयो छो। ओटाणओ द्यो। हात-बांप दाब्या जी सूं रात मोड़ो सोयो छो। तड़कै नींद मोड़़ी खूटी। ई लेखै मोड़ो होग्यो।"
परभू नै छोरी गोी मं ली। राधा नै लत्ता की पोटली माथै धरी। अर दोन्यूं हमीरपरा कै गेलै लाग ग्या। राधा को मन गेला मं दबद्या मं दरबड्‌यो जा र्यो छो।
"मा नै मा को जायो, यो छै देस परायो।" न्हा जाण न्है पछाण। नुवो देस। नुवा मनख। कुण छै राधा थारी आईं-बाईं को। अस्यां आवल्यां-झावल्यां आतां आतां हमीरपरा का रूखड़ा दीखबा लाग ग्या।
राधा मन नै गाढो बी करतो जारी छी कै हाल तो परभू छा आपणी लारां।
गांप कै बारै दो छोरो गुल्ली टैणंपा खेलता मल्या।
परभू नै पूछी-"भाया, मन्दरसो कठी छै ?" एक छोरा नै बतायो कै चल्या जावो। ऊं नीमड़ी का चूंतरा कै भढ़ै ई छै।
नीमड़ी का चूंतरा सूं ईं मन्दरसा नांव मण्डयो, बड़ो भारी बारणो दीखो।
परभू नै हात की घड़ी देखी, दन की च्यार बज री दी। मन्दरसा मं उलतांई छोरा-छोरी मास्टर लोगी व्हांकी आडी न्हालबा लाग ग्या। राधा नै लत्ता की पोटली बड़ा बारणा का एक खूण्या मं धर दी।
परभू नै बड़ा मास्टर सा को कमरो तलास्यो। बड़ा मास्तर सा पैतालीस पचास कै आवै-ढावै छा। दीखबा मं सूदा ईं लागै छा।
परभू नै रूक्को व्हांका हात मं पकड़ायो। बड़ा मास्तर सा. नै दोन्यू कै तांईं बैटबा को असारो कर्यो। परभू कुड़सी पै अर राधा छोरी नै ले'र नीचे बैठगी।
बड़ा मास्टर सा. बोल्यो-"पढ़ी लीखी हो क्या ?" राधा गरब सूं बोली-पांचवी पास छूं। बड़ा मास्टर सा. राजी होया-बहुत अच्छी बात है। हमारी बी समस्या सुलझ जायैगी। यह भोला अनपढ़ है। उल्टे-सुल्टे का करता रहता है। कभी इस कक्षा कै रजिस्टर उस कक्षा में कभी उस कक्षा कै इस कक्षा में देता है। अच्छा है, तुम एक महिला होकर बी पढ़ी लिखी हो।पढ़ाईं की बढ़ाई सुण'र राधा को दो आंगल खून बढ़ ग्यो। मनड़ो राजी का हींदला मं मचोला खाबा लाग ग्यो। जन्दग्यानी मं ज्ञान सूं ईं तो बढ़ाईं का दो बोल सुणबा मं मल्या छा। राधा का मन मं एक बच्यार आयो। कै राधा ईं् ज्ञान नै तू ौर बधा। कुरसी पै बी बैठबो सीख। पण तरुत ईं दूजा बच्यारा नै घरे ली कै महलां का सपना मत लै। धरती पै झांक। रैबा खाबा को तो ठौर ठकाणो ई कोईं न्हैं ?
चपड़ासी पाणी ले'र आग्यो छो। पाणी पी'र परभू नै बड़ा मा, साह. सूं कही कै ईस बोले को हमारे साथ भेज दो। हम मकान देख लें। मा.सा. नै भोलो व्हांकी लेरां खना द्यो। भोला नै लारां ले'र दोन्यूं मकान हरेबा ग्या।
हमीरपरा की बसावट गड़ार कै सायरै-सायरै लम्बी की लम्बी रेल का डब्बान् की नांई। आगे गडार पाछै धरां सूं सट्या खेत-कुआं।
घर तो घणा देख्या पण भस का भसोरा। करसाणआ कै ौर मलै बी कांईं ? राधा काभाग मं कमरा कहां मंड र्या छा। भस का भसोरा बी हाल खाली कोईं न्है छा।
हेरतां-हेरतां माल्यां कै लटूर्या कै य्हां एक घर मल्यो। घर कांई ऊं ईं भसोरो। टेम खाड़बा को अन्तज्याम। घर कै आगै बैल-ढांडा बंधबा की सालां पाछै घर। ढांडा भेलै ढांडा हो'र राधा ने बी रहमओ छो।
पण राधा नै तो मनख्यां सूं ढांडा ईं घमा चोखा लाग्या, ज्यानै कदी मारबो तो दूरो पूंछड़ी बी न्है हलाईंं। जाणै राधा बी व्हांका परवार की ईं होवै।
राधा का घर कै सामै लटूर्या की माई को ठकाणो। लटूर्या की माई अस्सी के आवै ढावै। मनख्यावड़ी घमी। बुलाक असी कै बोलै तो बोलती जावै। राधा बच्यार करती कै आगला भोतर मं या मास्टरणी होवैगी। ज्ञान अतरो कै आछ्या आछ्या नै हरा दै। पराणी बातां की तो वा फोती ईं खोलती रै छी। राधा कै पराणी बातां सुणबा को घमओ चाव छो। लटूर्या की माई छोरी नै पोती ज्यूं रखाणती।
परभू जाबा कै पाछै पूछती रैती कै बणा दुख मत पाज्यै। थारै खाबा-पीबा, पीसा-टका की कमी होवै तो सगोस मत रखाण ज्ये। एक दन ऊनै बातां ई बातांं मं पराणी बातां की फड़ बाचंबो सरू कर द्यो। वा बोली-"बणा गांव तो म्हांको छोटो ईं छो, पण गांव का मनख घणा दुख-सुख का काचरा होवै छै। पाड़ा-ग्वाड़ा मं टोटो-बाधो, दुख-सुख मं कोई परवार भूखो कांईं सो ज्या ? बणा ? घणी याद आवै छै। मनै ऊं दन की, जनाड़ै म्हांका टापरा मं चून न्हैं छो। मनै रात मं ई पाव'क ज्यार को दल्यो दल'र लपटो राध'र छोरा-छोर्यां कै तांई ख्वार'र स्वाण द्ंया। पण यो लटूर्यो घमओ भूखाल्यो छो। रोटी बना भूंभांडा पाड़ाबा लाग ग्यो। राधा थनै कांई बताऊं ऊं दन क बीता, अगडाल्यां मं बारै बैठ्या, दाहजी धन्ना जी काणां कस्यां भाप ग्या, कै आज म्हाकां घ मं चून कोईं न्है। वा नै लटूर्या को बाप बलायो। बोल्यो-" का रै गोबर्या रोटी-वोटी खाली कै ?" वै छाना होग्या। बोल्या ईं कोईं न्है। दाहजी समज ग्या। वां नै हाली सूं कटोरदान भर'र चून खंदाया, अर ईं को बाप घणो फटकार्यो। कै बेटी को बाप कांईं पाड़ोस्यां को धरम ई डूब ग्यो कै ? थोड़ो तो समचो करतो। म्हनै ऊं चून की रोटी पोईं बणा, अर ईं भूखाल्या कै तांई ख्वाईं। जद जा'र यो सोयो। अस्यो छो जमानो। अब तो घमी जलतांई फैल 'गी रोटी पै रोटी धर'र पाड़ोसी कस्यां खालै।
म्हां खावां दूजा भूखा मरै, जद राजी होवै।
"या पारट्यां रांडां नै और आग म घी न्हाक द्यो। ई नै बोट न्है द्यां तो ये सूंसांवै छै। व्हांनै द्या तो वै सूसावै छै। काम कोईं न्है करे। सब आप-आप का पेट मोटा करै छै। सूंठ को गंठ्यो मलतांई ऊंदरो पंसारी बण बैठ छै। डीलड़ो मं न्है मावै। वां की लुगायां का नराल ईं मुआला ऊंचा हो जावै छै। मनख नै मनख ईं न्है गणै।"
राधा नै लटूर्या की माई की बातां घणी आछी लागै छी। वा तो नौकरी कर'र आतां ईं घर का काम सूं नमट्यां पाछै, ऊं कै गोडै ई बैठ जावै छी।
लटूर्या की माई को राधा कै घमओ बसवास की। कदी-कदी परभू बी संभालो लेबा आतो रै छो।

 


लागतै असाड़....जुलाई म्हीना की पन्दरा तारीख। मन्दरसा की आधी छुट्टी कै पाछै, खाकी ंरग का गाबा फर्यां डाक्यो मन्दरसा मं आयो। अर ेक खाकी रंग को लिफापो, बड़ा मा.सा. नै पकड़ा'र चली ग्यो। असडा की सड़ी गरमी को बगत छो। राधा परांडा कै भेड़ै बैठी-बैठी छोरा-छोर्यां नै पाणी बी प्वाती जावै अर लूगड़ा का पल्ला सूं पसीनो बी बूंछती जावै। जदी भोलो राधा नै बेगो-बेगो बलाबा आयो, कै बड़ा मा.सा. बलावै छै। बड़ा मा.सा. राधा का हात मं खाली लिफापो पकड़ाता बोल्यो-"राधा की आपका ट्रांसफर मोहनपुरा में हो गया है।" ट्रांसफर को नांव सुणताई राधा कै तांई तो त्वांलो आग्यो। बच्यार आयो कै साड़ा-साती फेर लाग ग्या। राधा का तबादला की बात तुरत-तुरत सगला मन्दरसा मं फैलगी।कोई नै कही मिनिस्टर सूं मल'र बदली रूकाओ। कोई बोल्यो होणो जाणओ कांई न्है। गबूल्या उठाओ अर बदली पै जाओ। भात-भात का मनख'र भांत-भांत की बातां सुण'र राधा को मन तो चकरी खा ग्यो. कलेस की मारी रोवणो आग्यो। कागद हात मं ले'र राधा आंसू पूंछती घरां आगी।
बदली की सुणतांई घर नै आ'र राधा सूं पूछबा लाग्यो-"थांकी बदली डूंगरा का गांव मोहनपरा मं होगी बताई ?"
राधा बोली-"हां रै भाया।"
नोल्यो रादा नै घमओ बसवास बंधातो बोल्यो-"राधाजी था चन्ता खाईमी करो छो। यो नेतो लोदाराम खांई कै कारमै छै। कांई खा' नटगो ? घणा का तबादला रूकवाया छै। हाल तो परस्यूं ई पटवारीजो को रूकवा'र आयो छै।"
राधा बोली-"भाया तू ईं करा रै भाई यो काम, नेताजी सूं मल'र। थारो घमओ भलो होवैगो।"नोल्यो बोल्यो-"ेनेताजी कै तांई मनाबो तो म्हारा बावां हात तो काम छै। था चन्ता मंत करो राधाजी।"
नोल्या नै राधा को संकट लोदाराम जी कै गोडै पूगायो। लोदाराम जी नै कह खंदाई कै-"म्हांक ोकाम तो जनता की सेवा करबो छै। आधी की बी त्यार छां. काम न्है करेगा तो म्हनै कुण पूछैगो। अर मिनिस्टर तो आपमओ ई छै। राधाजी सूं कह दीज्यै कै तड़का की जैपर की गडाी को दो टकट मंगा लै। अर खुरी का टेसण पै आठ बज्या आ जावै। म्हूं टेसण पै ई मलूगो।"
नोल्या का मूंडा सूं लोदाराम जी को संदेसो सुणतांई राधा कै जैपर जाबा की थाला-बेली लाग'गी। घर बैठ्यां ई गंगा आगी तो वा क्यूं चकती। नोल्या नै टकट का रूपया देती राधा बोली-"भाटा टक बी तूं ईं कटाया रै। पाछै नोल्यो दो टकट कटा'र पाछा, पीसा, राधा नै पकड़ा'र चली ग्यो।"
राधा नै तड़के बेगी उठ'र न्हा-धो'र गेला कै लेखै सीरवाण बणा'र बटका मं बांध्यो। छोरी नमटाई अर लटूर्या की मार कै सुपरत करी। सात बज्यां तो राधा खुरी ता टेसण पे आ लागी।
लोदाराम फाक कै बारै ई ऊबो मल्यो। रेल एक घंटो मोड़ी छी। लोदाराम जी बैंच की आडी असारो करता बोल्यो-"आओ राधा जी बैंच पै बैठो।" राधा ने सरम तो घमी आ री छी कै पराया मरद कै जोड़ै कस्यां बैठूं ? पण यो बच्यार मन मं दबाया कै यो तो गेलो-घांटो छै। य्हां अस्यां थोड़ी ई गुड़ै छै ? सोच'र राधा बैंच पै बैठगी।
नेतो तो बैंच पै बठ्यो-बठ्यो अपमी नेतागरी की डींगा हांकतो र्यो। फलाणा मास्टर की, फलाणा पटवारी की बदली रुकवाई। मिनिस्टर तो मनै ऊबो ई न्है रै बा दै। अर काम कस्यां न्है करै ? चुनाण मं रात-ृदन एक कर द्यूं छूं आद-आद।
रेलगाड़ी आबा हाली छी। ऊंकी अगवाणी मं लोग-दणी ऊबा होग्या। हापां-धापी, धक्का-मुक्ती सूं डब्बा मं चढ़बा की रेलम-पेल लाग'गी। सीटां पै कब्जो करबा की होड मं एक डोकरी तो आडी ई पड़गी। सीटां पै अंगोछा, रूमाल, थैलां का बछावण बछ ग्या। बायरां नै बी छोरा-छोरी दचोक-दचाक'क सीटां घेर ली। लोदारम जी नै बी जोड़ै-जोड़ै दो सीटां रूकाली। राधा नै बी सामली सीट पै कब्जो कर ल्यो छौ। गाडी चाली। साता आी। लोदाराम जी नै जैपर का होटलां की गणती गण बो सरू कर द्यो, अर व्हांका ठोर-ठकाणा बी। कै मयूर होटल तो टेसण पै ई छै। मरूधर होटल अग्रवाल, होलट मिनिस्टर जीका बंगला कै नजीक छै। मालवीय होटल शिक्षा विभाग का दफ्तरा की आडी छै। बीकानेरी होटल बस स्टेण्ड कै गोड़ै छै। पण यो होटल सगला होटलां सूं मूंगो छै। राधा सुणती जार ीछी। लोदाराम जी नै राधा सूं पूछी-"राधाजी आपण कस्यां होटल मं ठहरेगा ?"
राधा बोली-"जस्यां थां ठहरावैगा वां ई ठहर जाऊंगी।" बारह बज्यां गाडी जैपर पूगी। प्लेट फारम पै हात-मूंडा धो'र दोन्यूं होटलां की आडी चाल खड्या। बीकानेरी होटल को बारमओ आता ई नेता नै राधा सूं पूछी-"राधा जीयो सूंगो होटल छै, य्हाईं ठहर जावां ?" राधा नै बी हां मं हां मलाई।
दोन्यूं तांगा मं सूं उतर'र होटल मं जा पल्या। राधा नै थैला मं सूं सीरावण खाड्यो अर फेर व्हां दोन्यूं नै सीरवाण कर्यो।
नेता नै सीरावण कर'र चलू कर्यो पाछै राधा सूं बोल्यो-"राधा जी म्हूं मिनिस्टर कै फोन कर'र पूछ ल्यू छूं, कै वे जैपर मं छै, कै कोई न्है। यां लोगां कै घमा लड़-फन्दा छै। कदी मिटिंग, कदी दिल्ली, कदी दौड़ा पै, कदी उद्घाटण। यां को मलबो भारी छै।"
नैता की बात सुणंताई राधा कै घमी साता आई, कै भापड़ा कै महारा काम की कतनी चन्ता छै?
नेता थोडी बार पैछै फर-फांद'र होल मं आग्यो। अर राधा सूं झूठो नाटक करतो करम कै हात लगा'र बोल्यो-"राधाजी मिनिस्टर सा. तो तड़के ईं दौड़ा पै खड ग्या। वां का पी.ए. नै बताई छै, कै क्हाल आवैगा।"राधा कै तो झाटक'र कलेस आग्यो। पण परबस, वा तो नमून खांच'र बैठगी। नेता बोल्यो-"राधाजी अब कलेस करैगा, जींसू कांई होवैगी ? चालां राजमन्दर मं सनीमा देख आवां। घणो नामी बण्यो छै। घणा मनख तो सनीमा का हाल नै ई देखबा ई आवै छै। या बैठ्या-बैठ्या बी कांई करैगा।" राधा कै बी जचगी अर हामल भर ली। तून सूं छै काम सो मं वै सनीमो देखबा, राजमन्दर मं चली गय्‌ा। पण राथा को तो वां चत ई न्है लाग्यो। पकड़ी चड़ी की नांई बैठी। नेतो तो बापखाणओ फोटूआ नै देख-देख'र हरड़-हरड़़ हासै। राधा नै लाज आवै पण करै कांई राम-राम कर'र टेम खाड्यो।
सनीमा मं सूं खड़ाताई नेतो बोल्यो-"राधाजी होल पै चाल'र रोटी-वोटी खाल्यां. राथा तो नटगी कै म्हनै तो भूख कोई न्है। म्हनै तो कमरा मं छोड़ आओ। राधा तो कमरा मंगी। अर नेता को रोटी खाबा अस्यो ग्यो, कै फहर राता तांई न्है आयो।"
राधा नै नन्दरा आगी छी। कमरा मं खटर-पटर कोई जद जाणी कै आग्यो। नेतो खटर-पट खरतो गेलीो-चबली बातां करबा लाग ग्यो। राधा तो को तो जीव अतंग्यां चैठ ग्यो। कांई सूं कांई होग्यो तो आपम कांई करैगा ? हे भगवान ! तूं ई जाणै। थोड़ी बार पाछै नते नन्दरा मं सरणो ग्यो। खं-खं खर्राटा भर र्यो छो. रादा का जीव मं जीव आयो। चाल सो ग्यो बलग्यो। पण दारू की भकलांद की बास की मारी कमरो गरणा ग्यो छौ। राधा तो मूंडा कै ढाटो बांध'र सोगी। तड़कै नेतो, मोड़ो उठ्यो। पण जस्यां घमी चनन्ता होवै राधा सूं बोल्यो-"राधाजी थानै म्हूं जगायो कोई न्है। कहीं मिनिस्टर सा. आज फेर न्है खड़जावै। य्हां का भरोसाा कोई न्है। अबाणू आया'र अबाणऊ ग्या।" राधा का मन मं फेर बासवास जम्यो कै भापड़ा नै घणी चनन्ता छै। नेता नै उठ'र मूंडा कै पाणी की गोहली की लगाई, अर मिनिस्टर सा, कै फोन को नटाक करबां चाल खड्यो। पाछो कमरा मं आर'र नेता घमओ कलेस को नाटक करतो बोल्यो-"राधाजी मिनिस्ट सा. तो फरबारा ई स्योगड का मन्दरसा को उद्गाठन करबा खडग्या बताया। अब तो क्हा ई मलैग।ा राधा एक राम की बसी कै ग्या होवैग भाई। पण ऊकै आज झाटक'र कलेस आग्य। आंख्यां मं रोवणो बी आर्यो छो। ठोरी की सूरत आंख्यां कै आगै फर-फर'र जा'री छी।"
राधा नै बच्यार कर्यो कै बना काम कर्यां धरां चालैगां तो ऊं ई कलेस रैगी। काम तो करवाणोंई छै। गाढी छाती कर'र राधा नै ेक दन और थमबा को मन बणा ल्यो।
नेतो बोल्यो-"राधाजी अतनो बी कांई कलेस करो छो। मिनिस्टर नै तो आ जाबा द्यो। थांको काम न्टिा मं करांऊगो। उठो रोटी-वोटी खाबा चांला। थानै तो रात बी रोटी न्है खाई छी।" राधा की भूख तो बिलायत भागगी छी। पण जीव कै भाड़ो तो देणो ई छो।
दोन्यूं होटल पै रोटी खाबा ग्या। रोटी खाया पाछै नेतो बोल्यो-"राधाजी, कमरा पे बी कांई करैगा ? आज को दन तो बगड़ ई ग्यो। चाला, राजा जी का महल ई देखा आवां।"
राधा को बा बालपणां मं राजा-राण्यां की घणी ख्याण्यां कहै छी। व्हांका ठाठ-बाटा की छोर्यां् नै मारबा की, गणगोर्या, तीजां का जलसां की नावड़ा की होल्यां की, दान-दक्षिणा की द्वागण-सवागम राण्यां का सुख-दुख की राजा का न्याव की। ई लेखै राधा का मनड़ा मं बा की पराणी बातां नै सदरूप देखबा की मनसा जागी, अर वा महल देखबा जाबां मं राजी होगी।महल तो बडो जंगी बरणो देखताई तो रादा नै पराणी हबातां यादआबा लाग'गी। महल तो महल ई छो. ऊंकी छटा, भाटां की कुराई, जंगी आहोर, भीतर रसोवडडा की भींत्यां पै छत्ती स करड़ो देवी-देवतां का चतराम चतर र्या। राजादी. व्हांकै भोग लगा'र कासां आरोगता बताया। जनानी डोडी सूं राण्यां का महलां मं घुस्या को व्हांकी ठटा न्यारी ई छी। ऊपर की बगल मं सूना का जलो सूं मांडण्यां मंड र्या छा। दरी खानो बी गजब को छी। ज्यां राजाजी व्हांका भाई बेटा की लारा बैठे छा. परियादी की फरियाद सुणै छा. न्वा तोड़ै छा। राजाजी का महलां नै देख'र राधा की आंख्यां तो फाटी की फाटी रै'गी।
दन तुरर-तुरर करबा लाग ग्यो छो। महलाा का ताला जुड़बा हाला कारन्दा, महल देखबा हाला नै बारै खडबा की उतावली लगा र्या छा।
राधा होणा बी कमरा पै आग्या। नेतो राधा सूं बोल्यो-"राधाजी रोटी खाबा चालां।" राधा तो कमरां मं आता ईं कलेस नै घेर ली। छोरी की बी घणी याद आ'री छी। वा बोली-"म्हनै तो भूख कोई न्है। थां खा' आओ।"
नेतो तो क्हाल की नांई रोटी खाबा अस्यो ग्यो कै कद पाछो आयो तोल ई कोई न्है। नेता नै कमरा मं आता ई क्हाल ककी ई नांई उठा-पटक मचा दी। कदी खाट पै बैठ्यो होजावै, कदी ऊबो हो जावै। कदी पाछो ई सो जावै। राधा तो नमून खांच'र असी सूती, जाणै अचक'र नींद आरी होवै। पम कांबली का बेजक्या मं सूं नेता की करतूंतां देखात जा'री छी। भीतर ई भतर डर कीम ारी ऊंको कालज्यो बैठ्यो बी जा र्यो छौ। कै यो कान कांई कर बैठ तो ? पम यो बी बसवास छो, कै क्हाल बी तो कांई ्‌है खी। उठक-पटक तो क्हाल बी कर र्यो छौ। पीर आयो हावैगो। अबाणू सो जावैगो, बलजावैगो।
जद घणी बगत तांई नेतो सोतो न्है दीख्यो अर गेली-चबली बातां करतो ई जार्यो छो। अब तो रादा नै भगवान अर गोरी माता संवर बो सरू कर द्यो, कै है भगवान ! हे म्हारी मां ! आण तो फसी ई पलटी रांड का चक्कर मं अबाणू तो बचा म्हारी मां आगे होगी ज्ये दीखी जावैगी। म्हारा करम मं मंड र्या छै फडोा तो झेल ल्यूंगी बखौ। आज तो म्हारो लाज बचा ले म्हारी म्हाराणी! क्हाल तो ई जैपर रांड मं मर्यां बी न्है ठहरूं। घर नै जायां मानूंगी, म्हारा भोला नाथ। राधा तो घमी ई डरप री छी। अर सांच्याई डरपै जी नै भूत मलै छै। नेतो तो क्हाल तो गेली-चबली बातां करतो-करतो सोग्यो छो। आजा तो राधा का बछावण पै ई नीचे आ'र बैठ ग्यो. सूतो जागै, जगातो कांी जागै। राधा तो जाग री छी। सोबा को नाटक कर री छी। नेतो को बछावण पै बैटबो होयो, के राधा का कालज्या नै ठाम छोड़ दी। बच्यार आयो, "और कर राधा पराया मनख को बसवास ? अर जी मं नेता को, कांई सगली दुनिया परभू जसी थोड़ी ईं होवै छै। अब बगड्‌या थारो मनख जमारो। और छोड़ सासरा को घर ? घणा हेरा एक समचे ई एकठ ाहोग्या। नतो तो राधा का बछावम पै ई कांई बैठ्,ो, अब तो ऊं नै राधा को हात ई पकड़ ल्यो। राधा को मन नै एक समचे ई झंझडो खायो, अर बालपणा मैं पढी झांसी की राणी, दुरगावती अर करणवती की कविता वां कपाल मं आ'र ऊबी होगी। कै राधा ब बी तो लुगायां ई छीष ज्यानै चौगान्यां मं बैर्यां की फोजा का दांत खट्टा कर्या छा। बैरी डर की मार्या घुस्या-घुस्या फर्या छा। तूं कांई फूतल्या की बणी लुगाई छै। वां नै अतना बैर्या सूं चौगान्यां मं मुकाबलो कर्यो छो अर तू एक बैरी सूं घर मं बी मुकाबलो न्है कर सकै ?" धक्कार छै थनै।राधा मं तो जाणै बारहा हाथ्या को बल आग्यो होवै. राधा तो ऊबी होगी ऊबी होता नेता बी ऊबो होग्यो। अर झामक-झूबा होबा लाग ग्यो।
नेता को तो झामक-झूमो होबो छो कै राधा नै धक्को दे'र नेताो दूर कर द्यो। नेतो त्वालो खात संभल'र ऊबो होय ई छो कै राधा नै ऊं का पोता मं जीवणा पग की अस्सी लात मारी कै नोत भींत कै भड़भट खा'र धरती पै फैल ग्यो।
नेता को तो जमी पै फैलबो छो कै रादा नै तो खतल्यो, थैलो, अर खूंटी पै सूं लूगड़ो उतार्यो अर कमरा का क्वांड़ खोल'र बार आगी। होटल का बड़ा बारणा कीखड़की खूट'री छी। राधा, अब होटल कै बारमऐ ऊबी-ऊबी टैसण पै जाबै कै लेखै टेम्पो-रिकस्यो देखबा लाग'गी।
टेम्प तो टेसण, टेसण, टेसण घमा करता आया, पण वां मं बायरां न्है बैठी छी। दूथ को दाज्यो छ्याछ नै बी फूंक-फूंक'र प्ये छै। एक टेमो मं दो लुगायां अर एक आसाम ीबैठ्यो छो. राधा ऊं मं बैठ'र टेसण पै आगी। गाडी आबा मं टेम छी वा एक आंबा का रूख कै नीचै की बैंच पै बैठी, टेसण की सवार्यां का आव-जावां नै देखती जा री छी।
वा, बैठी तो टेसण पै छी, पण हाल का बच्यार ऊंडा कपाल मं भवर्यां दे र्या छा। कदी आंख्यां मं आसूं, कदी पछतावो. कदी छरोी की याद। कदी ये बच्यार कै महूं नै संबलती तो आज कांई हो तो ? नेतो तो ऊनै काला सांप ज्यूं लाग र्यो छो. राधा तो ऊंदा-सूंदा बच्यार मं डूब ई री छै कै आबा का रूख मं सूं एक आम्बो ऊं की झोली मं टपक्यो। आम्बो हात मं ल्यां, राधा नै हेरा आयो कै ई दुनिया का मनख्यां सूं तो ये रूंखड़ा ई भला ज्ये। दूसरा कै लेखै छाया दे छ। फल दे छै। बलीतो दे छै।
गाडी आबाहाली छी। रादा थैलो ले'र बैंच सूं उठबा ई हाली छी, कै नेतो कांधा पै थैले लटकायां ऊं कै सामै आ'र ऊबो हो ग्यो। अर राधा का पगां कै हात लगा'र बोल्यो-"राधाजी मसूं बडी बारी गलती होगी। माफ कर द्यो।" राधा तो ऊं की आडी झांकी ई कोई न्है। नेता नै तो पग अस्या पकड्‌या कै छोड्या ई कोई न्है।
आखर, राधा नै बोलणो ई पड्य। माफ तो थन्नै जद करूगी, जद तू गंगा मां की सौगन खावै, कै अब कदी दूसरी बैहण-बेटी नै बुरी जनर सूं न्है देखूंगो। मां नै मां अर बैहण नै बेहण समझूंगो।
नेतो बोल्यो-"हा राधा जी थानै म्हारी आंख्या खोल दी, म्हूं गंगा मां की सौन खाँऊ छु, कै असी गलती कदी न्है करूँगो। था म्हारो बदनामी गांव में जा'र मत कर ज्यो।"
राधा हमरी परै आई जद परभू घर मं सूतो छो। परभू नै देखता ई राधा की आंक्यां का आंसू न्है ठहर्या। परभू समज ग्यो, कै कोई बात होई छै। ऊ नै बसवास'र पूछी तो राधा नै नेता का कारनामा बताया।
परभू कै तो सुणताई आंख्या मं भरू खेलबा लाग गया। कमीज की बायां छड़ातो नेता नै मारबा कै लेखै सोटी ले'र बारै खड़बा लाग ग्यो। राधा नै हात पकड़'र घर मं बठाण्यो। बोली-"ऊं करम-खीड़ला नै सौगन खाया छै भाया, कै अब म्हूं म्हारी जन्दगाणी मं दूजी बैहण-बेट्यां नै कुनजर सूं न्है देखूंगो।"
परभू बोल्यो-"राधा, जद तो ऊं पाको नेतो कोई न्है। हाला काचो ई छै। सीखतड़ पाको नेतो मारै बी अर रोबा बी न्है द। आबरू बी ले्‌र बाह'ल बी न्है आबा दे। बात फैलबा लागै तो तन्दूर मं बाल दे। होटल मं मार दे। सबका मूंड भलस दे। पाका नता की तो ाताल तांई जड़ होवै छै। आज खाल तो घर का रूखाला ई खेता नै भेलर्या छै।"


मन्दरसा तो सरकार नै गांवा मं भी खोल्यो। गांव का छोरा-छोरी बी तो पढबो चाईज्ये। जदी तो सहर का मुकाबला पै आवैगा। सगलां का जोड़ सू ई तो देस आगै बढ़ैगो।
कानून-कायदा बी, सहर'र गांवां मं एक सरीका ई रखाण्या। बगत पै मन्दरसा खुलणा, बगत पै बन्ह होणा, छुट्या-छपाट्यां का नैम बी स्यारक्या, सरकारनै तो कांई भेद न्है रखाण्यो। पण गांव म सरकार का नैम कानून खूंट्या पै धर्या रै छै। वां तो मन्दरसा मास्टरां का नैम कानून सूं ई चालै छै। मोटर धीरा-धीरां चालै, अर दस बजयां की ठौरां ग्यारह बज्यां गांव मं पूगैद, जदी तो मास्टर मन्दरसो खोलैगो। मास्टर कै बी हारी छै, बेमारी छै। ब्याव-सादी छै। छोरांन् की ट्युसन पढाणी छै। कदी नींद ई मोड़ी खुटी तो कदी फावणा ई आग्या। सतरा ई काम छै। अब बताओ सरकरा का नैम कस्यां चालै।
राधा नै घर छोड्‌यो जनाड़ै, कसनपरा को मन्दरसो नै खूट्यो। जस्यां कोई बड़ो नेतो मरजावै अर मून रखाण'र छुट्टी कर दे छै, अस्याई छोरा-छोरी खान्दा पै बस्ता टांक्या उछलता-कूदता खुसी मनाता मोड़ा आबा हाला छोरां नै छुट्टी को समचो देता, घरां नै पाछा बावड़ र्या छा। सगलां गांव मं ऊं दन मन्दरसा की छुट्टी को बी हलबलो माच ग्यो।
एक तो कसनपरा मं तड़का सूं ई नन्दी, कुआं, बजार, पान की गुनट्यां, खेत, खलाण ज्यां देखो, व्हां या ी ंबात कै आज तो मोहन्यां की लुगाई भगा गी रै। मोहन्यां की लुगाई भागगी रै..।
अर अब दस बज्यां दूजो हलबलो हो ग्यो कै मोहन्या की लुगाई नुवा मास्टर की लेरा भागी छै। आज मन्दरसा को तालओ ई न्है खूट्यो। एक मास्टर तो फली घमा दनां सूं न्है आर्यो छो।, आज नुवो मास्टर बी न्है आयो।भांत-भांत का मनख भांत-भांत की बातां। मूंडो कुणको पकड़ै ? गरज कुण कै ? अर घर का उड़ाबा मं सबसू आगै। घर का तो उड़ाया देवी-देवता ई ठड़ जावै छै। जी मं वा तो लुगाई छी भापड़ी। उड़ाबा मं सासू अर जठ्याणी सबसू आगै। सासू हातां का ढावला कर कर कहती फरै-"काणा कठी जा बली रांड ? नजात पाई म्हांनै तो। चांदे ई मणस करो, म्हांकै लेकै थो। घमा परैमपत्त्र आवै छा बापखाणा का कर ग्या कालो मूंडो ऊंठ्यावड़ा। आछ्यो कलंक लगायो कुखराणा की रांड नै।"
कुआं पै लुगायां बातां करै कै चोखी होई ज्यै भागगी। न्है तो देख्यां-देख, दूसरी बैहण-बैट्यां बी बगड़ती।
काल्या की बू बोली-"छी तो घणी सूदी जी भापड़ी। कदी ऊं की आंगली बी न्है दीखी। आछी ढकी डपटी रै छी लाज सरम मं। पण या होई कस्यां ?"
रामूडा की माई बोली-"घमां गुल खुलावै छै लाबां घूंघटा हाली बणां। जीसूं तो काणा ंघूंघटाहाली ई आछी।"
पान की गुमट्यां पै बी छोरा-छापरा ताल्यां पीट-पीट'र वहै र्या छा कै "या तो गांव के छाप लाग गी रै।"
समजदार मनख छाना-मूना छा। लाफालोल कै आगै वै बोलबा मं सार न्है मानै छा।
नुई बात नौ दन की। राधा का सासरा हालां कै लेखैै राधा मरगी छी। लुगाई मरबा कै पाछे मरद की सगाई-पताई की बातां मसाणां मं ई चालबा लाग जावै छै। अरथी की जला बी न्है बजबा दै। आखर व्हा नै मरद नांव धरायो छै। ई कै उलट लुगाई, मरद कै मर्यां पाछै छः महीना बी खूण्यां मं बैठ'र न्है रोवै, तो वा खांई की लुगाई ? चावै खाबा मं न्है होवै तो भूखाँ ई मरै। पण बैठ'र रोणो तो पड़ै ई पड़ै। न्है तो लगो-दूणी आंग्लया पै न्है उठा लै ? ऊं का कालज्या का दोवड़ा दरद सूं लोग-बागां नै कांई लेणो-देणो? रीत तो रीत ई होवै छै ऊनै कस्यां तोड़ सके। मोहन्यां का ब्याव की चरचा बी होणी ई छी। वा बी राजी-राजी पडूं-पडू तो करै ई छी, धकोलबा हाला थारो भलो होज्यो। घर हाला तो प्हैली ई मारबा मं फर र्या छा। अब तो अपणै आप ई गेलो होग्यो। सगाई करबा हाल एक जावै दो आवै, जाणै बै बी राधा का जाबा की ई बाट न्हाल र्या होवै।
जठ्याणी कै घमी ई थाला-बेली लाग रीच। कै नठा जा'र तो मौको आयो छै। हात सूं नै खड जावै। न्है तो बैहण तो क्वांरी ई रै ज्यागी। कोई बी न्है परणैगो ऊं नै तो। घणा छोरा हाला देख-देख'र चल्य ागया। बैहण तो रूप ्‌सोय ईं छै कै अंधेरा मं देख ले तोभूतणी जसी लागै। धसक की मारी खाटलो ई पकड़ ल्ये। समून तेल चुपड्‌यो त्वा को पींदो। जी मं दो मोटी-मोटी कोड्यां सरकी ड्यां चमकै। लांबी तंड्‌याक खजूर का रूंख की नांंई।
जठ्याणी नै तुरत काका कै समचो कर द्यो कै सासू तो लोभण छै। वा करैगी ज्ये ई होवैगी। अधक बधावै ज्यै पावै। छोरो तो बोलबा कोई कोई न्है। ऊंनै तो मन मरजी का ब्याव को मजो चाख ल्यो।
काको समचो मलताई कसनपरै आग्यो। मोहन्यां की माई कै रूपाली का बाप सूं सगाई को सोदो होबा लाग ग्यो। इक्कवान हजार तो म्हांका गांव में टींका का घमआ कै ाग्या। ई सूं कम तो म्हांकी बी नाक कोसवाल छै। परवाल कै लत्ता-कपडा़ तो साधरण बात छै। चोरा नै चैन-अंगूठी तो गरीब सूं गरीब बी द्ये छै। पल्लो पकड़डाई मं आजखाल तो कारां को रवाज होगयो। म्हारी तो एक ई मांग छै कै सासू-साड़ो पूरा पांच हजार को दीज्यो। ऊं की म्हारै घणी हूंस छै। बाकी थांकी बेटा जाणै। ज्ये देगा बेटी कै ई तो हात मं छै।मरतो कांई न्है करै। छोरी नै क्वांरी थोड़ी ई रखणणो छो। या ईं भली होई कै छोरी को रंग-रुप आडै न्है आयो। मोहन की चट सगाई अर पट ब्याव होग्यो। पीसा नै पाणी मं गलो कर द्यो। डायजा सूं घर भर'र आंगणा भर गया। डायजा को हलबलो सगला गांव मं माच ग्यो। मोहन्या की माई को कालज्यो ठंडा होग्यो। सासू-साड़ो फर्यां-फर्यां लावणो बांटती फरी। ठौर-ठौर डायजा का गीत गाती फरै, अर घमंड की मारी डीलड़ा मं ई न्है मावै।
मोहन्यां को ब्याव ोत होग्यो, पण ऊ राजी कोई न्है छो। गुम-सुम रैबा लाग'ग्यो। ऊं को खाबो-पीबा बी छूट ग्यो। ्‌स्यो लागै जाणै ऊं को चत बगड़़ ग्यो होवै। राधा का फोटू नै छाती सूं चपकायां मनख-मनख नै बतावै। कोई वहै ई कै तो भूत लाग ग्यो, कोई चुड़ै ल बतावै। मोहन को भायलो सुरेस बोल्यो-"म्हनै मोहन एक दन हेली हाली नीमड़ी की जड़ मं मूततो देख्यो। हेला हालो ई भूत लाग ग्यो। कोई कहै तेल्यो-बांद्यो लाडो नन्दी का डूंडा पै हात-मूंडा धोबा अकेलो ग्यो छो। डूंडा की चुडैल लाग'गी। कोई कहै प्हैली की लुगाई नै चोकी धर दी। और कांई कोई न्हैं।"
रामूड़ी की माई बोली-"दूद्यां खेड़ी की माईजी कै ढुकाओ चेत्या नौरता आ र्या छै। डाकण, भूत ज्ये बी होवैगा, ताली दे'र भाग जावैगा।"
हीरा की माई बोली-"हीरामन जी कै ले आजो दूध को दूध'र पाणी को पाणी कर दूयेगी।"
फूंद्या का भाई जी बोल्यो-"फाबूजी म्हराज नै ढुका ल्यो चोखो हो जावैगो।" दाना जाजी अमर जी बोल्यो-"कठी मत ले जाओ। खलाणां का समगस जी की जोत मंडाओ। वे सब सूं सक्कड़ छै।" सगस जी म्हाराज की जोत जगाई। पांच सेर घी हूम्यो, जद जा'र भोपाजी की नाड़ हाली। बावडडी मं धमाको लगा'र आला लतत्‌ा सू् गोहली पै आ'र परच्या कर्या। च्यारूं दसा मं आखा फांखता मोहन का हात मं धूपाड़ा मं सूं भभूत दे'र बोल्यो-"हां रे भाई, आज सूं ई नीरांत का जावैगी। ले जाओ घर नै।"
मोहन कै नीरांत कांई आई ? ऊं तो दन पै दन, दूणो बगड़ ग्यो. अर खाट पै छैंट ग्यो। एक दन बाण्यां कै नरमल को भायलो अमलोक कोटा सूं आयो। ऊंनै सलाह दी-"ई नै कोटे सफाखाना मं ले जाओ।" मोनह कै कोटे लाया। अलाज कराया मोहन। छोको होग्यो, जद ख हालां के जीव मं जीव आयो।
बरदन बारह म्हीना पाछै, रूपाली ै बेटो जण्यों। मोहन कै प्हेली परत बेटी होबा की खुशी म ऊंकार जी का घर में हरक-उछाव मं बाजा बन्दूय्कां को सम्यो बंध ग्यो। सूरज जलवा पै कमीण-करूवां का राता-वेला माथा होग्या।
मोहन की नूई गरस्ती की गाडी चालू खड़ी। दो बरस पाछै दूसरो बेटो। फेर तीसरो अर सात बरस मं रुपाली च्यार बेटां की माई बणगी।
मोहन का बड़ा भाी गोपाल कै तो एक ई छोरो छो. पाछै छोर्या की लेण लागगी छी। रूपाली तो च्यार बेटां की माई बणगी। ऊंका तो घमंड की मारी जमी पै पांव ई न्है ठहरै छा। दादी कै बी पांच पोता की दादी होबा को धमी मठेठ छी। घण गरब का बोल बोलती कै म्हैर तो पाचं पोता, दो बेटा छै। ये ई म्हारी सनेसी ले जावैगा। दूसरां खाई मी चाई ज्यै म्हांरै तांईं।बड़ा लोगां नै खी छै, जतनी फूलै उतनो ई कुमलावै छै। ऊंकार जी का घर मं आये दन दंगा-दंग होबा लाग'गी। कदी रूपाली सासू सूं लड़ती कदी जठ्याणी सूं भड़का खाती। ऊं की तो जबान अब घमी ई चालबा लाग जावै छी। छणी-छणी सी बात पै, लड़बा कै बायनै नेफो उकासबा लाग'गी। कोई दन अस्यो न्है जावै, जनाड़ै रूपाली खुटमर्यां न्है खांवै। रामायण मं तुलदीस दा जी नै मांडी छै-"जहां सुमति वहां सम्पत्ति नाना, जहां कुमति व्हां विपति निदाना।" ऊंकार जी को घर बी अब अस्यो होबा लाग ग्यो। ऊंकार जी तो रादृ-दन का भूंजा सूं सूख'र कांटा होग्या अर एक दन राम का प्यार बी होग्या।
ससरा नै मरबा कै पाछै रूपाली को सासू सूं मुकाबलो करबो फोरो होग्यो। जेठ-जेठ्याणी तो न्याला रैबा लाग ग्या छा। मोहन्यां की रूपाली कै सामै चांच खुलै ई कोई न्है। फैली तो रपाली कै डायजा को ईगरुर छो. अब तो ऊनै च्यार बेटा बी जण ल्या। हीराचंद, लालचंद, मूलचंद, दुलीचंद। कमी कांई की। क्यूं सुणू कोई की। सबनै टोकर पै रखाणूंगी। अब तो वा ज्यै मन में आवै सासू सूं बोलती रै छी। राद तन का भूंजा मं सासू बी बेमार रैबा लाग'गी। एक दन सासू नै घमओ ताप चढ्यो। रुपाली कै तांई हांको पाड्यो अरी म्हारै तांईं गोदड़ी उडा जा। घमई धूजगी लाग री। सासू को उतनो कहबो छो, कै रुपाली अंगडाल्या का घर मं सूं दूक'र बोली-"का कोकाल पाड़ो छो ? घमो फूतलो खायो थानै बी। न्है मरो हाल तो। काला कागला खा'र आया छो। सुणली म्हनै हात को काम कर'र ई तो आऊंगी।"
आज तो सासू नै खुद का कर्या पै घणेेा पछतावो आ र्यो छो। कै म्हनै ऊं गरू गोराणी को घमो उडान चारो कर्यो। काणां कहां होवै गी भापऊ ? मरे छै कै जीवै छै। जदी म्हारी करणी को फल मलर्यो छै म्हारै तांई। सांच्याई भगवान को घर मं देर छै अंदेर कोई न्है। बना दवाई-दारू अर ऐरणा कै डोकरी बी आठ दन मं सरग सिधार'गी।
रुपाली का च्यारूं बेटा बी अप जवानी मं सरणाबा लाग'ग्या। बेटा तो रुपाली कै च्यार छा, पण च्यारूं च्यार दसा का। एक लालचंद नै तो गांव की दादागरी को ठेको ले लाख्यो छो। मोहन्यां कै गोड़ै नतकै ई ओलमो आतो। मोहन्यों, छोरा नै धमकातो तो रूपाली माथै आ जाती। जेठ'र जठ्याणी दूरा सूं ई देखता'र रै ता। व्हांका न्याला घर का न्यारा बारणा छा, गाबा मं कस्यां बोलै, अर बोलै बी तो रूपाली फाड'र न्है खा जावै। बा तो नाहरड़ी हो री छी।
एक दन बाण्यां कै स्याम जी का हरी पै लालचंद नै धूंस जमाई कै गल्ला मं सूं बीस रुपया दे, न्है तो थनै अकेलो मलतांई मारूंगो। दूकान पै छोरो अकेलो ई छो। डर की मारी गल्ला मं सूं बीस रुपया खाड़'र दे द्या। स्याम जी दूकान पै आया जद हरी नै सारी ख्याणी बताई। स्याम जी, मोहन्यां नै आलमो देबा ग्या। तो रुपाली व्हानै मारबा कै लेखै घर मं सूं धोवमओ उठा लाई। स्याम जी आपकी आबरू ले'र घरां आया। ्‌सी पाटा उतार बायर सूं कांई बात करता।
दूसरो, दुलीचंद चोरी का जुरम मं जेल की सींकचो मं बंद छो। मूलचंद पोल्या सूं पावां सूं पांगल्यो छो। हीराचंद घर मं ई नाहर छो, बाप पै दादागरी जमावै अर छाती पै चढ़-चढ़ बूंत-बूंत'र खावै। न्है दे तो मारूं आवै। मोहन्यो बूढाहरां मं बी खेती-बाड़ी को काम करै। सुणी छी कै हीराचंद नै पटवारी सूं मल'र जमी पै बी खुद को नांवल खाता मं चढ़ा ल्यो।


लांबां डूंगर की लांबी पाटी आतां ई परभू वहै बा लगा ग्यो कै-"मोहनपरो आबा हालो छै।" बगत तड़का को छो, साडा छै को। चालती रैल की खड़क्यां सूं, सूरज की करण, डब्बा मं फैलगी छी।
सगली रात तो स्यां-सट्टो होरी छी। अब सवार्यां सावचेत होती जा'री छी। कोई मूतबा कोई हंगबा कै लेखै लोग-बाग संडास कै बारै लैण्यां मं लाग र्या छा। राधा की सीट मूतबा का घर कै गोड़ै ई छी। जी सूं हलबलो घमो ई छो। राधा की चमक नन्दरा छै। फेर नुवां गांव अर नुई ठाम, अर नुवा मनख। हेरान् नै सूं संरात्यूं ई आखंय्‌ां पै चामड़ी फरबा ई न्है दी हमीरपरा मं तो लटूर्या की बाई को बसवास छो. थडोी बार पाछै रेल मं अंधेर घप्प होग्यो। ँधेरा नै सूरज नाराण की करणां धक्को दे'र भगा दी, अर पसर ग्यो. दन जाणै मावस की रात मं पलट गयो। रेल मं पाछी रात की नांई स्यां-सट्टा माचगी। छोरा-छोरी रोता रोता छाना होग्या। सवार्यां बी सोसल होगी। राधा की सीट कै सामै की सैट पै बैठी सत्तर-अस्सी बरस की डोकरी राम-राम की बाणी सूं सन्नाटो तोड़ती जा रही छी।
परभू बोल्यो-"रेल डूगर की सुरंग मं चाल री छै।" राधा नै हेर आयो कै ऊं की जिन्दगाणी बी तो सुरंग की नाई अंधेरी धुप्प छै। सुरंग घणी लांबी खड़ी। उजालो आयो, जद जीव मं जीव आयो।परभू बोल्यो-"एक टेसण और आवैगो, फेर मोहनपरा ई आवैगो।" देखतां ई नवलगढ़ खड़ ग्यो। फेर मोहनपरा आग्यो। फाटक कै य्हां मंडर्या अंग्रेजी अर हिन्दी का आखर बता रच्या छा कै मोहनपरा ई छै।
गाड़ी थमी। राधा नै छोरी उठाई, परभू नै सामानां का थैला उठाया। टिकट बाबू के तांईं टिकत पकड़'र वै बारै खड़ग्या। रादा होणा का डब्बा मं सूं एक जोड़ो बी उतर्यो छो। परभू नै व्हांसू पूछी-"भाई सा, यहा पास मं कोई धरमशाला है क्या ?" जोड़ा मं सूं आदमी बोल्यो-"सामनै वह पीले रंग से पुती बिल्डिंग धर्मशाला ही है।"
राधा होण नै धम शाला मं घुसतां ई बडा भारी बारणा की एक बगल मं ठगटा पै पोथी-पानड़ा बखैर्यां एक आसामी धोवती, कुड़तो अर चश्मो चढाया बैठ्यो मल्यो। आसामी चश्मा मं सूमं मोटा-मोटा ड्यां फरातो व्हांने देखबा लाग ग्य। जस्या वै कोई अणहोणी कर'र आया होै। फेर मूंडो ऊंचो कर'र बोल्यो-"थां कै काईं चाई ज्यै ?"
परभू बोल्यो-"धरमशाला मं और कांई चाइ ज्ये सा ? कमरो ई चाइ ज्ये ?"
मैनेजर बोल्यो-"य्हां कांई काम सूं आया छो।"
परभू बोल्यो-"नौकरी पै हाजरी देबा आया छा।"
मैनेजर बोल्यो-"या बायर थां की कांई लागै छै।"
परभू बोल्यो-"लुगाई ? पण आप ये सगली बातां क्यां पूछ र्या छो।"
मैनेजर बोल्यो-"भाया परस्यूं एक जमओ एक लुगाई नै भगा लायो छो। तड़कै ऊ लुगाई की लास कमरां मं मली। लोग तो भाग ग्यो. ऊं की पूछ-ताछ की जवाब देतां-देतां म्हां लोग थाक ग्या।"
मैनेजर तो खाली कमरो देखबा भीतर ग्यो। राधा परभू सूं रोस मं हो'र बोली-"परभू थनै मैनेजर सूं कांई कही? म्हूं थारी लुगाई छूं ?" राधा परभू सूं कह'र रोबा लाग'गी। परभू बोल्यो-"तूं बावली होई राधा, यो परदेश छै, म्हारा कहबा सूं कांई तूं म्हारी लुगाई बण'गी कै राओधा ? अरी, बना धणी की लुगाई की दसा बना धणई को ढोर ज्यूं होवै छै। थार ैजसी भरी जवानी की बायर नै तो देख'र खोड़ला-कबाड़ला मनख्यां की नजर्यां लाग्यां बना न्है रै। तू ईं तो क्है की है हमीर परा मं मन्दरसा मं जावै छी, तो बगड़ैल छोरा म्हारी आडी कांकरा फांकै छा। कदी गेला मं नोट पटक दे छा। आछी-बरी फबक्यां कसै छा। या गलती आपण मोहन परा मं न्है करां. थारी पलटी बी तो लुच्चा-लफंगा नै ई तो करवाई छै। रोवै मत राधा समझ रखाण।"
राधा नै आसूं तो पूंछ ल्या। पण, घणा ऊंडा हेर मं पड़गो कै हे भगवान ! ईं देवता सरीका भाई नै दुनियां कै सामै कसम बणाबो बी म्हारा भाग मं मंडर्यो छो। थारी लीला अपरम्परा छै म्हारानाथ।
मोहनपरा आसा-पास का डूंगरा का गांव मं सबसूं बड़ो गांव छो। थाणो, कचैड़ी, जगात, सफाखानो, दो मन्दरसा, हाट-हरवाड़ो बी य्हांई लागै छै। राधा अर परभू सारै दन किराया को घ हेरत्या रह्या घर हेरतां-हेरातां डूंगर की टेक पै एक पनवाड़ी को घर हात लाग्यो। गांव पगत्यां की नांई बस र्यो छो. घर काम चलाऊ ई छो। चौमासा मं तो डूंगर को पाणी बह-बह'र राधा का घर मं सूं ई नालो ज्यूं बह'र बारणा सूं बह जावै छौ। बादलो लूमता ई राधा रोटी-पाणी सूं नमटर नाला का नजाा देखबा लाग जावै छी। राधा का म्हरला मं ऊंडा बच्यार आता कै "मनख जमार ोबी तो नाला की नाई ई छै। कहां सूं आवै छै ? अर नाला का पाणी कनांईं ठोकर खातो कदी सूदो कदी ओडो-डोडो बहतो काणां कहां जा'र गम जावै छै।"
परभू राधा को जमावड़डो जमा'र ऊं की नौकरी पै पाछो बावड़ाग्यो। सीख देग्यो केै पेटा की बात पेटा मं ई रखाण ज्ये। कोई को बसवास मंत कर ज्यै।राधा बोली-"भाया म्हारै घणा हात लाग'ग्या। अब बी न्है चेती तो ढांढा सूं बी गी बती छूं।"
परभू ग्या पाछै, घ मं राधा अर छोरी ई रैगी। हमीरपार मं तो लटूर्या की माई सूं दो बातां कर'र मूंडा की खुलांद खाड ले छी। पण य्हां तो पाड़ो ई नखत का बारा को छो। न कै ई लड़ाई-झगड़़ा, मार-पीट गाली-गलोच, कदी सासू-बू कदी दोर-जेठ्याण्यां कदी धमई-धर्याणी को झगडा रोवणा-पीटणा देखणां पड़ै छै। राधा तो वां बायर का दुख-दरद नै देख-देख'र घमा दुख का हेर मं डूब जाती।
एक दन तो राधा का म्हरला मं आस्यो हेरो आयो, जी नै ऊंका मनख जमरा कै तांई ई पलटी ख्वादी। ऊं नै बाच्यार कर्यो कै राधा ढांढा कीनां ई मनख जमारो काटबा सूं बी कांई मनख जमार क्है छै कै ? थारी जसी घणी दुख्याी बैहण्या छै, व्हांनै गेलो बता। फेर बच्यार आयो कै राधा द्यो। होवै तो उजालो होवै। थारै गोड़े तो दियो ईं कोई न्है। फैली दियो जो। उजालो फेर होवैगो।
राधा अब गीता, रामायण, अर बिदवानी की आछी-आछी बौथ्यां बांचबा लागगी। राधा कै एक बच्यार य्हो बी आयो कै कुड़सी मलै तो बात मं बजन बंधै। कुड़सी सूं बलकां मं बी ऊं ज्ञान का बीज बज्यार सकै छै। ई लेखा राधा नै दसवीं को बी फारम भर द्यो। अर कत्याबां पढ़बा लाग'गी।
राधा नै छोरी को नांव बी दीपिका ई लेखै रखाण्यो छो, कै छोरी नै नांव जस्यो काम करबा हाली बणांऊ। राधा की मेहनत अर लगन ्‌स्यो रंग लाई कै दसवीं मं पास होबा को अखबरा मं राधा को नांव ऊजला आंखरां मं आयो। दीपिका कै लेखो यो दन घमी खुसी को छो आज दिपीका भायल्यां मं घमी रम।ी हमसे सुस्त-सुत रैबाहाली छोरी आज घमी हांसती-खूंसती री। ऊंका मूंडा पै आजी नुराणी नजर आई। ्‌वांहा घरमं बरसां पाछ राजी होबा को बायरो जनाड़ै ई बाज्यो। थोड़ा दन पाछै, राधा चपड़ासमण सूं मेडब बणगी।
दीपिका का हरक को पार न्है र्यो। भायल्यां सूं कहती फरै-"म्हारी मा मेडम बणगी।"
राधा मेडम बणगी। अब तो ऊं कै यो बच्यार बार-बार टसकड़ा लगावै के राधा दुख्यारी बायरां कै सायोर लगाबा को गलो खाड। बच्यार अस्या आवै, कै ऊं नै राता मं सोबा ई न्है दये। राधा घमा हात-पांव मारेै पण गेलो ई न्है पावै। कांई करूं अर कस्यां करूं ? गेलो छो बी घमओ कठण। एक दन व्हांका पाड़ा मं गोबर्यो दार पी'र ऊ की लुगाई नै मार र्यो छो। राधा समजाबा गी। जद सूं ई तो ऊ की सासू नै राधा सूं बोलबो छोड़ द्या, अर पाड़ की लुगायां सूं कहती फरै कै य्हां मास्टरणी तो म्हारी बू नै बगाड़'र म्है लैगी। म्हारी बू को घमओ पख लगावै छै। बगड़ैल कहीं की। माथो उगाड़'र रोती फरै छै। बना लाज की। गोबर्यो बी घमो माथै ायो छौ। कै थां कै कांई मतलब छै ? म्हांका गाबा मं बोलबा को। म्हूं म्हारी लुगाई नैमारूं कै ताडू।
मावास कै दन रात मं पस्बा बी तो ऊंका लोग नै मार'र ज्याग बारै खाड दी छी। लडा़ई तो ल्होड़ी-बड़ी मं हो'र छी। लोग ल्होड़ी की आड़ी बोल्यो अर ऊं सूं घमओ लड्‌यो ऊपर सूं बच्यारी नै मार'र घर कै बारै खाड़'र पोल की सांकल मारली।
ऊं तो रात बासो राधा नै दे द्यो। न्है तो कुआ मं पड़बा जा'रीछी। राधा सूं ऊं को लोग और लड़बा यआयो कै थानै म्हारी लुगाई क्यूं स्वाणी। समजायो तो बोल्यो-"कै मरती तो मर जाती।"
गुफर्यो आये दन लुगाई कै तलाक देबा की धमकी दे छै। मन मरजी को काम करावै छै। न्है करै तो मारै छै।
बायरां की लारां तो संकट ई संकट छै। घरहाला नै समजाओ तो और गाल्यां का भाटा फांकै छै.पस्बां मारी जनाड़ै तो राधा को मन्दरसा मं मन'ई न्है लागोय्‌। पस्बां की बात ई भेजा मं बैठी री, कै म्हांर तांई मत रोको बहणजी, आज तो म्हनै मरणो ई छै। रै'बा द्यो व्हांनै राजी। म्हूं सूल छूं व्हांकै गाबै।
राधा नै सुमित्र मेडम सूं बायरां का संकट की चरचा करी। सुमित्र जी आपणा च्यहा कै तांी पढ़बा को काम सरू करां, जी सूं य्हा मं ज्ञान को बधापो होवैगो। ई गेला सूं आपण य्हांका हक द्वाबा मं सायरो बण सकैगा।
सुमित्रा बोली-"राधा जी, क्हामी बखेड़ो मोल ल्यो छो। य्हां का घरहाला सूं कुण बैर मोल लै।" राधा नै शकुन्तला मेडम सूं बी चरचा चलाई। वा बोली-"राधाजी थां को बच्यार तो घणो चोखो चै। लुगायां का दुख को मूल कारम व्हांको अणपढ होबो ई छै. पम य्हां कै तांई पढाबो बी रेत का घरोंदा मं पाणी हेरबो ज्यूं छै।" य्हाई बात मंजू मेडम नै बी कही। पण मंजू नै या बात बी कही, कै राधाजी यो काम सरू करो तो म्हूं बी थां की लेरा छं।
मंजू की बात सूं राधा कै घमी हीम्मत बंधी। पण दबद्या तो मोटी या छी कै बायरां कस्यां भेली करां ? कह छै नै, कै ज्यां चाह व्हां राह मल ई जावै छै। राधा होमा नै बी एक जुगाइड़ सूज्यो। मन्दर पै बायरां बना बलाई ई आवै छै। राधा नै मन्दर मं ई रामायण जी की चौपाया। राग ले-ले'र बांचबो सरू कर्यो। अब तो बायरां राधा नै गरु मानबा लाग'गी। सूर मं तो च्यार-पांच बायरां ई आवै छी। पण फेर तो ओरां कै बी सुणबा को चुस लाग ग्यो। अर मनद्र बी छोटो पड़बा लाग ग्यो। गाबा-गाबां मं घर-घरामाँ की बातां बी चालती। राधा बी व्हांस सूं गाबा-गाबा मं पढबा की बातां कहती। अब तो बायरां कै पढबा को बी चुस लाग ग्यो। मंजू मेडम बी राधा को सायरो लगाती। कदी-कदी सुमित्रा मेडम मी तमासा देखबा आ जाती।
बायरां को पढ़ाबा को काम तो चाल खड्यो। पम दन पै दन मन्दर घमओ ई छोटो पड़बा लाग ग्यो। अर राधा का मन मं एक फांस ौर चुबै छी कै दूजा धरम की बायरां मन्दर पै न्है आवै, ई लेखै वै पढ़बा सूं अछूती रै'री छै। छब्बीस जनवरी कै दन राध ाका मन्दरसा मं नगरपालिका का चेअरमेन सा. झंडो प्हराबा आया। व्हानै भाषण कै गाबै-गाबै बायरां का दुख की पोथी बी बांची। कै महिलाओं कै पिछड़ेपन का मूल कारण उनकी अशिक्षा है, जब तक महिलाएं शिक्षित नहीं होगी तब तक उनको अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा। और गृहस्ती की गाड़ी का एक पहिया कमजोर होने के कारम हमारा देश आगे नहीं बढ़ सकेगा।
व्हांने भाषम मं बायरां की भलाई करबाका आछ्या-आछ्या वादा बी कर्या। राधा कै तांई चेअरमेन सा. घमो भलो मनख लाग्यो। कै अपमा मन की भली बणी आपण पढ़बा की ठौर-ठाम को सायरो य्हांसू ई मांगैगी।
दूजे दन राधा नै मन्दरसा की तो छूट्टी करी। अर चेअरमेन सा. सूं मलबा चाली'गी। राधा नै चेअरमेन सा. कै तांई ऊं का बच्यार बताया, अर बायरां नै पढाबा कै लेखै ठाम देबा की अरज करी। जी सूं सगला धरम की बायारं नै एक ठाम पै पढा सकै। सिलाई-बुलाई बी सका सखै।राधा नै ठाम द्वाबा की बात चेअरमेन सा. सूं करी चेअरेमन सा. तो भड़ताई नटग्या, कै "हमारै पास जगत कहां है। यह प्रबन्ध हम नहीं कर सकते।" राधा नै पाट्यां, पोथ्यां, सिलाई मशन आद कै लेखै रुपया-पीसा को सायलो लगाबा की बता करी तो जवाब मल्यो, हमारी नगर पालिका कै बजट मं पैसा ही कहां है। हम तो कर्मचारियों का वेतन ही बमुश्किल दे पातै है। आप चन्दा इकट्टा कर सकती है। अच्छे काम के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है।
राधा नै चन्दो देबा की रसीद व्हांसू काटबो की सरुवाद करणी चाही तो। चेअरमेन सा. बोल्यो-"भई मेरे पास अभी जेब खाली है, पहले और से शुर करो"
राधा नै चेअरमेन मं नेता का सारा गुण नजर आया। चेअरमेन नै तो रीता प्वा का चूमा बी न्है द्या। "ऊं का बोल्यो तो पाणी का ओल्यो ई खड्या।"
चेअरमेन जामऐ छो, कै लुगायां को पढबा सूं घा परवार व्हूंसू रोस म हो जावैगा। चुणाव छाती पै आर्‌ा छै। व्हांनै वोट न्है देगा। असी दबद्यां मं ऊं जाण पूछ'र खाईमी पड़ैगो। राधा चेअरमेन का दो पड्‌या मूंडा सूं दो पड़ी बातां सुण'र आपणा घ मं बावड़ ाई।
अब राधा कै फांस घमी ई खटक बा लागगी। घणो टेम तोऊं को ऊंडा बच्यारां मं ई खड़तो। एक रात तो नीं ई न्है आई। चेअरमेन का बसवसा को बी झटको लागग्यो। बच्यारतां-बच्यारांत राधा नै बड़'र बावड़ी कै नजीक फूटो तबारो सूरत आयो। तबारो घमओ बडो छो। बड़ की घेर-घमेर छायां सूं ठंडाई बी, अर बावड़ी सूं पाणी को बी सनतूनो बैठतो नजर आयो। राधा कै वा ठाम जचगी। मंजू नै बी हां मं हां मलाई। जनाड़ै राधा सरणा'र सोई।
दूसरै दन राधा नै मजूर बला'र तबारा की झाडू-बुआरी, लपाई-पुताई कराई, अर रात मं ई मन्दर पै बायरां सूं कही, कै क्हाल मांय-जाल सूं मुकती देबा हाली गीताजी को पाठ बड़ हाला तबारा मं करैगा। ज्यांकै दो लालटेन होवै म्हनै बताओ। घांसी सूं बोली-"बहणणी म्हूं लाऊंगी।" गोपाल की बू बोली-"म्हांकै बी दो लालटेन छै।" राधा नै सं पून्यूं कै दन गीताजी को पाठ'र बायरां कै तांईं पढाबो बड़'र बावड़ी का तबारा म सरू कर द्यो। धीरां-धीरां तबारा मं सतपूण ज्यात'र सतपूण धरम की बायरां आबा लाग'गी। संस्था असी फली-फूली कै ई मं पढाई, सिलाई-बुआई, कताई, चटणी, अचार-मुरब्बा बणाबा सिखाया जाबा लागग क्या। संस्ता को नावं महिला विकास संस्था पड़ ग्यो. जी को चोमेर नांव फेैल ग्यो।
संस्था मं बना पगार कै घमी सेवा-भावी बैहण्यां आबा लाग'गी। मंजू मेडम तो प्हली सूं ई छी। वा बुणाई की ट्रेनंग दे छी। निर्मला चटणी, अचार बणाबो सखावै छी।
सरु-सरु मं तो बायरां को घरां सूं कोई न्है कोई तो लड़बा आता ई रै छा। की कोी की सासू आ'री छै। कदी लोग गाल्यां खाड़तो लुगाई नै घींस'र ले जा र्यो छै। पण अब प्हैली सूं कम छ। एक दन सकूर्यो ऊं की लुगाई नै खांच'र ले जाबो लाग्यो। राधा नै सकूर्यो समजायो पण ूं तो राधा मं बठाक गाल्यां खाड़बा लाग ग्यो। रांड म्हां की लुगायां कै तांई य्हां बगाड़बा कै लेखै बलावै छै। आधी बूढी होगी, अब कांई पढगी। कसूर्यो राधा मं गाल्या खा ई र्यो। अर चेअरमेन सा. ऊंठी सूं खड'र जा र्या छा। वे हांका-हेला सुण'र तबारां मं आग्या। व्हानै सकूर्यो घणो समजायो, अर राधा की बढायां का पुल बांधता बोल्यो-"बावल्यां बना पीसा कै या बायर आपणा गांव की बायारां की कतनी सेवा कर री छी, ई नै बायरां को संकट मेटबा को देस की उन्नति करबा को कनतो बडा बीड़ो उठायो छै। अर तूं य्हा मैं ईं गाल्यां खाड र्यो छै। मूरख ? सकूर्या नै सरम आई ऊनै नीची नाड़ की कर्यां घ को गेलो पकड़ ल्यो अब चेअरमेन सा. फेर राधा सूं क्हैबा लाग्या-मेडम राज्य सरकार से हमें बजट मिल गया ङै। आप मांग करना, हम आपको सिलाई की मशीन, बुनाई की मशीन मंगवा देंगे। हम यह भी प्रयसा करेंगे, की संस्था के लिये भूमि आवंटन हो जावै. आप एक एप्लीकेन दे देना।"
राधा नै चेअरमेन सा. कै तांई धन्यवाद द्यो।


तड़कै झाड़ा-बुआरी को बगत रह-बास आछ्यो कोई न्है छो। राधा ताप मं तप री छी। वा सामै का घर मं गोदड़ा ओड'र पड़ी छी। दीपिका झाडू-बुआरी करी छी। जदी दिपाकी की भायली मीनाक्षी हात मं राजस्थान पत्रिका ल्या उछलती-कूदती हांपती नै बारै ठोकर पै सूं ई दीपिका कै तांई हाकां पाड़बो सरु कर द्यो। दीपिका, दीपिका, दीपिका ! एक सांस मं हांका पाड़ती-पाड़ती ज्याग मं उलगी।
दीपिका बुआो फांक'र बारै जाबा लागी, तो देखै कांई कै मीनाक्षी का हात मं पत्रिका। वा खुशी की मारी बोल बी न्है पा'री छी। मीनाक्षी नै बात तो पाछै बताई प्हैली दीपिका बाथ मं भर ली। पाछै बोली-"दीपिका मेरिट मं थारो रो.नं. सबसूं ऊपर छै।"
दीपिका नै मीनाक्षा का हता मं सूं पत्रिका ली। रो.लं. देख'र मीनाक्षी सूं भोलापण सूं बोली-"मीनाक्षी रो.नं. तो म्हारा ई छै।" अर फेर दूसरी भायल्यां का नं. देखबा लाग'गी।
राधा नै मीनाक्षी की हांसी को ठहाको अर दीपिका की बात घर मं पड़ी-पडी नै खाटा पै ईसुण ली छी। वा बोली-"अरी थां कस्यां हास री छो। म्हारै तांी बी तो बताओ।"
मीनाक्षी दौड़'र राधा कै गोडै आई अर बोली-"मेडम थाली भर मिठाई लाओ। दीपिका दसवीं का मेरिट मं प्रथम स्थान पर आई है।"
राधा गोदड़ा फांक'र ताप मं ई व्हां कै गोडै बारै आगी छी। ऊं नै बेटी घणी गाढ़ी छाती सूं चपकाली। अर घमी राजी होती नै बेटी का खुणा फटकारती बोली-"वाही री म्हारी बेटी ! म्हनै आज म्हारै ऊपर बसवास होयो कै तूं म्हारा मन की मनसा पूरी करैगी।"
दीपिका बी माई की आड़ी भोलो-भोल मूंडा सूं मुलकती जा री छी। राधा, दीपिका का मूंडा न ै बार-बार न्हाल री छी।राधा नै आज मोहन घमओ याद आयो, मोहन य्हा ंहोतो तो बताती कै बेटी कुणकी छै। ललाट, ांख्यां अर नाक तो जाणै मोहन की ई तोड़'र लगा दी होवै। अर खोपड़ी बी तो बाप जसी ई छै।
सगला कसनपरा मं मोहन ईं तो सबसूं ज्यादा पढ़यो-गुण्यो छो। ई तर्यां घणा परामआ हेरां नै राधा कै रोवणो ई अण द्यो।
दीपिका अर मीनाक्षी दूसरी भायल्‌ं का रो.नं. देख री छी। थोड़ी बार पाछै देवकी बी दिपाक नै बधाई देबा आगी। अब तो वे तीनो ईं हांसी ठड्ठा मं मगन होगी छी। घर मं राधा पराणआ हेरां मं गमरी छी। जदी पोल का क्वांड बाज्या। ठक, ठक, ठक लगातार ठक्कारो सुणतांई राधा नै दोड़'र पोल का क्वांड़ खोल्यो। बारणै ठोकर पै, घणा आसाम्यां नै ऊबा देख'र तो हक्की-बक्की रैगी। व्हां मे सूं कोई बी तो जांण-पछाण को कोई न्है छो. ऊं कै तो कलेस आग्‌ोय कै य्हा कांी आफत आगी। फेर भी हीम्मत कर'र पूछी ई सणी-"आप किसको पूछ रहै हैं?" व्हांमै सूं एक आसामी बोल्यो-"यह मकान दीपिकाजी का ही है ना ?"
बारै मनख्यां को हलबलो सुण'र तीनो भायल्यां बी बारणै आगी छी। ूं आसामी नै तो दीपिका काम कान की पूछी-अर राधा को होसल बगड़ ग्यो। केये म्हारो नांव तो न्है पूछ र्या अर छोरी कोन ांव क्यूं पूछ र्या छै। छोरी नै अस्यो कांई कर्यो।
राधा बोली-"दां दिपीका का मकान यही है। बताइये आप को क्या काम है।"
अतना मं ई ऊं ई आदमी बोल्यो-"दीपिका कै पिताजी का नाम श्री मोहन लाल जी है।" अब दिपिका बीचमं ई बोली-"हां कहियै, मै ही दिपाकी पुत्री श्री मोहनल लाल जी हूं।" दूसरो आदमी बोल्यो-"हम आपाक इन्टरव्यूं लेने आये है।" आपको दसवीं बोर्ड परीक्षा में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है।
राधा को कलेस मट्यो। जा भैस कुआं मं। म्हारै तो झाटक'क कलेस आग्यो छो। कै यो कांई बबाल होग्यो।
राधा तो चाय बणाबा रसोई मं चली'गी। दीपिका नै बछावण मं सूं दरी खाड़'र दरी बछाई वे सगला आसमी दरी पै बैठ्यां पाछै दीपिका सूं भांत-भांत का सवाल-जवाब पूछा लाग ग्या। व्हांका जवाब-सवाल चालता र्या राधा चाय ले'र आई जद ऊंै या ई सुणी-"आप मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त करने का श्रेय किसे देंगी ?"
दीपिका नै कही-"मैं मेरिटमें प्रथम आने का श्रेय मेरे माता-पिता, गुरुजन एवं मेरे बुजुग्रों के आशीर्वाद को देना चाहूंगी।"
एक पत्तरकार फेर बोल्यो-"फिर भी सबसे अधिक श्रेय किसका देना चाहेगी ?"दीपिका बोली-"सबसे अधिक श्रेय मेरी ममतामयी मां को। जिन्होंन आदर्श मां का ही नहीं आदर्श शिक्षिका एवं गुरु का पार्ट भी अदा किया है।"
दूसरा पत्तरकार नै फेर प्रश्न की झड़ी लगाई-"दीपिकाजी आगै जाकर आप क्या बनना चाहेंगी ?"
दीपिका बोली-"इच्छा तो प्रशासन मं जाकर भ्रष्ट प्रशासन की छबी को सुधारते हुए जनता की सेवा करने की है। परन्तु यह भविष्य के गर्भ में है।"
पत्तरकार और बी घमी बातां पूछता र्या। फोटू ग्राफ फोटू खांच्या जा र्या छा।
राधा तो रसोई मं नमकीन, मिठाइयां लेबा चली गी छी। पत्तरकार अर फोटूग्राफरां को काफलो जाबा कै पाछै, राधा होणां का घर नै बधायां देबा-हालां को तीतो बंध ग्यो. राधा का मन्दरसा का बी राधा की संबाल पूछबा अर बधाई देबा आया।
परभू बी दीपिका का रो.नं. अखबरा मं देकता ई रेल मं बैठ'र मोहनपरै आग्यो। आता ईं ऊं नै दीपिका सूं चपका ली। चेअरमेन सा. ऊं बगत बधाई देबा आया छा। व्हांन परभू सूं दीपिका गी घणी बढायां करी। कै होनहार बिरवान के होत चीकने पात। इस बालिका कै लिए यह युक्ति सच साबित होती है। परभू बोल्यो-"भाई सा. मुझिे ऐसा लगता है, कि बालिका को गोड गिफ्ट मिली है, इसलिे पूत कै लक्खण पालणै में ही नजर आने लगै है।"
चेअरेम सा. बोल्यो-"इस बच्ची नै हमारे गांव का नाम रोशन किया है। हमें इसके लिए कुछ सोनचा चाहिए। इसका सहयोग करना चाहिए।" परभू बोल्यो-"मैं भी तो यह सोचकर आया हूं कि अब लड़की को शहर में भेज कर अच्छे स्कूल में दाखिल करवाना चाहिये, कोटा में बहुत अच्छे स्कूलल हैं. जहां इसको साधन सुविधा उपलब्ध हो सकती है। रही रुपयों की बात तो कुछ सोचेंगे।"
चेअरमेन सा. बोल्यो-"पढ़ाई के लिए रूपोयं का तो हम भी सहयोग करेंगे, आप चिन्ता मत करो सरकार से बजीपा भी दिलायेंगे।"
दीपिका की कोटा मं पढ़बा जाबा की त्यारी होगी। रादा नै, पंडत सूं सुमरत बी खडा ल्यो।
पंडत बोल्यो-"बुधवार तड़काऊ मं जद सब सूता नै आछ्यो मुहरत छै। बुध करै सिद्ध, सूता मेलै जद।"
परभू बूधवार कै दन, दीपिका नै लेर कोटे ले'र आग्यो, अर आछ्या मन्दरसा मं भरती करा'र ऊं को अन्तज्याम कर सखा-पढ़ा'र पाछो बावड़ ग्यो।
दीपिका की मेहनत अर लगन नै य्हां बी रंग दखायो। ज्ये ग्यारवीं अर बारवीं जमात मं ऊपर ई ऊपर को फगत्या पै ऊं को नांव र्यो।
अब दीपिका नै कालेज मं आणो ई छो। दीपिका जद कालेज मं आई तो ऊं की एक, दो ईं स्याथण्यां बणी। सूदी-सादी, तड़क-भड़क, बणाव सणगार सूं कोसां दूर रैबा हाली दीपिका की घणी स्याथण्यां बणै की बस्यां ?एक बार दीपिका का कालेम मं अन्तराज्य कालेज वाद-विवाद प्रतियोगिता को आयोजन होयो। जी मं दीपिका नै बी नांव मंडायो। प्रतियोगिता मं सात मिनिट का दीपिका का भाषण मं चौदह बार ताल्यां की गड़गड़ाहड होई, अर सबसूं ज्यादा नम्बर मल्या।
अब तो दीपिका को नांव कोले जमं ई कांई चोमेर ई फैल ग्यो। स्याथण्यां तो अब ऊं कै आस-पास झूम्यां खाबा लाग'गी। वा सबूं कम बोलबहाली सूदी-सादी छोरी सबकी प्यारी बणगी।
कालेज को नांव ऊंचो होबा सूं कालेज नै दीपिका का सम्मान मं एक जलसो बी कर्यो। जलसा मं कालेज की प्रिंसीपल नै दीपिका की प्रतिभा कै लेखै, थोड़ा आंखरा मं ई धणी बड़ी बातां क्है दी छी।
दीपिका कालेज मं ेक बरस तो ऊपर का फगत्या मं सूं सरक'र दूजा पै आगी छी। ऊं बरस वा बेमार बी छी। पाछै तो ऊं को ऊपर ई ऊपर कौ पगत्यो न्है छूट्यो।
आखरी बरस दीपिका नै कालेज सूं ई आई.ए.एस की प्रतियोगी परीक्षा को फारम भर्यो अर परीक्षा दे'र मोहनपरै आगी।
दीपिका मोहनपरै आबा कै पाछै, संस्था का काम मं राधा को सायरो लगाती। राधा कै तांई नूई-नई सलाह देती अर संस्ता का विकास कै लेखै कांई न कांई करती रैती।
एक दन तड़कै-तड़कै उठ'र बारै ऊबी-ऊबी अखबार नै देखबा लागी। अखबार मं ऊनै ऊपर ई का पाना पै ऊंको रिजल्ट देख्यो। ऊनै अखबार मं आई.ए.एस. की परीक्षा मं पास होबा का ऊं का रो. नं. देखता ई ऊं का मन मं घणओ उछाव ायो, अर वा दौड़'र सूती राधा नै जगाबा लागी, कै मां म्हारो परीक्षा मं पास होबा को नम्बर आग्यो।
राधा तो सुणताई खुशी की मारी बावली होगी। अर दीपिका की बाथ भर्या घणी बार तांई बैठी री। राधा तो आंख्याम मीच्यां नमून खांच'र भगवान नै याद करबा लाग'गी। हे भगवान ! थनै, म्हू अभारण की गोदी मं खुसी का अतना परसब भरद्या, जी की म्हनै आसा ई न्चै छी। अर वा सूरदास की लैण्यां गुण गुणाबा लाग'गी।
"जा की कृपा पंगु गिरि लंग्धे, अन्धे को सब कुछ दरसाई।" बहरो सूने मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराईं।" अब दो दीपिका बडो हाकम बणबा हाली छै। मनोहरपार मं हाम फाटगी। जाण्यां-मान्यां मनख्यां कै गोडै बात पूग'गी। एक बडो अफसर म्हांका गांव को होग्यो। गांव को गरब सूं माथो ऊंचो होग्यो। राधा का घर मं बाड़ा-बड़ा मनख्यां को बधायां कै बहानै आबो जाबो सरू होग्यो। घर भर'र आंगणा भर ग्या।
मोहनपरै आई जद धरमासाल का मैनेजर नै सतार बातं पूछी छी। आज ऊंकनो नांव मोहनपरा मं मनख-मनख कै मूंडै छै हो र्यो छो।
परभू बी अखबार पढतांई मोहनपरै आग्यो छो. दीपिका नै छाती सूं लगा'र घणो राजी होयो।
दीपिका को ट्रेनिंग मं. नं. आग्यो छो। देखताई देखता ट्रेनिंग का दन बी खड़ ग्या छा। अब दो दीपिका की नौकरी को सम्भलपर मं लाग बा को हुकम बी आग्यो।सम्भलपुर मं तीन द कै भीतर-भीतर ई हाजरी देणी छी। राधा ई उधेड़-बुण मं पड़गी छी कै छोरी नै अकेली खनाऊं, कै म्हूं लेरा जाऊं। सम्भलपुर छै बी तो काला-कोसा मा नै मा को जायो, ऊ छै देसपरायो। छोरी नै अकेली कस्यां खनाऊ। राधा नै दीपिका सूं पीछी तो दीपिका छोटा बालक की नांई राधा नै ले जाबा की अड़ी करबा लाग'गी।
आखर गुरुवार कै दन दोन्यूं मा-बेट्यां रेल मं बैठ'र सम्भलपुर कै लेखै चाल खड़ी। शुक्रवार कै दन बारहा बज्या वै सम्भलपुर जा लागी।
कलक्टर का बंगला पै, अगवाणी मं फैली सूं ई गुमास्ता आंख्यां बछायां ऊबा छा। दीपिका नै ह्हैली ई तार कर द्यो छो।
बंगला का बडा बांरणां मं उलताईं व्हांसू सपाई नै सलूट मारी। दीपिका का सलूक जवाब को कायदो देख'र राधा तो दांता पींदै आंगली देगी। कै ईं छोरी मं रोब-दाब का लक्खण सरु मं ई कह्‌ां सूं आग्या ? बंगला मं नास्ता-पाणई का अन्तज्याम प्हैली सूं ई हो र्या छा। अन्तज्याम कुण नै कर्यो, तोल ई कोई न्है।
राधा तो थाक री छी। कमरा मं सोगी। पण दीपिका तो तुरत त्यार हो'र दफ्तर मं चली'गी। जस्यां प्हेली सूं ई जाणकार होवै। राधा तो एक म्हीनो सम्भलपुर रै'र पाछी मोहनपुर आगी।
एक दन राधा के तांई गेला मं हुकमचन्द थाणेदार सा. बोल्यो। बोल्यो-"मेडम आज कै अखबार मं दीपिका जी का बयान और फोटू छपा है।" राधा बोली-"क्या छपा है ?"
वे बोल्यो-"यही कै आज कलक्टर दीपिका शर्मा नै झुग्गी-झोपड्यों का निरीक्,ण किया। वहां के निवासियों को सफाी, बिजली, पानी की अनिवार्य आवश्यकताओं को शीघ्र ही पूर्ण करने आ आश्वासन दिया।"
थाणादार जी की बात सुणताई राधा को म्हरणो घणओ हरक्यो। बड़ी हाकम बणताईं को ध्यान गरीबा की आडी ग्यो। अर भगवान सूं बिनती करी, हे भगवान ! ईं छरोी मंं अस्या ई छोका बच्यार भरज्ये, ज्ये दुख्यारा मनख्यां को सायरो बणै।
अब तो रोज-पांतरै, दीपिका का काम की बातां का छाप अखबारां मं छपताई रै छा। एक दन दीपिका को तार आयो कै म्हारी पलटी सम्भलपुर सूं अखलगढ होगी छै। कागद-पत्र अखलगढ़ पता सूं ई दीज्ये।
अखलगढ़ जाण्यो-पछाण्यो नांव बांचताई रादा नै याद आगी, कै कसनपरो म्हारो सासरो। दीपिा का बाप को गांव अखलगढ जिला मं ई तो लागै छै। परभू नै बी तोल पड़गी कै दीपिका की पलटी अखलगढ़ मं होगी।
परभू नै राधा कै तांई घणओ राजी को कागद मांड्यो छा। परभू की नौकरी तो कसनपरा मं छी ई सणई। परभू नै घमा मनख्यां सू बी क्है दी छी कै मोहन जी को छोरी कलक्टर बण'र आपणां जिला में आगी।
घणा मनख्यां नै तो सुण'र दातां पी दै आंगली दे ली। कै बना कदर की छोरी'र आज अतनो बडो हाकम बणगी।
घणा मनख राजी बी होया कै चालो आपणा उलझया-फुलज्या काम ई खड़ैगा।
घमा मनख बोल्‌ोय-"पण वा आपण नै कांई जाणै। न्याला-न्याला मनख'र न्याली-न्याली बातां की छै-छै फै-फै गांव मं होबा लागगी।"


चुणाव आता ई पारट्यां का नाटक सरू हो जावै छै। एक पार्टी दुजी पारटी का गड्या मुरदा उखाड़ै छै। फेर पांच बरस तांई सगला नौ हात की मूसोड मं सूता रै छै। चुणाव आतां ईं तो सबका कान ऊंचा होवै ई होवै क्योंकि ऊं ईं तो जनता पै पपोलबा को टेम होवै छै।
सरकार ाली पराट बी जनता नै पपोलबा मं पाछी न्है दे। वा बी नूईं-नूईं घोघणाबां को जाल बछावै छै। विरोधी पाट्या वां का बगड़या काम परोसे छै। ई तण्यां खो-खो को खेल सरू हो जावै छै।
लठा चुणाव छाती पै आग्या। सरकार का कानड़ा रपट'र हात मं आग्या। जनता नै राजी करबां का सरजाम होबा लाग ग्या। जिला कलक्टर कै गोडै हुकम आग्या, के प्रशासन चुस्त-दुरस्त करो। गांवां-गांवा मं समस्या शिविल लगा'र जतना न ैराजी करो। पण गांवां का मनख्यांनै राजी करो। गांवां की मुट्ठी मं ई तो म्हां को राजा छै। खजानो भर्यो छै जतनो चावो खाली करो करजा की जुरुरत होवैगी, तो ऊं बी ले लेगां। दाता दे'र तो भंडारी क्यो पेट फोड़ै ? वां नै बी तो चाटण मलैगी, अस्या मौका तो नठा हात लागै छै। अर ज्यां की खावै व्हांकी गाणी बी पड़ै छै। ई लेखै सरकार को बी ऊंगण-नींद्यो प्रशासन चेत्यो।
गांव-गांव में समस्या शिविर लागाबा लाग ग्या। गांव का लोगां कै बी सात आई। चालो अब तो सुणआई होवैगी।
कस खाड़बा हालां नै दांब बीं भींच्या। पांच बरस मं अब सुद आई छै। साता हालां कै साता बी आई। पण कलक्टर भलो मनख होवै तो काम सरै। न्हैं तो आंधी की नाईं आवैगा, अर गुलछर्रा उड़ा'र बबूल्या की नांई उड़ जावैगा। कनता अस्या बी हावै छै कै आंधो बांटे सीरणी आप-आप नै देय। चमचा-चांट्या का काम ई होवै छै, और तो झांकता का झांकता ई रै जावै छै भापड़ा।
पण आसा अमर धन छै सूदा दन ई होवै तो गरीब-गरबा काम काम बी खड़ै छै।
कसनपरा मं बी समस्या शिविरां की बातां खेत, खलाणं, हताई पैबी चाल बा लाग'गी। कै अखगढ मं बी राज का हुकम सूं शिविर को नम्बर बंध ग्यो। आठ ता. नै तो नीम का खेड़ा की पंचायत को, बारहा नै लालपरा को अर अठारहा ता. मंगलवार नै कसनपरा को नम्बर छै।
कसनपरा मं आठ दन प्हैल सूं ई हलबलो मांच ग्यो कै आपमआ गांव मं बी मंगलवार अठारहा ता. नै शिविर लागैगो।
दुख्यारा मनख दुख की पोटल्यां बांधबा लाग'र। कोई को खेत खातै न्है बंध र्यो छो। कोई की मेर्यां जोरावार मनख्यां नै दाब राखी छी। कोई बेटा-बू न घर सूं बेदखल कर द्या, कोई लूल्या-पांगल्यां कै खाबा को सांसा छ। भांत-भांत की दुख की पोटल्यां लोग-दण्यां नै बांध-बांध'र धर ली।
मोहन्यां कै बी घमओ जबरो दुख छो. बडा बेटा नै तो धरती पै कब्जो कर ल्यो छो. दो गुण्डागरदी मं खडग्या। अब पांगल्या छोर अर दोन्यूं जणा को पेट खाँई सूं भरै ? मोहन कै दुख की जबरो छो, पण दबद्या बी कम कोई न्है छी। कै बेटी कै सामै कस्यां जाऊंगो ? ऊं नै तोल पड़गी होवैगी कै यो म्हारो बाप छै। ऊ सूं परणी छी म्हारी माई। जी नै म्हूं अर म्हारी माई घर सूं खाड़'र दर-दर जकी ठोकरां खाबा कै लेखै मजबूर कर दी छी। दूजो बच्यार यो बी आतो कै चल्यो तो जाऊंगो पण छोरी नै म्हारा कागद भरणा'र फांक द्यो तो कस्यो मूंडो ले'र आऊंगो? वा तो हाकम छै ऊं कै आगै म्हूं कस्यां बोल सकूंगो।
गांव का गुण्डा-दादा, चमचां की बी हतकंडा सरू होग्या। व्हानै कलक्टर अर ऊं का मातहतां कै तांई राजी कर'र टरकाबा का सरजाम बांध ल्या। कै रांडा रोती रै छै, अर फावणा जीमता रै छै। घणां कलक्टर आग्या. घमा चली ग्या। आज तांई कोई नै कांई बगाड्यो म्हांको ? वे डाल-डाल'र म्हां पात-पात। अर जी मं या तो बायर छै। बायर सूं कांई डरणो। मूछ्यां हाला ई म्हां सूं फतेह न्है पा सक्या।
आज शिविर छै। बड़ा मन्दरसा का चौगाम मं तड़का सूं ई छोलदारी लागबा लागगी। गरी कांई छै आग बरस री छै। आबा-जाबा हालां के छायो तो चाईज्ये चाइजये। न्है तो झार ताली दे'र ले जावै भापड़ा नै।
हाकमां कै कारणै, बड़ा कमरा मं कुड़सी-मेजां को जमावडो भी जम ग्यो। छत तो पंखा एन बगत पै द्गो दै जावै तो दो टेबल का पंखा बी अगावता मंगाल्या।
एक कमरा मं चाय-पाणी, सरबत, लस्सी कै लेखै कुरस्यां बी लगा दी। अर सगलो खाबा-पीवा को सरजाम मंगा'र धर द्यो।
शिविर की त्यारी मं सरकारीं कारन्दा दो दन सूं लाग र्या छा। पटवारपी, कानूनगो, गराम सेवक, चपड़ासी सगला भाग्या-भाग्या फर र्या छा। पटवारी नै तो दो दन सूं नींद ई न्है आ री ची। कारनामा को तो काला करल्या छा, अर अब बट्यां की तीज आरी छी। ज्ये पोल खुलगी तो नौकरी तो जावैगी ज्यै जावैगी ई समई पण जैल की सींकचा बी बाट न्हाल री छी। कलक्टर का काम की घणी बढाया सुण राखी छै, दूध को दूध'र और पाणी को पाणी करै छै। छै तो बायर पण फघत्या डकाबा मं बार न्है लगावै। ईं का मातहत थर्रात ई रै छै। पटवारी तो भगवान नै ईं संवरबा लाग ग्यो। कै हे भगवान ! गलती तो कर बैठ्यो पण अब लाज थारा हात मं ई छै।
दुख्यारा दुख नै ले'र मन्दरसा का चौगान मं भैला होबा लाग ग्या। चमचा चमचागरी में। सरकारी लवाजमो अरदली मं। अर गांव का घमा मनख तो मोहन्यां की अठवांसी घर खाडी छोरी ने देख बा सारू तड़का सूं घूघरा बांध बा लाग ग्या। खेत, कुआ, नीदबा, खोदबा की बी जनाड़ै तो छुट्टी ई कर ली। जस्यां ब्याव-सावा मं, गणगोर-तीजां का जलसां मं, मेला-खेला मं जाबा को छोग बंधे छै। उस्यां ई मोहन्या की अठवांसी घर खाडी छोरी नै देखबा को छोग बंधग्या।छोग बंधी बी कानै ? एक तो गांव मं छोर्यां नै पढ़ावै ई कोई न्है। गांव मं तो भूली-भटकी बायर ई पढ़ी-गणी मलै, अर वा बी काम चलाऊ कागद-पत्तर बांचले जतनी। पण मोनह्यां की छोरी तो घमई बबता मं बी अतनी पडगी, ज्ये सबसूं बड़ी कुरसी पै जा बैठी। अर काम बी घमी भलाई का कर री बताई। गांव मं तो जामऐ अचम्भो ई होग्यो।
बारहा बज्या की बगत मोटर आबा हाली छै। कलक्टर की। लोग-दण्यां की आंख्यां सड़क पै लागगी।
अरदल्यां का कालज्या अतंग्यां छैट ग्या। बायरां नै दान्यूं हातां की आंगल्यां सूं पल्ला दबा'र खड़क्यां बणा ली। अब तो मोटर को होरण बी बाज ग्यो। सगला का कान ऊंचा होग्या।
दाहजी छोट्या जी बोल्या-"वा आगी मोटर।"
शंकरजी बोल्यो-"बगत की तो घमी पाबन्द खड़ी रै दादा।" छोट्याजी बोल्यो-"जदी तो नांव कर छै भाया। ई काम को डंको ईं लेखै ई बाज् र्यो छै।"
कारां एक न्है दो आई। एक काली एक धोली। काली आगै धोली पाछै. कारां रुकी। अब तो कार मं सूं खड़बा हाली कलक्टर नै देखबा सारू सबकी आंख्यां ऊं पै लाग'गी।
काली कार मं सूं दो बायरां अर दो आसमी पुलिसवर्दी मं खड्या। धोली कार की झंडी नै देख'र जाणकार तो जाण ग्या कै च्हाई है कलक्टर की कार। धोली कार की खड़की अरदली नै खोली। ऊं कार मं सूं दो बायरां बारै आई। एक तो कलक्टर की पी.ए. ज्ये हरी धरती की बूंट्यांदार साड़ी प्हैर्यां छी। दूसरी दीपिका धोली फबूल बगला की पांख जसी काली छोटी किनार की साड़ी मं छी।
लांबडॣऽपूरी पांच हात की घणी रुपकी। सैंकड़ां आंख्या नमून हो'र देखबा लाग'गी। अब लोग लुगायां मं हलबोल सो मांच गयो। कोई तो काली कोर की साड़ी हाली नै कलक्टर बतावै, कोई हरी धरती की साड़ी हाली नै कलक्टर बतावै। व्हांतो प्रतियोगिता सी होबा लाग गी। सो-सो रुपयां की सरतां पै लोग दणी आग्या।
धन्नो बोल्यो-"चोखी तणा ड्यां खोल'र झांको, काली कोर की साड़ी हाली की आडी। जस्यां मोहन्या को मूंडो ई तोड़'र लगां राख्यो होवै। म्हारी बात सांची न्है खड़ै तो जनम गुलाम रै जाऊंगो।"
गोरधन्यो, भंवर्यो, मूल्यो, पन्ना होणआ नै बा एक सुर मं क्ही नै बात तो सांची छै. सगलो नाक-नक्सो मोहन्या कै उणियारै ई आवै छै।
बायरां की पछाण घणी सटीक घडी। कोई न्है बी हरी धरती की साड़ी हाली कै तांई कलक्टर न्है बतायो। बा मोत्यां, मगनी, छान्यां, छगनी, गीता फूमा सबनै एक बात ई क्ही-"आंधो मनख बी क्ह देगो कै धोली हाली कोर की साड़ी हाली ई कलक्टर छै।"थां देखो तो सणी-मोहन जी कै जस्यो चौड़ो ललाट, लम्बी नाक, मोटी-मोटी आंख्यां क्हां बी बेमाता नै कसर न्है रखाणी, पूरो को पूरो ई रेणओ बेणओ मोहनजी की नांई छै।
सुसीला बोली-"हरे राम ! फेर बी आछ्यो कलंक लगायो कै भापड़ी कै दुष्टां नै।"
सम्पत बोली-"घर सूं खाडी थोड़ी ई छी, खड़ी छी व्हा तो।"
गीता बोली-"खड़ती न्हैं तो कांई रोती व्हांनै सगला ई घमओ दुख देबा लाग ग्या छा। क्है छा कै य्हां छोरी तो म्हांकी कोई न्है। अर ज्यात का बैर्यां नै बी तो ज्यात बारै कर द्या बतावै छा। कांई आठ म्हीना को बालक न्है बंचै कै। म्हूं गणा द्यूं थनै घमआ बचता अठवास्या छोरा-छोरी"
सुरेस की छोरो, खुब चन्दा की अर पन्ना की गुजर की छोर्यां। सत्या को छोरो।
कल्याणी बोली-"पण ये तो सफाखाना मं होया छा। सफाखना हाला तो बचा ले छै।"
गीता बोली-"गांव मं कांई न्है बचै कै। अर अब कांई य्हां की आंख्यां फूट री छै कै, समून ई जाणै मोहन जी छै।"
सुमित्रा बोली-"सत्यानास जावैगो, कोई गुर गोराणी को झूंठो उडाण चारो करैगो तो।"
ममता बोली-"आंख्यां फूटै, कै माथो फूटै कांई बी होवै, उन्नै तो असी बेटी जणी कै, मरदड़ी नै, ज्यै आज नांव कर री छै।"
सुमित्रा बोली-"ठाठ-बाठ देखो दो आगै अर दो पाछै चालै छै।"
गीता बोली-"ऊं की कार की खढ़की बी तो अरदली खोलै छै।"
ममता बोली-"बेटी होवै तो असी ई होवै। म्हांतो पढाया ई कोई न्है, म्हांका भाई-बाप नै। म्हांकी तो मन की मन मं ई रैगी।"
सान्ती नै तो घमओ सोच कर्यो, बा बोली-"कसीक भोली-भोली लाग री छै री बा, देख री भाई बा ई की मांई की लेरां तो घोर अन्याय होयो छै री।"
बा मोत्यां बोली-"घमा लोभी छा री बापखाणा। घर कांनै उड़ई छै व्हातो।" घर का उड़ावै तो पलां कै ताली देतां कांी लागै। अब देखो सत्यानास ई जार्यो छै। ऊं का सराप सूं। क्हां तो ऊंकार जी घमआ पीसाहाल मानती मनख छा। व्हांकी बू का जमी पै पांव ई न्है ठहर छा। अर अब देखो कांवरला उड़ै छै। रात खावै तड़का का सासां छै।
ममता बोली-"सुणी छै छोरी की माई बी बहण जी छै। बना पढ़ी-गुणी बायरां नै बी बढाती बतावै, सीवणो-टोपणओ, अचार-चटणी, मुरब्बा आदी बी बणाबो सखा बातवै, अर व्हांनै पीसा बी दुवाती बताई। दुख्यारी बायरां नै व्हां को हक बी दवावै छै।"
मथरा की बू बोली-"भाया गोडै होवै तो म्हूं बी जाऊं। घमओ प्ये बलै छै बाटी सेक्यो। अर पी'र मारै और छै। डीलड़ा पै छोरा-छोर्यां कै लता कोई न्है। पण ऊं को बीपो न्है छूटै।"
मूल्या की बू बोली-"म्हारै कांई कम दूख छै कै भाभीजी स्योक और ले आयो छाती पै। रोजीना घ मं खलै करै छै। छोरा-छोरी न्है होवै तो कांई म्हारै हात मं छै कै ?"
बायरां भेली होवै जदी तो आपणो दुख-सुख एक दूजी सूं कहै'र फोरी होवै छै। आज व्हांनै मोहन्यां की बू घमी याद आ री छी। कै नजीक होती तो म्हांको दुखड़ो ऊं सूं रोता।
रोबीला हाकम जसी चाल सूं दीपिका कलक्टर मन्दरसा मं आगी। भेला होया लोग-लुगाईयां बी कलक्टर की बातां करता-करता बछड़ गय्‌ा छा। कलक्टर की मेज पै काम की लांबी लिस्ट धर दी छै। दुख्यारा लोग कालज्यो पकड़'र कमरा की आडी न्हालबा लाग ग्या। ज्यांकै मूत आ र्यो छो मूतबा सूं नमटयाया, ज्यानै तरखा लाग री छी पाणी पी, आ ग्या, अर नचीता हो'र बैठ ग्या।
कलक्टर नै कुड़सी पै बैठता ईं प्हैली परत अस्सी बरसी की छीतर की मांई बुलाई।
कलक्टर बोली-"हां माताजी आपकी क्या शिकायत है?" छीतर की माई बोली-"मारा, म्हारो बेटो कपातर छै बू का क्हैणां मं चालै छै। म्हारी कदर न्है करै। पेट भर'र बी न्है द्ये। रांडी-रंडवां नै म्हारी जमी पै बी कब्जो कर ल्यो। अब म्हूं कांई खांऊ ? खुण कै बटका भरूं।"
कलक्टर बोली-"क्यों आप बेटे-बहू कै पास रहना चाहती हैं, आ अपनी जमीन लेनाचाहती हैं ? बताइये आप क्या चाहती है ?"
छीतर की माई बोली-"मारा म्हंनै तो म्हारी जमी ई द्वा द्यो। धापगी म्हूं तो हांसूं बना बेटा-बू कै ई चोखी छूं।"
कलक्टर नै पी.एक. कै तांई हुकम द्यो-"लिखिए कान्हीं बाई पत्नि श्री गोबरी लाल को उसकी जमीन पर कब्जा मिले।"
दूसरा नं पै गुलाब बाई आई। वा बोली "मारा म्हारा आदमी नै म्हू ंछोड़ दी, दूसरी बायर कर ली। म्हांरै तांई घर सूं खाड़ दी। मारा, म्हारै ताई गुजारो द्वाओ।"
कलक्टर बोली-"तुम अदलात में रिपोर्ट करो ? हम तुम्हारी मदद करेंगे। पी.ए. सु बोली-आप इन्हें प्रोसजिर समझा दो।"
तीसरो पांगल्यो आयो-उन्नै बी पेट भरबा को रोवमओ रोयो।
कलक्टर बोली-"पन्दरह बीघा जमीन मंगल्या पुत्र मोती कै नाम अलोट करने का हुक्म दिया जाता है।" कागज टाइप करवाओ।
चौथा नम्बर पै कलक्टर को बाप मोन्हया को नम्बर आयो।
कलक्टर बोली-"आपको क्या तकलीफ है?"
मोहन्यों घमी दबद्या मं पड़ग्यो। कांई सम्बोधान करूं ? बेटी कहूं कै मारा कहूं कै हुकम कहूं, कै साहब कहूं। आखर ऊं का म्हरलानै कही-कै बाप होबो को कांई सबूत छै। कस्यो खूण्यां को फरज नभायो छै थनै बाप को ? मारा खै मारा। मोहन्या का मूंडा सूं खडी-मारा म्हारै बेटा तो च्यार छ। पण च्यारो ई च्यार लैगा का छै। एक तो चोरी का जुरम मं जले मं छै। दूजो अवारा, गांव का लोगां नै कोसै छै'र खावै छै। दादागरी करै छै। तीसरो पांगल्यो छै। अर चौथा नै म्हारी सगली जमी पै कब्जो कर ल्यो। पटवारी सूं मल'र ऊं को नांव बी चढ़ा ल्यो म्हारी लेरां तीन पेट छै। कठी जाऊं कांई खाऊं।
कलक्टर बोली-"आप बेटे के पास रनहा चाहते हैं या जमीन लेना चाहते हैं ?"
मोहन्यों बोल्यो-"म्हनै तो म्हारी जमीन द्वा द्यो सा. जीवां जयां तांई पेट भर'र अन् खावैंगा।"
कलक्टर पी.ए. सूं बोली-"लिखिए मोहन पुत्र ऊ्‌ंकराजी को इनकी जमीन पर कब्जा मिले। पटवाीर से खता खसरा नं. मंगावा कर जांच कमेटी बिठाई जावै, क्यां खांत में काटा-फासी हो रही है ? शीघ्र मेरे पास रिपोर्ट प्रस्तुत करें ताकि अपराधी के विरुद्द कार्यवाही हो सके।"
कलक्टर सा. अस्या घमा फैसला हातों-हात दूध का दूध'र पाणी का पाणी जस्यां कर गया। सगला, अरदली, चमचा, खाबा-बीपा का नोहरा करता ई रै ग्या। बात करबा मं लोग-बाग तरस ग्या। कलकट्र का काम को , गांव मं आछ्यो हलबलो मांच ग्यो। अस्यो भलो मनख-हामक तो आज तांई बी गांव मं न्है आयो। छै तो बायर पण काम तो कमाल का ई करै छै। धन छै ई का मात-पिता नै, ज्यानै असी बेटा जाई। माई को दूध उजाल्यो बा धन्नी, एक सांस मंं ई कलक्टर की घणी बढायां कर'गी।


करम की बात है, पाणी बगत पै बरस जावै तो सुकाल न्है तो काल को मुकाबलो तो करणो ई पड़ै। लागतो साल करसां कै छोको बैठ्यो, इन्दर राजा की करपा सूं। मोहन होण कै बी जमीं पावां कै नीचै आगी छी। अर नबज्यो बी घमो आछ्यो।
रूपाली, साख नै देख-देख'र घणी हरकती फरै छै। भूखा मरबा का दना सूं कलक्टर दीपिका नै नजात द्खा दी। पांगल्यां मूलचंद कै बी मूंडा पै नुराणी आगी। पण मोहन नै को, दन पै दन सूख-फेफरी लाग'गी। डील सूं घणो उतर ग्यो। अब तो बोली बी घणों धीरां-धीरां, दमनो-दमनो ई रैवा लाग ग्यो छो।
धीरां-धीरां अस्यो गलग्यो कै ऊनै तो खाट को पायो ई पकड़ ल्यो। उठावै तो उठै बठांणै तो बैठे।
यो तो न्याला घ का न्याला बारणा छै, पण भाई की बेमारी की सुणताई (मोहन्या का बड़ा) भाई गोपाल अ ऊं की बू बी संभाल पूछबा आया। आड़ा-पाड़ा का मनख बी दो आपैएक जावै अर अपणी-अपणी सहाल बतावै. कोई मूठ बतांवै, कोई भूत, कोई जाणतेर की सलाह दे। कोई गरह-गोतर की, कोई डांगदर की बात करे। कोई तो दवाइयां तगात बता जावै। कोई कुनेन की गोल्यां बतावै, कोई रेसोचीन, मेटासीन लेरीगो। नेन्द्र तो पेन्सिलीन को इन्जेक्सन तक बता ग्यो. कै यो सगली बीमार्यां मं काम आवै छै।
बूढ़ा दाहजी चम्पा जी, लूग, जायपतरी, पीपलां भजो'र सेक'र खाबा की सलाह देग्या कै छ; म्हीना की हाड़ां की बुखार बी खाड लावैगी।
म्हांका देस की या ई तो खूबी छै। य्हां डांगदरां की कमी कोई न्है घर-हाला ज्या क्है वाई करै। पण मोन्हाय के नीरांत लौट'र न्है आई।
गोपाल तो जाण र्यो छो कै जनाड़ा सूं मोहन नै दिपीका देखी छै, ज सूं ई यो दन पै दन गलतो जा र्यो छै। पण हातां कर्या कामड़ा दोस कुणीन देय।आज रात तो मोहन नै घणी थापड़-थूपड़ करी। रुपाली अर गोपाल ऊं की बू बी बात भर न्है सोया। आखर मं दन जी म्हाराज नै प्हली करण मैली अर मोहन नै रुपाली सूं ही ई सणी कै राधा नै बुला द्यो। म्हारी आखरी टेम छै। म्हारी या ई आखरी मनसा छै।
रुपाली नै गोपाल सूं मोहन का मन की बात कह दी। गोपाल नै तुरत ऊं को बेटो फूलचन्द बलायो अर समझायो, कै प्हैली अखलगढ़ कलक्टर कै गोडै जा ज्ये, व्हांसू राधा को पतो ले'र तुरत काकी नै ले'र आज्ये।
बाप की बात सुणतांई फूलचन्द झट-पट त्यार हो'र अखलगढ़ कै गेलै लाग ग्यो। कलकट्ार सूं कस्यां मलूंगो, कांई क्हूंगो, क्यूं कै बड़ा हाकम छै, व्हांसू मलबो ई घण दूभर छै। सपाई बारै ई रोक लेगा. फूलचन्द गेला मं बच्यार करतो-करतो आखर मं ड डरपतो-डरपतो अखलगढ़ जा'र कलक्टर कै गोडै जा ई पूग्यो।
फूलचन्द दीपिका सूं बोल्यो-"आपकी मां नै म्हारा काकाजी घमा याद कर र्या छै। काकाजी धरत्यां उतार राख्या छै। व्हांकी मरबा कै प्हैली आखरी मनसा, काकीजी सूं मलबा की छै।"
दीपिका का काना मं या भणकार तो प्हैली सूं ई छी कै ऊं का बाप को गांव कसनपरो छै। दीपिका नै तुतत अपणी गाडी का डलेवर कै तांई हुकम द्यो कै तुरन्त गाडी त्यार करो। अर दफ्तर मं तीन दन की छुट्टी की दरख्वास्त दे'र फूलचन्द नै साथ ले'र गाडी मं मोहनपरा कै गेलै चाल दी।
अणाचक फूलचन्द, दीपिका, गाडी आद देख'र राधा हक्की-बक्की रैगी कै यो कांई मांजरो छै। यो छोरो कुण छै। दीपिका की लारां कस्यां गाडी मं बैठ'र आयो।
फूलचन्द नै जाता ई राधा कै ढोक दी। जद बी राधा नै समज पाई। दीपिका नै बात बताई जद जा'र राधा कै या बता समज मं आई। फूलचन्द तो दोन्यूं का मूंडा की आडी देखतो र्यो।
मोहन की बेमारी का समाचर सुण'र राधा एक घड़ी तो नमून खांच'र ठप खा'गी। पच्चीस बरस प्हैली तो सपनो, ऊं की आंख्यां कै आगे उतरबा लाग'ग्यो। पण मोहन की बेमारी की सुणताई राधा सूं र्यो बी नै ग्यो. जस्यां बैठी छी उस्यां तुरत गाडी मं बैठ'र कसनपरै जाबै कै लेखै त्यार होगी। राधा आंखै गेलै, आंख्चा मीच'र भगावन नै याद करती री "हे भगवान ! थनै म्हारी घमी लाज रखाणी छै। मौत का मूंडा मं सूं बी खांच लायो। पण थारी अब आखी परीक्षी का घड़ी छै। म्हारानाथ ! म्हारा मोनह सूं अणहोणी न्है होज्या।" कनसपरो कदेक आग्यो, राधा नै तो जद चेतो आयो, जद फूलचन्द नै कही, काकजी उतरो कसनपरो आग्यो।
मोहन नीचे स्वाण राख्यो छो। मोहन नै राधा, राधा ने मोहन देखतांई दोन्यां की आंख्यां मं सूं गंगा-जमना बह खढी। थमबा को नांव ई न्हेै लेरी छी।
राधा नै चेतो आता ई मन गाढो कर्यो अर मोहन को माथो गोदी मं ले'र साड़ी का पल्ला सूं आंसूं पूंछती री।
राधा को कसनपरै आबा को समचो, गांव मं आग की नांई फैल ग्यो-"आज तो कलक्टर की मांई मोहन्यां की प्हैली घरहाली आई छै।"
गांव का लोग-दण्यां कै क्यूंक तो मोहन की संभाल पूछबा को अर क्यूंक राधा नै देखबा को बहानो। मोहन का घर मं लोग लुगायां को जमघट लाग ग्यो।
गांव मं बी मनख्यां कै मूंडै राधा ई राधा होरी छी। अर होवै बी कानै ? घणा मनख्यां नै तो राधा का मरबा की ई उडा दी छी। घणा नै द्या बी आ री ची। अर नरा नै अचूंबमबो बी हो र्यो ई बायरां की लारां घरहाला नै अतनी बरी करी फेर बी या धणी की बेमारी की सुणतांई दौड़ी आगी। वाह रै दीव। सांच्यांई य्हां तो देवी ई छै।
कैलास बोल्यो-या बायर सीता-माता सूं कम कोई न्है छै। राम नै सीता-माता कै तांई घर सूं खाड दी छी। पण सीता-माता को परेम, राम सूं बधतो ई र्यो कम न्है होयो।
श्योजी बोल्यो-"अब मोहन्यों चोखो हो जावैगोो। ई का सत सूं। साबित्री नै बी तो सत्यावन सत सूं ई जीवोत करल्यो छो। जी में मोहन्यां मं तो ज्यान छै।"बा माधीजी बोल्यो-"अरै म्हारै लेखै तो बेमारी कोई मोहन्यां कै। ऊं तो ईं की छोरी कलक्टर आई छी नै, वा दखी जद सूं ई दन-दन गल र्यो छै। याद करतो होवैगो, पराणी बातांनै। क्हैवै कुण सूं हाता कर्या कामड़ा।"
रुपाली, एक खूण्यां मं ऊबी-ऊबी सपना की नांई राधा'र मोहन नै टकटकी लगा'र देखती रही।
राधा, डलेवर सूं बोली-"कार स्टार्ट करो" अर वा मौहन नै स्वाणबा कै लेखै अलगणी पै धर्या गोदड़ा मं सूं बछबा ा कै लेखै, गोदड़ी टटोलबा लाग'गी।
राधा नै कार मं गोदड़ी बछाई दो जणा नै सायरो लगाट'र मोहनन्यों कार मं स्वाण्यो फेर राध ाका असारा सूं कार चाल दी। राधा नै सूरत ई न्है री। कै रूपाली बी एक हात मं थेलो थाम्यां, गूंघटो लेर लारां चालबा कै लेखै ऊबी छै। अर हात को झालो देती जा री छै। राधा नै कार सूं दूरै होती रुपाली देखी। वा डलेवर सूं बोली "कार को पीछो मोड़ो" कार मे रुपाली ली। अब तो करा तेजी सूं चाल खडी।
राधा की जठ्याणी चूंतरी पै ऊबी काण्यो गूंघडो खाड'र राधा, मोहन, अर रुपाली नै देखती री। पछताती बी जारी छी कै राधा का घर-बार बगड़बा हाली म्हूं ई तो छू। ईं को भगवान, दंड तो म्हनै ई देगो। या तो घणी सतवन्ती खडी रै। म्हारा परभू। म्हारी असी कांई मती बगड़ी रै थनै म्हारानाथ।
कार अखलगढ़ का बडा सफाखाना मं पूंगी। समचा कै सारू बडा हाकम बी सफाखाना मं आग्या। डांगदर मोहन की घण ीतवज्यो कर र्या छा। मोहन के बेमारी तो फोरी ई छी। पण पछतावमओ सांवटो छो। पड्यो -गुण्यों हो'र बी काचा काना को'ई र्यो। अब पछतावै क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खे। सांप खड जावै, त घींशणी नै पीटबा सूं कांई होवै।
मोहन कै आठ दन मं ई, आछी फोराई आगी। सफाखाना सूं छुट्टी मली। आराम करबा की सलाह दी। राधा मोहन नै कसनपरै ले आई। आछी तिमारदारी करी। मोहन, चालबा फरबा लाग ग्यो। मूंडा पै नुराणी मचक आई।
अब राधा मोहनपरै जाबा की त्यारी करबा लाग'गी। राधा ज्यूं-ज्यूं मोहनपरै जाबा को नांव ले, मोहन कोमन घणो कुरलावै। मोहन को मन आगै-पाछै झलझोला खातो र्यो, पण राधा कै सामै ऊं सूं बोल्यो न्है ग्यो। आज तो राधा नै बावड़बा कै लेखै थे हो हात मं पकड़ ई ल्यो। राधा का हात मं थैलो देखतांी मोहन की आंख्या मं गलेड भर आयो। मोहन नीची नाडकी कर्यां ई राधा सूं बोल्यो-"राधा म्हारै तांई जीवम जेवडी दे'र तू कठी जावै छै ? अब तो म्हारै तांई माफ कर दे। म्हारी करणी को फल, घओ भोग ल्यो म्हनै।"
राधा बोली-"करणी को फल भोग ल्यो तो अब ौर खाईम भोगाव की त्यारी कर र्या छो। भूल्य.ा ज्यां सूं ई एक गणओ, मोहन, राधा का ऊंचा बय्यारा नै पकड़ न्है पायो।" ऊं बोल्यो-"राधा म्हूं थूं सब कदी बुरो ब्वार ्‌है करूंगो। भगवान नै साक्सी कर'र सौगन खांऊ छूं।"
राधा बोली-"थां म्हूंसी तो आछ्यो ब्याव करैगा, पण रुपाली का काल्जाय मं कसीक खटकैगी ? ऊं का सारा जमारा को कर्या-कराया पै पाणई फैरेगा। कांई एक म्यान मं दो तलवार्यां बी खटावै छै ? ऊं गऊ गोरमी का सराप ले'र तो खोटा करम ई करैगा।"
मोहन म्हारी जिन्दगाणीतो अब समजा कै तांई अरपण है। दुख्यारी माई-बम्यां नै साता मले जावै तो म्हारा कालज्यां मं घमई साता आवै छै। राधा तो चाली गी। पम काना मं अण बोल घोलगी। कै "थां बी थांका ागला जमारा नै सुधारो।"
राधा अर म्हूं पाछला भोम मं बेहण्यां ई पैदा होई होवैगो। जदी तो राधा म्हनै जद बी मलती, रबी-रबी की, ऊंका मन की म्हंसूं ख्नां बना नै रेवै छी। अब कै तोम व्हा म्हनै, सफाखाना मंली छी। जद सूं तो ऊंनै म्हारो पाछोई न्है छोड़यो। मोहनपरा ताई लारां लेगी, ऊंकी महिला विकास संस्था का काम बताबा। राधा हमेस म्हारी परछांई बणी री। म्हूं अर राधा गड-गड एकमेक। व्हा म्राही छांवछी, म्हूं ऊ की छांवली। ऊंनै तई तो मंडवा दी या पोथी।


ज्ञानीजनां की कही बाता ंसांची छै। कै माई ई, बालक की प्हैली परत की पाठशाला होवै छै। पौधा नै जस्यो खाद-पाणी मलै, ऊस्यां ई ऊ फलले-फूलै छै। माई बी बालक नै संवारबा मं उस्यो ई काम करै छै। दीपिका काम मं या बात घणी ऊंडी बैठी छी।
दूजा बच्यार, बाप की बेमारी मं ऊं की तिमोरदारी करती, जी मं सोबा की सुद नै खाबा की याद, दीपिका नै माई आंख्यां देखी छी। जद सूं ई ऊ का बच्यार और बी घमआ ऊंडा होग्या। म्हारी मा सीता को दूसरो रूप छै. जी बाप नै माई कै तांई घर मं सूं खड़बा पै मजबूर कर्यो, ऊं बाप नै लेखै म्हंनै व्हा आज तोई बुरी बाणी बोलती नै सुणी। अबाणू तो आंख्या देखी बात चै। रात-दन सेवा चाकरी कर'र बाप नै मोत का मूंडा सूं बी खाड लाई। हाय रे भारत की नारी, थन ैदेवी कहूं कै दुरगा, सीता कहूं कै साबित्री कस्या थानक पै बठाणू ? तू सगलै ई उजालो करबा हाली छै।
दीपिका बारै आंगणा मं लागी फुलवाड़ी मं कुड़सी पै बैठी-बैटी ऊपर तली का बच्यारां का हींदा मं हींद री छी, कै बारै काल बेल की घंटी नै ऊं का बच्यार झटको दे'र तोड़ द्या। पोस्टमेन कै आबा को टेम छो. नौदकर दरवाजो खो'ल बारै ग्यो। पोस्ट मेन नौकर हा हात मं तार को लिफाफो पकड़़'र बावड़ ग्यो। भीतर जा'र नौकर नै दीपिका का हात मं तार को लिफाफो पकड़ायो, अर पाछो काम मं लाग ग्य। दीपिका नै लिफाफो फाड़'र तार फड्यो। तार माई की बेमारी को छो।
तार पढ'र दीपिका सुन्न होगी। फेर तुरत दफ्तर गी। दफ्तर मं कागज उलट-पुलट'र खास-काम नमटाया। घर नै आ'र डलेवर नै तांई अपणी गाडी त्यार कर'र मोहनपरै चालाबा को हुकम द्यो।
देखतां ई देखतां तुरत उतावली करा सूं, वा मोहनपरै मां कै गोडे आगी।राधा मोहनपरा का सफाखना मं भती छी। पन्दरा दनां सूं बुखार टूटबा को नांव ई नै ले र्यो छो। संभाल पूछबा हाला, तिमारदारी करहा हालां की लैण लागी री छी।
दीपिका नै देखतांई राधा बोली-"बेटी घबराई सी कस्या ंलाग री छै ? थारै कुण नै समचो कर द्यो। म्हूं तो चोखी हो जाऊंगी, तू खाईमी आई।"
दीपिका बीलो-"मां, म्हारो अतना बी अधिकार कोई न्है, कै ज्ये थारी सेवा कर सकूं।" या कह'र आंख्यां मं सूं मोतो ढलका'बा लाग'गी।
हेताल्यां नै राधा की बेमारी का समचार मोहन कै बी कर द्या छा। मोहन की सुणतांी, दूसरै दन मोहनपरै पूग ग्यो। राधा, मोहन नै देकातईं आंख्या का आंसू न्है रोक सकी। मोहन नै घमी हीम्मत कर्या, आपकी आंख्या्‌ं मं भर्य ागलेड बारै न खडबा द्या। राधा का माथा पै हात फरतो, कमीज की चाल सूं राधा का आंसूं पूछतो र्यो। तीजै दन तो राधा का सासरा सूं गोपल ऊं की बू, रुपाली और बी घमआ मनख आ ग्या छा। परभू बी सुणतांी भाग्यो आग्यो छो। इलाज अर तीमारदारी मं तो कसर नै छी, पण वां घरां की आण लागै, तो टूंटी कै बूंटै न्है लागै। आठ दनां तांी जीवम-मरण सूं झूजती राधा नै आखर मं दम तोड़ ई द्यो। टूंटी कै बूंटै नैईं लागी सगला झांकता का झांकती ई रै ग्या। राधा तो राम कै प्यारी होगी। राधा कै मरताई, मोहन को तो हाल घमओ बेहाल होग्यो। ऊं तो रोयो नै धोयो। बेहोश मरी लास ज्यूं होग्यो।
एक बूढ़ो आसामी बोल्यो-"यो नै बचै ईं की बी संदैसी लारां ई जावैगो। सत्ती होती बायरां तो देखी छै, पण यो तो आसामी..।"
एक दूजो आसामी बोल्यो-"योई तो आत्मा को आत्मा सूं पवित्र पररेम होवै छै।"
राधा का घर मं मोहन की या दसा देख'र घमी अफरा-दफरी मांचरी छी। डांगदरा राधा नै देखभा आया छा वै अब मोहन पै टूट पड्या। घणी दौड़-दूप कै पाछै, मोहन नै थोड़ो चेतो आयो। अब मोहन की आंख्या मं सूं आंसुवां का धारवा लाग र्या छा। दो जणां, ऊं कै गोडै बेठ्या, बसवास बंधाता, आंसू पूछता जा र्या छा।
दीपिका गुम-सुम बी आंसू पीतीजा री छी। सारो माहौल गमगीन छी।
कहै छै कै-"आज मर्या'र क्हाल दूसरो दन। मनख का काम ई जीवता रै छै. म्रय्‌ा पाछै राजा की देह बी ल्हास बागै छै। अर गरीब की देह बी ल्हास ई ख्यावै छै। सगला भदे जगत का छै। आता-जाता सगला ल्हास मं पलट जावै छै। मटाी हो जावै छै।"
राधा की ल्हास बी जमी पै पड़ी छै। पण अब ई ल्हास पै खींचा-ताणी की नौबत आगी।
मोहन परा का जाण्यां-मान्यां नेता बड़ा-बड़ा हाकम, बोपारी, समाजसेवी ल्हास को अन्तिम संस्कार मोहनपार मं ई करबो चावै छा. वां को कहबो अर मानबो छो कै ई महान बायर नै म्हांका गांव कै लेखै, घमआ आछ्या-आछ्या काम कर्या छै. म्हां ई का घा रिणी छां। दाह संस्कार, महनरा की धरती पै ई होणो चाई ज्ये।
मोहन चावै छो-"ल्हासऽम्हारा गांव कसनपरा मं जावै, अर व्हांी दाग होवै। म्हूं ई नै सात-फेर खा'र लायो छो. दाह संस्कार बी म्हरा ागंव मं म्हारा हातां सूं ई होवै।"
आखर या ई ठहरी कै राधा की ल्हास कसनपरै ई जावैगी।
एक गाडी ल्हास कै कारणै आई। परभू, मोहन, दीपिका ल्हास नै ले'र कसनपरै चाल खड्या। बाकी लोग बी दूजा साधना सूं कसनपरा कै गेला लाग ग्या।
मोहन कै बारमऐ कार थम ताई गांव मं खबर आग की नांई फलैगी। सगलो गांव भेलो होगयो। अर गाजा-बाजा सूं राधा की अन्तिम संस्कारां की सवारी चाल दी। मोहन नै अपणा हातां सूं संस्कार पूरा कर'र राधा कै तांई आखरी विदाई दी। दीपिका नै बी मां कै रूंध्या गला सूं आखिरी बिदाई दी। अर सागै ईं एक भव्य स्मारक बणाबा की घोषणा कर दी। सब लोगां नै घमआ आदर सूं राधा कै ताँई श्रृदान्जली दी अर दीपिका की घणी बढ़ाई करी।
दो बरस की लग-लगतै टांची सूं बडो बारी घणो आछ्यो कलात्मक भावात्मक स्मारक बण'र पूरो होयो।
नांव मंड्यो "भारत की महान नारी" एक और राधा।

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